नोटबंदी और जीएसटी के विरोधियों के मुंह पर तमाचा है धनतेरस पर बाज़ारों में उमड़ी भीड़
पहले नोटबंदी उसके बात जीएसटी पर विरोधियों ने आसमान सर पर उठा लिया. महंगाई बढ़ रही है लोग बेरोजगार और गरीब हो गए हैं. देश पिछड़ गया है, जल्दबाजी में उठाया गया क़दम है,आदि-आदि ऐसा ही कुछ राग अलापते रहे थे. लगता है,विरोधी दलों का काम ही "विरोध के लिये, विरोध करना" भर ही रह गया है. नोटबंदी और जीएसटी पर ये सब सुन-सुनकर ऐसा महसूस होने लगा था कि सच में ऐसा ही कुछ हो रहा है. अगर इस बीच दीपावली का आगमन न होता तो यही समझ में आता कि देश में हालात कुछ ऐसे ही हो गए हैं. माँ लक्ष्मी के आगमन धनतेरस की आहट भर ने ही बाज़ार में धन को ठूंस-ठूंसकर भर डाला कही से भी ऐसा नहीं लगा कि जीएसटी से लोग आहात हैं. अरबों रूपये की स्वर्ण, चारपहिया वाहन, रियल स्टेट आदि में खरीदारी हो गयी. इसके उलट विरोधी अब ख़ास कर दिल्ली के पत्रकार जोकि राष्ट्रीय स्तर पर चिल्लाते हैं, कहने लगे कि बाज़ार पर नोटबंदी का कोई असर नहीं हुआ, काला धन फिर से बाज़ार में आ गया. क्या नफा हुआ नोटबंदी को लागू करके. अब ये जीएसटी को नोटबंदी से अलग करके आमजन को दिखाने का असफल प्रयास कर रहे हैं. इन चिल्ल-पौ मचाने वाले पत्रकारों को ये समझ होनी चाहिए कि जीएसटी अपना लेने के बाद क्या कोई व्यापारी काला धन आसानी से खपा सकता है. एक-एक पैसे का हिसाब लेने के लिए तैयार बैठा आईटी विभाग किसी को इतनी आसानी से निकल जाने देगा. स्वघोषित जीएसटी का मतलब है कि बिक्री के सही आंकड़े न होने पर जान सांसत में पड़ना. आज ऐसे भ्रामक प्राचार को आइना दिखाती हुई घटना हुई. मित्र महोदय के साथ एक फाइव स्टार टाइप की बेकरी से सामन खरीदने गया तो वहां लोगों का हुजूम देखकर मैंने काउंटर पर खड़े मालिक की तरफ सवाल उछाला कि क्यों जी जीएसटी लगने से क्या खाद्य वस्तुएं सस्ती हो गयी हैं. वो मेरे कहने को व्यंग समझ गया और मुस्कराते हुए बोला, जीएसटी से आप लोगों का कोई लेना-देना नहीं है. इससे हम दुकानदारों का सरोकार है. उसकी बात सुनकर समझते देर नहीं लगी कि दिल्ली से आने वाली मीडिया की आवाज़, को ही लोग सच मानते है. इसी का लाभ उठाते हुए ही ये दिल्ली के पत्रकार किसी भी तरह से मोदी सरकार को उखाड़ फैंकने पर आमादा हैं. सब के सब मीडिया बिरादरी के लोग इसमें लामबंद होकर काम कर रहे हैं. इन्होंने एक एक सेट माइंड से मोदी सरकार विरोधी मुहिम चला रखी है. इन बातों से ही समझा जा सकता है कि इनके गले के नीचे पीएम मोदी योजनायें क्यों नहीं उतर रही हैं. अब तक इनके पेट गले-गले तक भरे हुए थे, एकदम से पीएम मोदी ने ख़ाली कर दिया है तो कुछ तो बुरा लगना ज़ाहिर सी बात है. अब ये दिल्ली से आने वाली विरोधी आवाजों का मतलब समझ में आने लगा है. इन आती आवाजों में ग़रीबों के लिए कम, खुद के लिए ज्यादा दर्द है.





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