घाटी में आने वाले अच्छे दिनों का श्रेय बीजेपी और पीडीपी को

जम्मू-कश्मीर में ढ़ाई दशक पहले राज्य के चुनाव में गड़बड़ी के कारण बवाल हुआ. इस गड़बड़ी का सभी कश्मीरियों ने विरोध किया. जब उनकी एक न चली तो उन्होंने राज्य के चुनाव का बहिष्कार करना शुरू कर दिया. परिणाम स्वरुप एनी.सी. और आई.एन.सी. की सरकारें आती-जाती रहीं. ये बहिष्कार करने वाले लोग विद्रोही हुए तो बहिष्कार करने वाले से जंगजू बन गए. कुछ वर्षों में पाकिस्तान की नज़रें इधर पड़ी तो उसने अपनी गोते आईएस आई के द्वारा बिछा कर आतंकवाद को बढ़ावा दिया इसका सीधा लाभ दोनों प्रमुख दलों को मिलने लगा. आतंकवादियों की आमद बढ़ी तो वहां से कश्मीरी पंडितों को खदेड़ने का काम शुरू हो गया. बर्बर व्यवहार को झेलने के बाद ये कश्मीरी पंडित जम्मू तवी में सीमित हो गए. इनका कोई पुर्सा हाल नहीं था.परिवार का पेट पालने की मज़बूरी ने कश्मीरी पंडितों को राज्य में रोज़गार की तलाश में फैलने पर मज़बूर कर दिया. इसी दौरान एक नयी पार्टी पीडीपी( मुफ़्ती मोहम्मद सईद)का जन्म हुआ. जम्मू-कश्मीर, दो हिस्सों में बंट गया. इस बात को राज्य में हुए पिछले विधानसभा चुनाव से समझा जा सकता है. जहाँ जम्मू में बीजेपी ने 25 सीटों पर जीत दर्ज की थी, तो वहीँ घाटी में पीडीपी ने 28 सीटों पर अपना परचम लहराया था. जहां जनता ने सत्तारूढ़ नेशनल कांफ्रेंस को नाकारा वहीँ, कांग्रेस को पूरी तरह से बाहर का रास्ता दिखा दिया. अब सवाल ये उठता है कि कांग्रेस जम्मू-कश्मीर में किस विकास की बात कर रही है. हाँ एक बात का विकास वहां ज़रूर हुआ कि चुनाव में हुई धांधली के विरोध में उतरे कश्मीरी पहले तो बहिष्कार करने वाली जनता बनें, उसके कुछ साल बाद वो जंगजू कहे जाने लगे. जब पाकिस्तानी आईएसआई ने अपने आतंकवादियों की आमद बढ़ाई तो ये आतंकवादी कहे जाने लगे. सबको किनारे हटा कर कश्मीर पर आतंकवादियों ने साल-दर-साल बीतने के साथ ही अपनी पकड़ वहां बचे लोगों पर बना ली. जैसा आतंकवादी चाहते थे, उसी की पार्टी की कश्मीर में जीत तर्ज़ करने लगी. कुछ साल अब ये अलगाववादी कहे जाने लगे. शायद कांग्रेस इसी विकास की बात कर रही है. पहली स्टेज पर वहां की जनता नोटा बनी. दूसरी स्टेज पर ये जंगजू, बनी तीसरी स्टेज पर वहां की जनता आतंकवादी बनी. आज चौथी स्टेज पर ये अलगाववादी कहे जाने लगे हैं. अब इसे ही विकास कहा जाए तो भई सही है.एमएम सईद की पीडीपी ने बहुत ही सूझ-बूझ का परिचय देते हुए, नरेंद्र मोदी सरीखे ताक़तवर पीएम का साथ सिलिये पकड़ा क्योंकि आतंकवादियों का भय दिखाकर जम्मू-कश्मीर की सरकार को ब्लैकमेल करने की राजनीति से छुटकारा मिल जाएगा. कुछ ऐसा ही कश्मीर में कई दशकों से होता रहा है. जिसके ज़ख्म एन.सी. के शरीर पर देखे जा सकते हैं. अगर वहां की सत्तारूढ़ पार्टी केंद्र सरकार की बात नहीं मानती थी तो उसे बर्खास्त किये जाने का डर बना रहता था. बर्खास्तगी की मर झेलने वाली पार्टी के नेताओं पर आतंकवादियों का कहर बरप जाता था. दोतरफा मार के कारण ही जम्मू-कश्मीर हमेशा सुलगता रहा था. ये सच है कि जम्मू-कश्मीर से हिन्दू भगाए गए थे.अगर देखा जाए तो वहां से अमन चैन से रहने की सोचने वाले मुस्लिम परिवार भी पलायन करते चले आ रहे है. कांग्रेस किस आजादी की या विकास की बात कर रही है, इसका जवाब इन्हीं के पास है. अगर विकास का मतलब पलायन होता है तो जम्मू-कश्मीर में ज़बरदस्त विकास हुआ की बात को मानने में कोई हर्ज़ नहीं है. देखने में महबूबा मुफ़्ती तेज़-तर्रार न दिखती हों, लेकिन बीजेपी के साथ सरकार बनाने का उनका फैसला उन्हें एक कठोर महिला साबित करता है. जिस तरह से महबूबा ने जम्मू-कश्मीर के बिगड़े हालातों को हैंडल किया है उससे साफ़ तौर पर दिख रहा है कि कश्मीर में जल्द सब कुछ सामान्य हो जाएगा. अगर शान्ति बहाल होती है तो इसका श्रेय महबूबा मुफ़्ती की पीडीपी और मोदी की बीजेपी की जाएगा. 



    

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