विरोधी दलों में नोट बंदी के बाद इतनी छटपटाहट क्यों है
कभी लोगों को विरोधी दलों की सत्ता से वंचित होने की छटपटाहट देखनी है तो सोशल मीडिया पर देख सकते हैं. कुछ मालदार दलों ने बाकायदा अपनी टीम बना रखी है. इस टीम की सबसे ख़ास बात ये है कि इसका हार सदस्य महाज्ञानी नज़र आता है. नोट बंदी से लेकर घोटाले की गोलबंदी आदि सभी विषयों पर धारा प्रवाह लिख मारता है, लेकिन जब कोई सवाल कर दो तो अपशब्द बोलेगा या फिर सन्नाटा खींच लेगा. शायद इतनी ही इन लोगों की उपयोगिता होती है. वैसे भी आज-कल कुछ सोशल मीडिया के शातिर खिलाड़ियों ने इसे धन कमाने के ज़रिये से जोड़ लिया है. इस पर किसी न्यूज़ चैनल ने एक कवरेज़ भी दिखाई थी कि किस तरह से इन्हें हायर करके किसी भी व्यक्ति का नाम और बदनाम दोनों कर सकते है. ये हज़ारों की तादाद में सोशल मीडिया पर फेक अकाउंट बनाए रहते हैं. अगर कोई पोस्ट इन शातिरों की हेंडल की हुई होती है तो उसे लाइक कमेन्ट और शेयर किया जाने लगता है. अगर इनकी पोस्ट पर या कमेंट्स पर कमेंट्स किया जाये तो ये इनके दो-चार फर्जी अकाउंट्स से उसे अपशब्द बोलने शुरू हो जाते हैं. अगर इनकी पोस्ट पर कमेंट्स करने वाला ज़बरा हुआ तो ये अल्प ज्ञान की वज़ह से सन्नाटा खींच लेते हैं. आज-कल सोशल मीडिया पर गरमा-गरम मुद्दा नोट बंदी के एक साल पूरे होने पर किसी दल विशेष के हायर किये गये ये अल्प ज्ञानी दुनिया भर की ज्ञान की बातें छौंकते हुए दिखाई दे रहे हैं. इन्हें हवा देने के लिए कुछ न्यूज़ पेपर्स प्रिंट से सोशल मीडिया पर अपनी दूकान खोल चुके कोई भी उठ-पटांग मुद्दे को उछालकर किनारे हट जाते हैं और किराए पर लिए गए ये ज्ञानधारी उस पर अपने कमेंट्स से अज्ञानता का रस घोलने लगते हैं. ये ज्ञानी कमेंटधारी का पूर्व प्रधानमंत्री की कही बात कि नोटबंदी के कारण जीडीपी दर 2% गिर गयी है. उस पर किसी ने कहा कि रेनकोट पहन कर नहाने वाले पूर्व पीएम ने ये बात कह कर देश का भला किया था तो इन्हें रेनकोट पहन कर नहाने की क्यों ज़रूरत पड़ी. बस अल्प ज्ञानधारियों ने इनका महिमा मंडन शुरू कर दिया. इस पोस्ट पर कमेंट्स पढ़ने शुरू किये तो समझ में नहीं आया कि पूर्व पीएम मनमोहन सिंह एनडीए के पाले में आ गए हैं या अपनी पार्टी की खाट खड़ी करना चाहते हैं. ये सोचना इसलिए पड़ा कि अगर नोटबंदी के बाद जीडीपी में गिरावट आने की बात पीएम मनमोहन सिंह कही थी तो क्या वो एनडीए की मोदी सरकार को फिर से देखना चाहते थे. अगर ऐसा होना था तो इन्हें अपनी पार्टी का भला देखने के बनिस्बत एनडीए पर क्यों प्यार उमड़ पड़ा. खैर अब कुछ इस पर सोचें. नोटबंदी के बाद काले धनवानों का सारा धन बैंक में जमा हो गया. बाज़ार में सन्नाटा पसर जाना ही है. जैसा कि रियल स्टेट के धंधे में हुआ. जो करोड़ीमल के लिए 3-4 करोड़ के घर या फ़्लैट किसी गरीब के द्वारा आलू की खरीद लेते थे,अब उनके पास आलू खरीदने लायक पैसे हैं तो रियल स्टेट का चौपट नाश होना ही है.कोई अर्थशास्त्र जानकार का कहना था कि अगर बाज़ार में रुपया अधिक होगा तो वस्तुओं के दामों में बढ़ोतरी होनी ही है. जमकर खरीदारी के ही अनुपात में उत्पादन भी होगा. इसका मतलब एक ही है.वो ये की देश संपन्न हो रहा है, लेकिन गरीब विपन्न. कुल मिलाकर नोट बंदी के बाद जमा हुए कालेधन को को सफ़ेद साबित करो और ले जाओ. स्याह को सफ़ेद साबित करना ही काले धनाड्यों के लिए टेढ़ी खीर है.


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