भारत में नहीं पैदा हुए थे, इसीलिये बाल-बाल बच गये सर न्यूटन
गूगल पर खोज-बीन करना अब आदत सी बन चुकी है. इसके पीछे का कारण, सोशल मीडिया पर मिलने वाले अलग-अलग वैराइटी के लोग हैं. अक्सर सोशल मीडिया पर देखा है कि कुछ अत्याधिक झोलाछाप बुद्धिमान अपनी ही जैसी अजीबो-गरीब खोज को ला कर उसपर कुछ मिनट का शोध करके चार लाइन लिख इनके माध्यम से अपने सिर में बसने वाले पचास ग्राम के ज्ञान के भण्डार से लोगों को अवगत कराते रहते हैं. अक्सर फेस बुक वाल पर टंगी इनकी बुद्धिमता को दर्शाती पोस्ट देखकर यही इच्छा होती है कि पैर में कुछ पहन रखा हो उससे अपना मुंह पीट लिया जाये. फिर हाथ इसलिए रुक जाते हैं कि इन बुद्धिजीवियों के कर्मों की सज़ा खुद को क्यों दी जाए. बस फेस बुक के इन्हीं बुद्धिजीवियों ने ही गूगल में टहलने की आदत दाल दी है. इसी खोज के तहत विकीपीडिया में लकड़दादा के समकालीन आइजैक न्यूटन से भेंट हो गयी. जब इस महान हस्ती के बारे में सरसरी तौर पर पढ़ा तो पता चला कि इन्होंने ही पेड़ से सेब को ज़मीन पर गिरते-गिरते कुछ ही क्षणों में गुरुत्वाकर्षण की खोज कर ली थी, आगे चलकर महान वैज्ञानिक बनें. ये बड़ी रोचक घटना है कि कोई व्यक्ति पेड़ से गिरते फल (सेब) पर इतने कम समय में कैसे किसी निष्कर्ष पर पहुँच सकता है. ये सवाल इसलिए मगज में कुलबुलाने लगा. इसके पीछे आज़ादी के बाद से लोगों के दिमागों की गंदगी को त्वरित गति से देश और दुनिया के किसी भी कोने में फैलाने का माध्यम सोशल मीडिया है. भला हो गॉड का, आइजैक न्यूटन भारत में न पैदा करके इंग्लैड में पैदा किया. लकड़दादा के समकालीन न्यूटन अगर इत्तेफाक़ से भारत में पैदा हो गये होते तो उनके पेड़ से गिरते सेब की थ्योरी का भारत के मंद बुद्धिजीवी तियां-पान्चा कर देते. जैसा कि अब तक होता आ रहा है कि आज़ादी पाने के बाद भी कुछ प्रतिशत दिमाग से सड़े-गले लोग, ये डिसाइट नहीं कर पाए हैं कि भारत को आज़ादी 1800 में किसी को मारने के लिए इस्तेमाल होने वाले देसी कट्टे से मिली कि बापू के अहिंसक आन्दोलन से. अक्सर बीच-बीच में बाकायदा कुछ बुद्धि के पीछे लट्ठ लेकर घूमने वालों के बीच बहस चलती रहती है. सपोज कीजिये अगर कहीं लकड़दादा न्यूटन भारत में पैदा होकर, गुरुत्वाकर्षण की खोज कश्मीर में न करके(कश्मीर इसलिए लिखा क्योंकि सेब वहीं के फेमस हैं) किसी अन्य राज्य में कर लेते तो पहले तो वो अपने पैदा होने पर अपना सर पीटते, उसके बाद सेब के पेड़ से ज़मीन पर गिरने से गुरुत्वाकर्षण की खोज की थ्योरी पर ऊँगली उठने लगती. कोई बंदा पत्रकार वार्ता करके पूछने लगता कि कैसे मान लें कि जिस राज्य में सेब के पेड़ नहीं होते हैं,वहां पर न्यूटन ने कैसे सेब को पेड़ से गिरते देख लिया, सब फ़र्ज़ी है, इन्हें ये बात साबित करनी चाहिए. कोई लिख मारता कि कश्मीर के सेब जब सबसे प्रसिद्द हैं तो ये खोज वहीं की जा सकती है. आम गिरते हुए या अमरूद गिरते, या बिजली के खम्भे से लाइनमैन को गिरते देखकर ये खोज कि होती तो गले उतरने वाली बात थी. कोई मंद बुद्धिजीवी अपना शत-प्रतिशत देने के लिए प्रवचन दे रहा होता कि न्यूटन को ये बात भली-भांति पता होनी चाहिए कि पेड़ पर उगने वाले किसी भी फल के पंख नहीं लगे होते हैं, पंख सिर्फ पेड़ पर बैठने वाले पक्षियों के होते हैं, जो पेड़ से ज़मीन पर गिरने के पहले ही उड़ जाते हैं. न्यूटन का ये गुरुत्वाकर्षण का नियम फ़ालतू का है. अगर न्यूटन भारत में पैदा हुए होते तो पहले इनके ओरिजनल एजुकेशन के दस्तावेजों की जांच शुरू किये जाने की मांग उठने लगती. इस के लिए कितनी ही आरटीआई डाल दी गयी होतीं कि बेचारे न्यूटन जीवन भर अपने गुरुत्वाकर्षण के नियम को कोसते हुए इस दुनिया से निकल लिये होते. देश के महान वैज्ञानिक डॉक्टर एपीजे कलाम अपने मिसाइल बनाने की सोच के कारण विवादों में घिरने से इसलिए बचे हुए हैं कि वो मुस्लिम हैं, वरना आपको भी सेकुलर फोर्सेज ये कहते हुए कि रावण के जलाये जाने पर होने वाली आतिशबाजी से मिसाइल बनाने की कैसे सोच सकता है. वैसे भारत में कुछ संभव है. आने वाले दशकों में कोई आधा-अधूरा मंद बुद्धिजीवी इस मुद्दे को सोशल मीडिया पर उठा सकता है. अगर आइजैक न्यूटन भारत में पैदा हुए होते और मृत्यु के बाद देश के किसी कोने में दफनाये गए होते तो इनके खिलाफ डाली गयी आरटीआई इन्हें गुरुत्वाकर्षण के नियम के विरुद्ध ज़मीन से निकाल कर बाहर सतह पर ले आती.



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