विकृत मानसिकता के लिंकबाजों के चलते, एंटी-सोशल होता जा रहा है सोशल मीडिया
अब सी ग्रेड मूवी जैसा हो गया है सोशल मीडिया. इन सी ग्रेड मूवी में कुछ भी ढंग का नहीं होता है. अगर कोई ऐसी पिक्चर देखि हो तो याद करना कि उसमें खलनायक और नायक के बीच ढिशुम-ढिशुम बाद अचानक हीरो और हिरोइन गाना गाने लगते हैं. कुछ इसी तरह के इधर-उधर के सीन सिल्वर स्क्रीन पर दिखते रहते हैं. कहाँ से कहाँ रील के टुकड़े जुड़े होते हैं कि ऐसा लगने लगता है कि ये सीन पहले होना था या बाद में, घटनाएं इतनी जल्दी-जल्दी इधर-उधर होती हैं कि सिरदर्द के साथ आँखें भी दर्द करने लगती है. इस तरह की मूवी के लिए खराब एडिटिंग जिम्मेदार होती है. कुछ ऐसा ही आज-कल सोशल मीडिया पर चल निकला है. कुछ लिंक बाज़ फेस बुक की वाल पर बच्चे के पीले किये डाइपर की तरह दाल देते हैं. इन्हीं के जैसे कुछ मंद बुद्धि लोग शेअर भी कर के इस डाइपर टाइप की पोस्ट को दूसरों तक पहुंचाते रहते हैं. न चाहते हुए इनकी डाइपर टाइप की पोस्ट को झेलना पड़ जाता है. बंगलुरु से कब यूपी, यहाँ से कब महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, राजस्थान पहुँच जायेंगे. पता नहीं चलेगा. अब ये लिंकबाज़ भी क्या करें, बियर-बिरियानी खाने को मजबूर पापी पेट के लिए किसी के हाथों तो बिकना ही पड़ेगा. वैसे भी 2014 में जब से नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बनें हैं, तब से कश्मीर से लेकर कन्या कुमारी तक फ़िल्मी स्टाइल में जितनी तेज़ी से घटनाक्रम बदलते हैं, इतनी तेज़ी से कोई नवजात शिशु अपना पोतड़ा गीला-पीला नहीं करता होगा. अब मार्क जुकरबर्ग का भी इन लिंकबाजों की वज़ह से ये डर खत्म होने लगा होगा कि उसकी फेस बुक को अब whatsapp नहीं खा पायेगा. जैसे ही फेस बुक खोलिए तुरंत कोई मुल्ला मोदी को ललकारता हुआ मिल जाएगा. जैसे ही नीचे की तरफ चलने लगेंगे तो देश के कथित महान नेता और छुटभैय्ये झंडाबरदार बाबा राम रहीम की हनी को, तो कोई बीएचयू छेड़ी गयी लड़कियों को, तो कोई बुलेट ट्रेन को, तो कोई नोट बंदी पर उम्र का शतक मारने में 20 साल कम सिन्हा साहब के प्रवचन को, तो कोई महाराष्ट्र के फुट ओवर ब्रिज भगदड़ को तो कोई रोहिंग्या घुसपैठियों का दर्द लिए, आदि-आदि घटनाओं पर डुग-डुगी बजाता कुछ उसी तरह से नज़र आता है जिस तरह सी ग्रेड की एडिटिंग की हुई पिक्चर. फेस बुक वाल पर टंगी पोस्ट में सिर्फ एक ही इंसान केंद्र में होता है, वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी. आज-कल न्यूज़ चैनल्स की पौ-बारह है, बिना हाथ-पैर हिलाये, बैठे-बिठाले अपनी नेतागीरी दूकान चमकाने के लिए वीडियो आदि सब मुहैया करवा देते हैं. जिसे चकरघिन्नी की तरह 24 घंटे चला-चलाकर अपनी टीआरपी बढ़ाते रहते हैं. इतनी घटनाएँ एक साथ फेस बुक वाल पर होती हैं कि कमेंट्स देना कुछ होता है, लिख कुछ जाता है. भारत की क्रिकेट टीम ने कंगारुओं को 4-1 से हरा दिया, इस पर किसी ने भी ख़ुशी नहीं जतायी, पर रोहिंग्याओं का रोना ज़रूर रोया. कभी-कभी मार्क जुकरबर्ग पर इस बात को सोचकर तरस आता है कि बेचारे ने कितनी बुद्धि लगाकर दुनिया के किसी कोने में पहुंचाने का सस्ता और अच्छा माध्यम इज़ाद किया था, लेकिन भारत के बुद्धिजीवियों देश से बाहर जाना ही नहीं चाहते हैं. किम जोंग क्या करने वाला है, ट्रंप उसके खिलाफ क्या एक्शन लेंगे, चाइना किसके साथ है. मोसुल में शांति दूत आतंकवादी किन्हें मार काट रहे हैं की जानकारी से पहले ये देखना चाहता है कि जीडीपी के क्या हाल हैं. अब तो लेपटॉप खोलो कोई सी ग्रेड मूवी देख लो. बहुत न सही कुछ तो मनोरंजन हो ही जाएगा.




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