प्रधानमंत्री मोदी को अपने आस-पास की आवाजों को भी सुनना चाहिए
न्यूज़ चैनल्स और समाचार पत्र बहुत हल्के विरोध के बाद केंद की सरकार के मुखिया नरेंद्र मोदी को देश सबसे हनकदार प्रधानमंत्री जब तब बताते रहते हैं. जब से नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री पद संभाला है,पार्टी के अन्दर भी और बाहर भी विरोधियों को बढ़ा लिया है. कोई भी योजना हो उसे अमलीजामा पहनाते ही विरोध के स्वर सबसे पहले विरोधी दलों के उभरते हैं. पार्टी का कोई भी नेता विरोध तो नहीं कर सकता है लेकिन कुछ भितरघाती पीएम मोदी पर धार लगाए बैठे हैं. कई योजनाओं को शुरू किया जो लम्बे समय बाद कुछ अच्छे परिणाम देने में सक्षम हो जायेंगी. लेकिन इन योजनाओं का हमेशा ही विरोधी दल विरोध के लिए विरोध करते नहीं थकते है. सत्ता में आते ही नरेंद मोदी को घेरने के लिए कुछ दल योजनाबद्ध तरीके से राज्यों में किसी न किसी आन्दोलन को हवा देकर ये सन्देश देने में लगे रहते हैं कि मोदी के शासन में अच्छे दिन नहीं आने वाले हैं. 71+2 सीटें यूपी से जीतने के बाद केन्द्रीय मंत्रिमंडल में कुछ ऐसे लोगों को भी शामिल करना पड़ा जिन्हें चाह कर भी प्रधानमंत्री को शामिल करना पड़ा. हाल ही में मंत्रिमंडल विस्तार से लग रहा था कि यूपी के रास्ते मंत्रिमंडल में कुर्सी पाने वाले उन मंत्रियों पर गाज़ गिरेगी लेकिन ऐसा नहीं हुआ. जिस प्रचंड वेग के साथ गुजरात से निकल कर देश की राजनीति पर छाये थे, लग रहा था कि अब सब कुछ अच्छा होता चला जाएगा. लेकिन इसके उलट कुछ केंद्र की कुर्सी पर क़ाबिज़ मंत्री नहीं चाहते हैं कि मोदी उसी रफ़्तार को बनाए रखें. अच्छा हो या बुरा मामले में विरोधी दल मोदी-मोदी ही चिल्लाते हैं. कभी भी किसी अन्य मंत्री का नाम किसी मुद्दे से नहीं जोड़ा जाता है. सोशल मीडिया पर चाहे वो तीन तलाक़ हो या गौ तस्करी में मारपीट के दौरान मार दिया गया हो या किसान द्वारा आत्महत्या हो, या कुछ भी घटना हो उस में सिर्फ और सिर्फ मोदी का नाम ही लिया जाता है. अपने आप को फायर ब्रांड नेता कहने वाले मंत्री इन मामलों में चुप्पी साढ़े रहते हैं, अबकि उन्हें भी विरोधियों के इस तरह के हमलों पलटवार करना चाहिए. ऐसा न करने के पीछे क्या मंशा है, इसे अगर 2014 के नरेंद्र मोदी से जोड़कर देखा जाए तो समझ में आ सकता है. आज भी ज़्यादातर राजनीतिक दल मोदी को पीएम को हज़म नहीं कर पा रहे हैं. इधर अपना नंबर आने के लिए कुछ पार्टी नेता भी परदे के पीछे से सहयोग करने में जुटे जान पड़ते हैं. अपने बढ़ते क़द के कारण पीएम मोदी शायद उन छोटी-बड़ी बातों को उन्हें बताया नहीं जा रहा हैं या फिर इतनी ऊँचाई पर पहुँच चुके हैं कि वो देख नहीं पा रहे हैं. जोकि आगामी 2019 के लोकसभा चुनाव में अत्याधिक नुकसान पहुंचा सकते हैं. इस नुकसान से अपनी पार्टी के नेताओं से अग्रिम पंक्ति में खड़े मोदी पीछे होंगे तो पीछे खड़े नेताओं का बिना हाथ पैर मारे आगे बढ़ जाना रोका नहीं जा सकता है. विरोधियों के मोदी से आगे न निकल पाने पर उन्हें पीछे धकेल कर आगे बढ़ने की रणनीति को अपना लिया है. प्रधानमंत्री को चाहिए कुछ घंटे के लिए पीएम पद का चोला उतार कर 2014 के चुनाव के पहले का मोदी बनकर, अपनी आलोचनाओं से इस बात की जानकारी करें कि देश में क्या चल रहा है. कुछ समय उन विरोधी चैनल्स को देखने में बिताएं जो उनकी बुराइयां ही दिखाने में जुटे रहते हैं. आलोचनाओं से सबक लें तो बेहतर है. ये बहुत ही छोटी घटना है कि बीजेपी बवाना सीट हारी भी और साथ ही तीसरे नंबर पर भी रही. जेएनयू छात्रसंघ बुरी तरह हारना और डीयू चुनाव एबीवीपी का कुछ ख़ास कर पाना कुछ बहुत कुछ कह रहा है. सोशल मीडिया पर मोदी भक्त कहे जाने वाले फेस बुकिये भी पट्रोल के बढ़ते दामों और महंगाई से त्रस्त नज़र आने लगे हैं. इन्हें नज़र अन्दाज करने का मतलब है, आम लोगों में रोष भरते जाना. चापलूसी करने वाले चैनल्स जो दिखा रहे हैं उन्हें न देख कर है, उस चैनल्स को देखिये जो हार बात का विरोध करते हैं, इन्हीं न्यूज़ में कुछ समाचारों पर मंथन करना चाहिए. अपने केन्द्रीय मंत्रिपरिषद के मंत्रियों क्रियाकलापों पर समाचारों के माध्यम से नज़र रख सकते हैं. सातवां वेतन आयोग लागू होने के बाद महंगाई पर क्या असर पड़ा उसकी भी जानकारी करने में ही बुद्धिमानी है. पूर्व वित्तमंत्री पी. चिदम्बरम ने भी कहा था कि इन शिफारिशों को इसीलिए लागू नहीं किया था, क्योंकि इसका असर बाज़ार पर पड़ेगा. आज की तारीख में सिर्फ यही चर्चा है कि पट्रोल के दाम हनुमान जी की पूंछ की तरह बढ़ते ही जा रहे हैं, इसका असर सरकारी बाबूओं पर थोड़ा ही पड़ेगा, लेकिन जो निजी सेवा में हैं और व्यापारी तबके के हैं उन पर ज़्यादा पड़ना ही है क्योंकि उन पर सातवाँ वेतन आयोग लागू नहीं होगा. जनता की मूलभूत ज़रूरतों के बढ़ते दामों पर अंकुश अगर नहीं लगाया तो 2019 के चुनाव में इसके घातक परिणाम होंगे. एक मसल है कि ये व्यक्ति बोलता बहुत कडुवा है. जो भी कडुवा बोलता है वो सत्य ही होता है. एक तरह से देखा जाए तो किसी की आलोचना करने वाला व्यक्ति उसके लिए आईने का काम करता है. कहीं न कही कुछ गलत हो रहा है. महंगाई और तेल की कीमतों के बढ़ने जानकारी न होना बड़ी बात नहीं है,व्यस्तता के कारण सभी बातों की जानकारी न होना सामान्य सी बात है,



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