भारतीय क्रिकेट के झंडाबरदारों को आस्ट्रेलिया की तरह बड़े लक्ष्य को पाने की सोचनी चाहिए
आस्ट्रेलियाई क्रिकेट टीम का भारत दौरा चल रहा है. इस दौरे में आस्ट्रेलिया 5 एकदिवसीय अंतरराष्ट्रीय मैच और 3 टी-20 अंतर राष्ट्रीय मैच खेल रही है. 5 मैचों की एकदिवसीय श्रंखला के दो मैचों में भारतीय टीम ने कंगारुओं पर पहले एकदिनी मैच में 26 रन से और दूसरे एकदिवसीय में 50 रन से जीत दर्ज की.दोसरे एक दिवसीय मैच में स्पिनर कुलदीप यादव ने विकेट की हैट्रिक बनायी. आस्ट्रेलिय जैसी मज़बूत टीम को शुरू के दो मैचों में हरा लेने से क्रिकेट प्रेमियों में ख़ुशी की लहर दौड़ जानी ही थी. कई तरह के बयान देती हुई आई आस्ट्रेलिय की टीम इन दो मैचों में कुछ ख़ास नहीं का पायी. वर्षा बाधित मैच में 21 ओवर में 164 रन का संशोधित लक्ष्य मिला था, लेकिन आस्ट्रेलिया ने लक्ष्य का असफल पीछा किया और 9 विकेट पर 21 ओवर में 137 रन ही बना सकी. दूसरे एकदिनी में 43.1 ओवर में आस्ट्रेलिया के दसों विकेट 202 रन ही बना सके. सफल श्रीलंका दौरे के बाद इस घरेलू श्रंखला में विराट कोहली ने अपनी अच्छी कप्तानी को साबित करते दिखायी दिए. खबरिया चैनल्स और न्यूज़ पेपर्स से विराट की कप्तानी और कुलदीप फिरकी गेंदबाजी की जमकर तारीफ़ कर रहे हैं. इसी के बीच में वीरू के जुगाडू कहे गए कोच रवि शास्त्री ने बयान दे डाला कि विराट को दोनों तीनों फार्मेट का कप्तान बना दिया जाना चाहिए. अच्छा हुआ कि हेड कोच इतने ही तक सीमित रहे और ये नहीं बोला की उन्हें आजीवन हेड कोच बना दिया जाना चाहिए. यहाँ तक जो लिखा ज़्यादातर ने इसका सजीव प्रसारण देखा होगा. अब मुद्दे पर आते हैं. भारत के क्रिकेट प्रेमी बहुत ही संतोषी टाइप के होते हैं जिनका काम हैं मनोरंजन के लिए क्रिकेट देखो. टीम हार गयी तो दो-चार बढियां सी गाली बको, अगर जीत जाओ तो टीम से जुड़े सभी की तारीफ़ करके भूल जाओ और अपने काम पर लग जाओ. बीसीसीआइ का काम है दौरों के कार्यक्रम बनाना और माल कमाना.कुछ इसी तर्ज़ पर क्रिकेट टीम से जुड़े सदस्य भी करते हैं. बाकी कौन देश क्या रणनीति बना रहा है से कोई लेना देना नहीं होता है. लेकिन इसके उलट विदेशी टीमें खासकर आस्ट्रेलिया और इंगलैंड की टीमें कोई भी सीरिज बेवज़ह नहीं खेलती है. उसके पीछे उनका प्रोफेशनल नज़रिय रहता है. इस बात की सच्चाई को परखने के लिए कई साल पीछे जाना होगा. आस्ट्रेलिया जब भी भारत आती है तो भारत से जाने के बाद इंग्लैड से उसकी श्रंखला शुरू होने का कार्यक्रम लगा होता है. इंग्लैण्ड से खेलने के बाद, विश्व कप क्रिकेट की तारीख लग चुकी होती हैं. कभी भी किसी खेल पत्रकार ने इस विषय पर नहीं सोचा कि ऐसा आस्ट्रेलिया क्यों करता है. अगर खुद इसका जवाब मांगें तो ये बात निकल कर आती है कि आस्ट्रेलिया सही मायने में विश्व कप जीतने की तैयारी के तहत ही भारत से श्रंखला नहीं, भारत