किसान क़र्ज़ माफ़ी पर नहीं, अपनी समस्याओं के स्थायी समाधान पर जोर दें
अब किसानों के लिए राज्य के चुनाव त्यौहार की तरह होते जा रहे हैं. जब भी ये चुनाव आते हैं इनके लिए सभी राजनीतिक दलों के नेता खुशियों का लालीपॉप लेकर पहुँच जाते हैं.पांच साल तक ये अन्नदाता मौसम की मार से परेशान रहते हैं. इनकी दुर्दशा को सुधारने के लिए राज्य की सरकार और विरोधी दल कुछ नहीं सोचते है,लेकिन जैसे ही 5 साल बीतने को होते हैं, चीथड़ों में लिपटे सूखे चेहरों के लिए सत्ता और विपक्ष दोनों ही के माथे पर चिंता की लकीरें खिंच जाती हैं. कुछ माह पहले यूपी में संपन्न हुए विधानसभा चुनावों में सभी छोटे-बड़े राजनीतिक दलों ने इनकी स्थिति को सुधारने के लिए ढेरों दावे किये. सभी राजनीतिक दलों ने इन्हें मुफ़्त बिजली, पानी, क़र्ज़ माफ़ी आदि की खोखली बातें करते हुए वोट मांगने इनके दरवाज़े पर पहुँचे. लेकिन जैसे ही चुनाव संपन्न हुए. चुनाव में हारे हुए दल इन किसानों की पहुँच से दूर होने ही होते हैं, साथ ही सत्ता पा जाने के बाद राज्य की नवगठित सरकार भी मुंह फेर लेती है. इन मुरझाये चेहरों पर मुस्कराहट चुनाव के दौरान कुछ ही महीनों दिखाई देती है. दोबारा इस मुस्कान को पाने के लिए इन किसानों को 5 साल इंतज़ार करना पड़ता है. ऐसा कई दशकों से चला आ रहा है. देश के अन्नदाताओं की समस्याओं का किसी भी प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री ने स्थायी समाधान नहीं किया. इनकी परेशानियों स्थायी समाधान न हो पाने के लिए किसान स्वयं ज़िम्मेदार हैं. ये बात इसलिए कही कि ये चुनावी वादों जैसे क़र्ज़ माफ़, बिजली का बिल माफ़, पानी आदि के झांसे में आ जाता है. कोई भी राजनीतिक दल नहीं चाहता है कि इनकी समस्याओं को पूरी तरह से खत्म किया जाए. इन झंडाबरदार नेताओं को डर रहता है कि अगर गाँव का ये वोट बैंक संपन्न हो गया तो तो अगले चुनाव में क़र्ज़, बिजली, पानी जैसे लालीपॉप को थामने से इनकार कर सकता है. एक बात बहुत गौर करने वाली ये है कि इनकी खेती की समस्याओं को दूर करने के लिए कोई नेता आगे आता है तो विरोधी दल इन किसानों को किसी भी सूरत में समस्याओं के स्थायी समाधान के बनिस्बत पहले क़र्ज़ माफ़ की करवा लेने की बात कहकर बरगला देते हैं. क़र्ज़ माफ़, फसल चौपट का मुआवजा पाकर ही ये खुश हो जाते हैं,लेकिन कुछ महीनों में जब ये धन ख़त्म हो जाता है तो इनकी गरीबी से जद्दो-जहद फिर शुरू हो जाती है. किसानों को क़र्ज़ आदि माफ़ कराने के बनिस्बत अपनी विपन्नता का स्थायी समाधान खोजने के लिए खुद आगे आना होगा. केंद्र और राज्यों की सरकारों से कसी एक ईमानदार व्यक्ति के साथ एकजुट होकर अपनी समस्याओं के लिए स्थायी समाधान किये जाने पर बल देना चाहिए. जिस दिन किसानों ने स्थायी समाधान किये जाने की बात को ठान लिया उसी समय से इनके दिन बहुरने में वक़्त नहीं लगेगा. जब तक किसान इन नेताओं के कुछ हज़ार या कुछ लाख रुपये के क़र्ज़ माफ़ी के झांसे में फंसे रहेंगे तब-तक समस्याओं का जड़ से समाधान नहीं हो सकता है.





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