सोशल मीडिया के विकृत मानसिकता वाले दुष्प्रचारकों के बनिस्बत, सड़क छाप बेवड़े को कुछ तो ईमान की समझ है

नवाबों के शहर लखनऊ में एक क्षेत्र है जहाँ पर एक भीषण पीने वाला बेवड़ा रहता था. बेवड़े से ही समझ गए होंगे कि उस बन्दे ने कितने वसंत झेले होंगे. काम-धाम कर पाने में अक्षम था. इसलिये लोगों से पैसे मांग कर पीने भर के पैसों का जुगाड़ कर लेता था. लेकिन इस बन्दे को ए बात बहुत अच्छे से मालूम थी कि पीना अच्छी बात नहीं है. ये बात कुछ लोगों को इस वज़ह से पता चली कि ये बेवड़ा पीने के पैसे देने वाले को पहचान जाता तो रोक कर उसे कई बढ़ियां गाली बकने के बाद आगे बढ़ जाता. ये खबर कुछ तफरीहबाज़ टपोरियों को पता चली तो सबने मस्ती अर्ने के चक्कर में उसको पैसे भिजवा कर जो मोहल्ले के संकी लोग होते थे उनका नाम बता और घर दिखाकर उसे बोतल भर के पैसे दे देते थे. ये बेवड़ा पीकर आने के बाद जिस व्यक्ति अ नाम बताकर पैसे दिए थे उसके घर के सामने खड़े होकर अच्छी-अच्छी माँ-बहन की गालियाँ बकने के बात किसी चबूतरे पर लेट जाता था. उसे ये बात अच्छे से पता थी कि शराब पीना अच्छी आदत नहीं है, पर पीने से मज़बूर होने के कारण पैसे ले भी लेता था. पीने के बाद जब उसे इस बात का एहसास होता था कि अगर इसने पैसे न दिए होते तो वो पीता नहीं बस इसीलिए वो उस बताये गए व्यक्ति को गरियाता था. मोहल्ले के लड़कों में जब चकल्लस का क्रेज खत्म हुआ तो बेवड़े के सामने पीने पर आर्थिक संकट आ गया. तब बेवड़े को धन जुटाने की नयी तरकीब सूझी, मोहल्ले से बाहर एक चौड़ी सड़क हुआ करती थी, बस इस बन्दे ने एक सफ़ेद कपड़ा,कोई तीन फुट का होगा, लेकर सड़क के किनारे बोरा बिछा कर उस पर लेटने के बाद कपड़े से मुंह और शरीर ढक सकता था, उसे ढक कर लेट जाता था. राह चलते लोगों को लगता कि कोई लाचार भिखारी बीमार है, या मर गया है, इसलिए तरस  खाकर उसके कपड़े पर जेब में जो रेजगारी होती थी, उसे डाल कर आगे बढ़ जाता था. शाम को ठीक पीने के समय बंदा जाग जाता था. देसी ठेके पर जाकर अद्धा या पौवा, इन पैसों से मिल पाता था पीकर लौट लेता था.इस घटना की याद सोशल मीडिया पर एक पोस्ट पढ़ते हुए याद हो आयी कुछ इसी तरह की हालत कुछ प्रतिशत इस बेवड़े जैसे लोगों की है. कुछ लोगों ने वेब सर्विस के नाम पर कुछ टपोरी किस्म के लोगों के सोशल मीडिया में फर्जी अकाउंट खोल रखे हैं. किसी भी व्यक्ति ख़ास कर पीएम मोदी पर ऐसे लोग पोस्ट डालते हैं और ये सड़े-गले अकाउंटधारी अपशब्दों को कमेन्ट में इसलिए लिखते हैं ताकि इनके शौक पूरे हो सकें. फिर जब इस पर और गहराई से इन फेस बुक के मानसिक विकृत लोगों और इस बेवड़े से इनका मिलान किया तो इनके बनिस्बत बेवड़ा कुछ ज्यादा इज्जतदार और सोच वाला लगा.इस बेवड़े को ये बात अच्छे से पता थी कि दारु पीने के पैसे देने वाला उसको गंदे रस्ते पर धकेल रहा है, अगर ये पैसे न दे तो उसकी ये पीने जैसी गन्दी आदत छूट या कम हो सकती है. ये सोशल मीडिया के सड़ी-गली मानसिकता के लोग कुछ पैसे के लिए अपनी आत्मा को इन सोशल मीडिया पर एक्टिव दुष्प्रचार करने वालों को बेच इसलिए देते हैं कि ये इन्हें इसके एवज़ में बियर या अय्याशी करने के लिए कुछ धन देंगे. आज ये सड़े-गले लोग देश के लिए कुछ अच्छा करने में जुटे प्रधानमन्त्री को अपशब्द बोलते हैं क्योंकि इन्हें इसके बदले में कुछ मिलेगा. ऐसे लोगों इस बेवड़े से सबक लेना चाहिए. जो ये तो अच्छे से जानता है कि उसे धन देने वाले उसको बर्बादी के उस रास्ते पर ले रहे हैं, जो अँधेरे भविष्य पर खत्म होता है.

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