बीजेपी के लिए नासूर न बन जाये इन नेताओं के दिल पर लगी चोट
एक मसल होती है, "तू कौन, खामखाँ" इस टाइप के लोग किसी बात से कोई लेना देना न हो फिर भी उसमें अपनी टांग फंसा देते हैं. जैसे की अपने पुराने हीरो शत्रुघ्न सिन्हा हैं और यशवंत सिन्हा हैं. अभी हाल ही में अटल सरकार में वित्तमंत्री रहे थे. जो 2004 में अटल सरकार के जाते ही टीवी स्क्रीन से पूरी तरह से गायाब हो गए थे. यूपीए-1- आई और गयी इनका कोई अता-पता नहीं मिला. 2009 में हुए लोकसभा चुनाव में भी सिन्हा+सिन्हा कुछ ख़ास नहीं कर पाए, जिसके परिणाम स्वरूप यूपीए-2 का कार्यकाल एक बार फिर से आ गया. इन दस वर्षों में बीजेपी में कोई भी फायर ब्रांड नेता नहीं पैदा हुआ. इसी का लाभ कांग्रेस और अन्य सहयोगी दलों ने उठाते हुए यूपीए तो को रिपीट करने में सफलता पा ली थी. 2014 में पूर्व प्रधानमंत्री वाजपेई के साथ चलते दिखने वाले नेता उनसे कुछ क़दम पीछे चलते नज़र आये. अटल सरकार के शाइनिंग इंडिया को धता बताकर कांग्रेस+ ने केंद्र की सत्ता पर जोड़तोड़ से अपना परचम लहरा लिया था.हैरानी होती है इस बात कि ये नेता आज जब गुजरात में ही लगभग 14 वर्षों तक राजनीति करने वाले नरेंद्र मोदी ने अपने बूते जब प्रचंड बहुमत की सरकार बनायी तो ये सब एकजुट होकर हिस्सा बाँट के लिए आ जुटे. जन सेवा भाव से चुनाव लड़े नरेंद्र मोदी ने पीएम की कुर्सी संभाली तो इन सबका आंकलन करते हुए कोई भी मंत्री पद न दिए जाने का फ़ैसला किया गया. होना भी यही चाहिए था. जुगाड़ के सामने दो बार आत्मसमर्पण करते हुए. कुछ ख़ास न कर पाने के बावजूद यूपीए को 10 साल तक सत्ता दे देना ही इनकी कमजोरी को जतलाता है. पीएम मोदी के किनारे लगाए जाने के बाद इन्हें अपने अपमान की चिंता हो गयी. ये चिंता तब किस ताख पर रख दी थी,जब अटल बिहारी वाजपेई सत्ता में वापसी नहीं कर सके थे. तब ये आग उगलने वाले नेताओं के मुंह से धुंआ ही निकल रहा था. आज यशवंत सिन्हा और शत्रुघ्न सिन्हा घूम फिर कर अपनी ही पार्टी की सरकार पर हमला करने पर आमादा हैं. पाकिस्तान पर सर्जिकल स्ट्राइक, नोटबंदी और और जीएसटी पर उठाये क़दम पर मीन-मेख ही निकालते रहे हैं. बीजेपी में शत्रुघ्न सिन्हा को ही लीजिये जो नरेंद्र मोदी के बूते सांसद बन गए. इनके सुर हमेशा ही बिगड़े रहते हैं और हमेशा ही केंद्र की मोदी सरकार पर हमले की ताक में रहते हैं. अब कोई फिल्म मर्सल में जीएसटी और नोटबंदी पर विवाद होते ही बिहारी बाबू हवा में तलवार भांजने में लगे हुए हैं. भाजपा के हाई कमान को इनसे पूछना चाहिए कि जब अटल सरकार जाने के बाद 10 साल का सूखा काट रहे थे, यूपीए का विरोध क्यों नहीं किया. दर्ज़नों घोटालों से खरबों रूपये का नुकसान देश को हुआ, तब ये बोल-बचन कहाँ चले गए थे. जबकि विपक्ष का काम ही सरकार के गलत कार्यों पर विरोध प्रकट करना होता है. इन नेताओं के बात-बात पर मोदी सरकार के कार्यों का विरोध करना साफ जतलाता है कि चोट गहरी लगी है. बीजेपी आला कमान को चाहिए कि इनकी चोट का इलाज समय रहते करे वरना ये नासूर बनने के बाद जानलेवा साबित हो सकती है.



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