क्रिकेट:भारत का श्रीलंका को हरा लेना, हाथी के पैरों तले चूहा कुचल जाने जैसा
अक्सर देखा है कि कोई बड़बोला नेता गलत बयानी कर जाते हैं, जब फ़ज़ीहत होने लगती है, तो वो अपनी छवि सुधारने के लिए मीडिया का सहारा लेते है. इसके लिए छुटभैय्ये पत्रकारों को कुछ देकर अपनी छवि को चमकाने का प्रयास करते है. कुछ ऐसा ही फंडा फ़िल्मी कलाकार बहुत पहले से अपनाते रहे हैं.अब इस जमात में क्रिकेट खिलाड़ी भी शामिल होते जा रहे हैं. हाल ही में बेहद थके हुए खिलाड़ियों से सजी टीम श्रीलंका को उसके ही घर में भारतीय क्रिकेट टीम ने टेस्ट मैच, एक दिवसीय और टी-20 में हरा दिया. तीनों फार्मेट की इस जीत में कौन सा बेहतरीन कम कर लिया. कहाँ श्रीलंका की थकेले खिलाड़ियों से सजी टीम और कहाँ धुरंधर खिलाड़ियों से भरी टीम भारत. क्षमता में दोनों में ज़मीन-आसमान का अंतर. टेस्ट मैच जीत लिया सीरिज जीत ली . भाग्यवश सभी 50-50 ओवर के मैच भी जीत लिए, अगर पूर्व कप्तान महेंद्र सिंह धोनी ने दूसरे और तीसरे एक दिनी में खूंटा न गाड़ा होता तो श्रीलंका ये सीरिज 2-3 से हारती. फिर इकलौता टी-20 भी जीत लिया. मीडिया को समालोचात्मक लिखना चाहिए था. लेकिन इन छुटभैय्ये खेल पत्रकारों को एक विशेष खिलाड़ी को हाईलाईट करना था.सो इन्होंने उस पर खूब जमकर वाह-वाही लुटायी. भैय्ये ये बात कोई गुल्ली-डंडे खेल प्रेमी भी बता देता कि श्रीलंका बुरी तरह से सभी फार्मेट के मैच हारेगी. संतुलित टिप्पणी ये थी कि जैसा की पूर्वानुमान था, उसके अनुरूप कमज़ोर श्रीलंका को भारतीय क्रिकेट टीम ने बुरी तरह से हराया. ये तो चल जाता, ये क्या कि भारत ने पहली बार विदेशी धरती पर सभी मैच जीते कोई भी मैच नहीं हारा. ऐसे कमज़ोर खिलाड़ियों से सजी टीम से जानबूझ कर हार जाते तो बात दूसरी थी. पड़ोसी बांग्लादेश ने टेस्ट मैच में आस्ट्रेलिया जैसी मज़बूत टीम को पटखनी दे दी. बांग्लादेश जिसमें कोई बहुत नामी-गिरामी खिलाड़ी नहीं है. आस्ट्रेलिया पर बांग्लादेश की जीत को बड़ी जीत माना जा सकता है. एक दिवसीय या टी-20 में बांग्लादेश ने अपने आप को कई बार साबित भी किया है, यकीनन टेस्ट मैच में ये हिंदी फिल्म 'लगान' जैसी भुवन की टीम से ज्यादा नहीं दिखती है. खैर अब ये देखें कि आईसीसी चैम्पियंस ट्राफी में जहाँ मज़बूत टीमों से भिडंत थी तो, उसमें इन लोगों की साँसे फूलती रहीं, जैसे-तैसे फाइनल में पहुँच तो गए, लेकिन एक गलत निर्णय के कारण फाइनल में गेंदबाजों की इतनी कुटाई हुई कि भारतीय टीम के बल्लेबाज़ भी डरकर पतझड़ की तरह गिरते हुए पवेलियन की तरफ उड़ लिए. कहना ये है कि अगर भारतीय टीम का किसी मज़बूत टीम के सामने परफार्मेंस अच्छा है, तो जमकर तारीफ़ करो तो चलेगा, ये क्या कि लगान जैसी भुवन(आमिर खान) की टीम को हराने पर दे तारीफ़, दे तारीफ़ के पुल ही बाँध दिए. अगर कलम और सोच इतनी ही सशक्त है तो अभी से भविष्यवाणी कर दो कि मेहमान आस्ट्रेलिया को किस बुरी तरह से हराओगे या जिताओगे. इसलिए अपने कीबोर्ड को किसी की प्रशंसा में पीटना है, तो तब पीटो जब भारतीय टीम अच्छा करे. वैसे ही आज-कल मीडिया अपनी छवि को धूमिल करता जा रहा है. इसका प्रमाण सोशल मीडिया पर पड़ने वाली गालियों से मिल सकता है. इसलिए किसी को उतना ही उंचा उठाओ जितने में वो ऊपर से नीचे गिरने पर कुर्सी पर अपनी बैठक टिकाने लायक रहे.


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