के गेंदबाज़ और बल्लेबाजों की थाह पाने के लिए जोर आज़माइश करती है. भारतीय टीम श्रंखला जीतने के लिए खेलती है तो आस्ट्रेलिया विश्व कप जीतने की तैयारी के तहत खेलती है. कभी इस बात पर किसी ने नहीं सोचा होगा कि आस्ट्रेलिया हमेशा विश्व कप की तारीखों के आस-पास ही भारत दौरा क्यों करती है. जैसे ही कोई मज़बूत टीम भारत दौरे पर आती है तो क्रिकेट के अन्दर बाहर के झंडाबरदार श्रंखला में जीतने के लिए मैदानों की सभी सभी पिचों को घूमती गेंदों के लिए तैयार करने लगते हैं. तीनों फार्मेट की श्रंखला जीत जाने पर कप लेकर ख़ुशी मना लेते हैं. हम श्रंखला जीतते या हारते हैं, लेकिन विदेशी फिरकी गेंदबाजी खेलकर अपनी बल्लेबाजी को स्पिन गेंदबाजी खेलने लायक बनाते हैं. याद करना जब भी भारत दौरे पर आस्ट्रेलिया आई और बुरी तरह हारी तो कप्तान की कप्तानी तो जाती ही है साथ ही कुछ खिलाड़ियों को बाहर का रास्ता आस्ट्रेलियाई क्रिकेट बोर्ड दिखा देता है. आस्ट्रेलिया क्रिकेट बोर्ड सभी दौरों में अपने खिलाड़ियों पर पैनी नज़र रखता है. ज़रा भी बैट और बॉल से खिलाड़ी खराब रिजल्ट दिया तुरंत बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है. यही उनके पेशेवर होने की निशानी है, इसी के चलते आस्ट्रेलिया के क्रिकेटरों का खेलने का समय अल्पकालीन होता है. कुछ ही खिलाड़ियों का खेल जीवन रिकी पोंटिंग, स्टीव वां आदि की तरह रहा होगा. विदेशियों का लक्ष्य कुछ बड़ा पाने के लिए होता है, तो भारतीय क्रिकेट टीम से जुड़े सदस्यों का लक्ष्य अपने-आप को स्थापित करने का, यही पेशेवर और गैर पेशेवर के बीच का अंतर है. आस्ट्रेलिया ने अभी से विश्व कप क्रिकेट जीतने के लिए तैयारी शुरू कर दी है, और भारत श्रंखला जीतने के लिए खेल रहा है. भारत के लिए सबसे खतरनाक बीमारी पेड जर्नलिस्ट हैं, इन्हें साम, दाम, दण्ड-भेद से पटाकर तारीफ करा लो और आगे बढ़ते रहो. अब इस बीमारी ने राजनीति से निकल कर खेलों को को भी जकड़ लिया है. आस्ट्रेलिया के पेशेवर खेल पर नज़र डालें तो आस्ट्रेलिया की क्रिकेट टीम ने 11 में 7 फाइनल खेलकर 5 विश्व कप ऐसे ही नहीं जीते हैं. भारत को भी पेशेवर बनना ज़रूरी है. किसी भी खिलाड़ी को उसके अच्छे रिजल्ट के अनुसार ही रखा जाना चाहिए. कुलदीप यादव ने हैट्रिक मार दी तो उसकी जगह कई सालों के लिए पक्की हो गयी है. असली इंतहान भारतीय फिरकी गेंदों का इंग्लैण्ड में होना है, जहाँ पर सीमेंट जैसी पिच पर इन्हें गेंदों को घुमाना है. क्रिकेट टीम और टीम से जुड़े अधिकारियों के प्रति पेशेवर रवैया नहीं अपनाया गया तो कप्तान विराट अंत तक गलतियों से सीखते रहेंगे और इनके पीछे से दगे कारतूस जैसे हेड कोच एक -दो जीत के बाद तारीफी टुकड़ा लगाते रहे तो वो दिन दूर नहीं जब क्रिकेट का भविष्य भी अँधेरे में डूब चुका होगा.




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