सूप तो बोले ही बोले, छलनी भी बोले, जिसमें 72 छेद, ऐसी है आज के झंडाबरदारों की हालत
एक हिंदी एन मसल है कि "सूप तो बोले ही बोले, छलनी भी बोले जिसमें 72 छेद" आज ये हमारे देश के झंडाबरदार नेताओं पर एकदम फिट बैठती है. देश के किसी भी कोने में कोई भी घटना होती है तो इस पर अपनी प्रतिक्रया तुरंत ये झंडाबरदार देने लगते हैं. बीते दिनों बनारस के दो दिन के दौरे पर काम के प्रति ईमानदार प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी आये थे. पूर्व नियोजित ढंग से कुछ मनचलों ने लड़कियों को छेड़ा या नहीं छेड़ा वो पुलिस समझेगी, ये बात इसलिए कही की अक्सर ऐसी घटनाएँ वहीं पर ही क्यों होती हैं, जहाँ पर प्रधानमंत्री मोदी का नाम जुड़ा होता है. कश्मीर से कन्या कुमारी तक तीन वर्षों में ऐसी घटनाओं में बहुत ज्यादा इज़ाफा हुआ है. अब बनारस चलते हैं, कुछ मनचले लड़कियों को छेड़ते हैं, इस छेड़खानी मामले पर इतनी तेजी से प्रतिक्रया होती है. जिसके परिणाम स्वरुप झंडे-डंडे,बैनर पोस्टर लेकर आन्दोलन शुरू हो जाता है. सभी झंडाबरदार नेता एक सुर से लड़कियों आन्दोलन के समय पीटे जाने पर अपनी प्रतितिया देने लगते हैं.क्या गज़ब के ये आन्दोलनकारी हैं और उन्हें सपोर्ट करने वाले झंडाबरदार. ऐसे त्वरित आन्दोलनों को देख स्वतंत्रता संग्राम सेनानी शरमा जायें. इसके बाद शुरू हुईं कथित जनता के सेवक नेताओं की प्रतिक्रियाएं. आम आदमी पार्टी के नेता कुमार विश्वास अपने कवि स्टाइल में बोले ये रात बहुत भारी पड़ेगी सत्ता के अहंकार को. दुर्गा की प्रतिरूप बेटियों पर सरकारी लाठियां पड़ी. क्यों भूल रहे हैं कुमार विश्वास जब निर्भया कांड के बलात्कारी /हत्यारे को सिलाई मशीन और लाख रुपये देते समय निर्भया में दुर्गा नहीं दिखी थी. इसी मुद्दे पर कांग्रेसियों ने बोला 'बीएचयू में भाजपा का बेटी बचाओ बेटी पढाओ संसकरण है. कांग्रेस के नेताओं को पहले अपने गिरहबान में झाँक लेना चाहिए. क्या 24 नवम्बर 2007 की असम के गुवाहाटी के बेलतला की उस घटना को भूल गए हैं, जिसमें आदिवासी महिला लक्ष्मी उरांव को सरेराह निर्वस्त्र करके भीड़ ने दौड़ा-दौड़ाकर पीटा था. जब महिला आयोग ने संज्ञान लिया तो कान में तेल और आँखों में सुरमा लगा कर मुंह में दही क्यों जमा लिया था. 2007 में असम और केंद्र में आदर्शवादी कांग्रेसियों की ही सरकारें थीं. क्या बनारस में इससे भी भयावह त्रासदी हुई है. सतही राजनीति करते हुए शर्म आनी चाहिए. इन झंडाबरदार नेताओं की आदर्शवादिता पर ये मसल "सूप तो बोले ही बोले, छलनी भी बोले, जिसमें 72 छेड़". सभी नेताओं को चाहिए अपने बीते कल के अनुरूप ही आदर्शवादिता पर उतना ही बोलना चाहिए,जितना उनके खुद के चरित्र पर खप सके.


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