किसानों को अपनी समस्याओं के लिए स्वयं आवाज़ उठानी चाहिए
गुजरात में चुनाव के मद्देनज़र कांग्रेस के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राहुल गाँधी तीन दिवसीय दौरे पर हैं.उन्होंने एक सभा को संबोधित करते हुए कहा कि मैनें जब प्रधानमंत्री से कहा तब किसानों का कर्ज माफ़ किया गया. ये खबर सुनकर कुछ अटपटा सा लगा कि जिस पार्टी ने लगभग 6 दशकों तक देश की बागडोर संभाली हो उसका राष्ट्रीय उपाध्यक्ष ये भाषण दे रहा है कि विरोधी दल के प्रधानमन्त्री ने उसके दबाव के बाद किसानों का क़र्ज़ माफ़ किया है. यह बात सोचने पर मज़बूर कर देती है कि कई दशकों तक सत्ता पर काबिज़ रहते हुए कांग्रेस ने इनकी बिगड़ी हुई आर्थिक स्थिति के सुधार के स्थायी उपाय क्यों नहीं किये. प्रकृतिक आपदाओं से हमेशा परेशान रहने वाला किसान क़र्ज़ माफ़ी के बाद अपनी आर्थिक स्थिति को कैसे सुधार ला सकता है.एक किसान जोकि खेतों में जीतोड़ मेहनत करके अनाज उगाता है.कभी उसकी फसल को सूखे की मार या तूफ़ान या भयानक बारिश आदि एक झटके में चौपट कर देती है जोकि उसकी जीवनभर की कमाई होती है पर क़र्ज़ माफ़ी का मरहम कितना कारगर साबित होगा, इस बात को देश और राज्यों की आती-जाती सरकारों को इस पर गंभीरता से सोचना चाहिए. आज इन किसानों की विपन्नता इसी वज़ह से है कि इन्हें क़र्ज़ माफ़ी की राजनीति में सभी दलों ने जकड़ दिया है. जैसे ही चुनावों का मौसम या सत्ता में आने की ललक नेताओं के अन्दर जागती है, ये अपने द्वारा स्थापित किये गए मुट्ठी भर किसानों को लेकर आन्दोलन करने लगते हैं, ऐसे आन्दोलन किसानों की भलाई के लिए कम अपनी सत्ता पर काबिज होने की इच्छा पूर्ति के लिए अधिक होते हैं. किसानों को ऐसे आन्दोलनों से किनारा करके अपनी माली हालत के स्थायी सुधार पर धिक् ध्यान देना चाहिए. इन किसानों को ये बाद अच्छे से समझ लेनी चाहिए कि आन्दोलनों से उनकी आर्थिक स्थिति कुछ दिनों के लिए ही सुधर सकती है. किसानों की समस्याओं के स्थायी समाधान के लिए एक-दूसरे से अलग-थलग पड़े सभी किसानों को एकजुट होकर स्थायी समाधानों के लिए आवाज़ उठानी चाहिए. आज अगर केंद्र की मोदी सरकार ईमानदारी से इनकी समस्याओं का स्थायी समाधान खोज रही है तो किसानों को सरकार के साथ सहयोग करना चाहिए. स्वार्थ की राजनीति करने वालों के हाथों का खिलौना बने रहे तो कभी भी अपनी समस्याओं को ख़त्म नहीं कर पायेंगे.





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