गुजरात चुनाव में कांग्रेस को अचानक बदली गयी रणनीति भारी पड़ सकती है
गुजरात चुनाव बीजेपी के तीन वर्षों के काम-काज का सबसे सटीक आंकलन करने की संभावनाओं से इनकार नहीं किया जा सकता है. यह बात इसलिए लिखी, क्योंकि ये चुनाव नोटबंदी और जीएसटी लागू किये जाने के बाद हो रहे हैं. कांग्रेस और अन्य छोटे-बड़े विरोधी दल केन्द्र की मोदी सरकार के सभी योजनाओं और कार्यों का तीन साल तक सिर्फ विरोध ही करते रहे. नोटबंदी जब लागू हुई, तब कांग्रेस समेत सभी विरोधी ने ज़बरदस्त विरोध करते हुए गरीब जनता के भूखे मरने की दुहाई दी थी. लाइन में लगकर मरने वालों के मुद्दे को भरपूर हवा देकर सुलगाने का प्रयास किया था.नोटबंदी के कुछ माह बाद देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव के मद्देनज़र नोटबंदी पर घेरने के चक्कर में जनता को नोटबंदी की खामियां ही गिनाना यूपी की सत्तारूढ़ सपा, कांग्रेस और बहुजन समाज पार्टी के लिए आत्मघाती साबित हुआ था, जिसके परिणाम स्वरुप सभी दलों को बहुत ही बुरी हार का सामना करना पड़ा था. केंद्र की मोदी सरकार ने नोटबंदी की योजना पर नीयत साफ़ थी. जिसके चलते विरोधी दलों का विरोध नाकाम रहा और बीजेपी ने इस विधानसभा चुनाव में ज़बरदस्त सफलता पायी थी. कांग्रेस और अन्य विरोधियों ने केंद्र सरकार की सभी नीतियों का विरोध करके जनता को खुद ही समझा दिया कि हमारा काम विरोध के लिए विरोध करना मात्र ही रह गया है. आम लोगों को भी ये बात समझने में समय नहीं लगा कि नोटबंदी से किन लोगों को नुकसान हुआ है. अगर नोटबंदी, ऑनलाइन पेमेंट और जीएसटी को आपस में जोड़कर देखा जाए तो मोदी सरकार की नीयत देशहित में लिया गया फैसला नज़र आयेगा. कई दशकों से पुराने ढर्रे पर चल रही आम लोगों की जिन्दगी में अचानक आई नोटबंदी से हड़बड़ाट आयी, लेकिन कुछ ही दिनों में बैंकों की लाइन में लग कर रूपये निकालने के बाद सभी ने ये बात महसूस कर ली कि नोटाबंदी देश हित में उठाया गया क़दम है, इसी के चलते नोटबंदी के विरोधी जनता अपने साथ कर पाने में विफल रहे. नोटबंदी और सफलता का चरम तब छू लेगी जब ऑनलाइन पेमेंट के प्रति लोगों में जागरूकता आएगी. ये तब होगा जब कम पढ़ा-लिखा भी इसको समझने लगेगा. अब चलते हैं गुजरात की तरफ जहां साल के अंत तक होने हैं. कांग्रेस सत्ता के ताज के लिए तो बीजेपी सत्ता बचाने के लिए आमने सामने हैं. कांग्रेस कोई भी मुद्दा न होने के कारण जीएसटी को अपना हथियार बनाने की फिराक़ में है. इसके साथ ही आज-कल कांग्रेस के उपाध्यक्ष जोकि कुछ महीनों में अध्यक्ष भी बन सकते हैं, मंदिरों के चक्कर लगाकर अपनी पार्टी को हिन्दू के हित के लिए लड़ने वाली पार्टी के रूप में पेश करने का असफल प्रयास कर रहे हैं. कांग्रेस समेत सभी विरोधी दलों ने ही बीजेपी को हिन्दुओं की पार्टी बनाने में कथित सेकुलर का चोला ओढ़कर भरपूर मदद करते रहे हैं. अब सेकुलर की परिभाषा ये बन गयी है कि आप मुस्लिमों के लिए लड़ों तो सेकुलर. हिन्दुओं के लिए लड़ो तो साम्म्प्रदायिक. ऐसा ही कुछ कई दशकों से चला आ रहा है. अब नयी रणनीति के तहत राहुल गाँधी मंदिरों की परिक्रमा करके ये सन्देश देने की जुगत में हैं कि असली सेकुलर हम ही हैं. इसी के साथ जीएसटी को भी आगे लेकर चलने के मूड में है. शायद कांग्रेस के रणनीतिकारों को ये नहीं मालूम है कि जीएसटी से न जनता को और न ही व्यापारियों को नुकसान होना है. जिस तरह से नोटबंदी सभी के लिए आजीब स्थिति बन गयी थी, कुछ इसी तरह कि स्थिति जीएसटी से व्यापारियों के सामने आ गयी है. स्वघोषित सेल टैक्स देना है. जैसा पहले से करते रहे हैं.अब जीएसटी लागू हो जाने के बाद पूरा बिजिनेस सफ़ेद हो गया है, हिसाब भी सरकार को सफ़ेद में ही देना है. थोड़ी सी सिरदर्दी ये बढ़ी है कि हिसाब अपडेट रखना है, छोटे व्यापारियों को भी जीएसटी नम्बर लेना अनिवार्य है. जिन छोटे व्यापारियों को जीएसटी समझ में आ गया है. वो पीएम मोदी के जीएसटी के सपोर्ट में खड़े हो गए हैं. इनके स्लैब में और छूट दिए जाने के बाद इन्हें भी समझ में आ रहा है कि धीमे-धीमे सुधार ही होता रहेगा. और जीवन सुगम होने की पूरी संभावना है. गुजरात चुनाव दो बातें साबित करेंगे कि कांग्रेस क्या सच में हिन्दूओं की समर्थक है और दूसरी जीएसटी से व्यापारी परेशान है. इसमें कितनी सफलता मिलती है, फ़िलहाल तो ये गुजरात चुनाव के गर्भ में है




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