डर है कि कहीं यशवंत सिन्हा का हाल पटवारी जैसा न हो जाये
यशवंत सिन्हा बार बार एक ही बात को रिकार्ड प्लेयर में फंसी सुई की तरह एक ही बात दोहरा रहे हैं कि अब मैं चुप नहीं रहूंगा... अब मैं चुप नहीं रहूंगा...कौन है भई,जो इन्हें चुप रहने के लिए कह रहा है और ये हिलक-हिलक के न चुप बैठने की बात कर रहे हैं. कुछ भी हो पूर्व में वित्तमंत्री रहे सिन्हा साहब को चोट बहुत गहरी लगी है, जिसकी वज़ह से इतना बिल्लाये हुए हैं, ये इनके साथ ही नहीं सभी के साथ होता है, जैसी परिस्थिति इनके साथ है. लोकसभा चुनाव के बाद मोदी सरकार के गठन के बाद से बीजेपी के बुजुर्ग नेता केन्द्रीय मंत्रिमंडल में जगह न मिलने पर प्रधानमंत्री मोदी से बहुत खफ़ा हैं. इस विवाद पर एक बहुत प्रचलित मसल याद आ गयी कि 'बस्ती बसी नहीं, लुटेरे आ गए. ऐसा ही आज की राजनीति में कुर्सी पाने के लिए होता आ रहा है. कई तो पार्टी की गाइड लाइन के विपरीत कुछ ही महीने बीतने पर म्यांन से तलवार निकलकर धार लगाने में जुट गए थे. कई बार अरुण सौरी के सुर बिगड़े, इसमें सुर से सुर मिलाने में मुरली मनोहर जोशी एल के आडवाणी आदि वरिष्ठ नेता शामिल हो गए. बोलने के के बाद जब कुछ भी हासिल नहीं हुआ तो चुप्पी साध ली. इनमें यशवंत सिन्हा भी टुकड़ा लगाते रहे थे. दो साल का मोदी सरकार का कार्यकाल बीतने पर तो यशवंत सिन्हा नहीं बोले, लेकिन नोटबंदी और जीएसटी के बाद गिरी जीडीपी के बाद अब नॉन स्टॉप बोलना शुरू कर दिया है. अब सवाल ये है कि सरकार का जो मुखिया होता है, जिसके निर्णय सभी को मान्य होते हैं. कोई एक साल पहले क्रिकेटर से नेता बने कीर्ति आजाद कुछ दिन तक वितमंत्री अरुण जेटली पर हमलावर रहे थे. इनके पिक्चर से बहार होते ही बाक़ी बुजुर्ग नेता भी मौन साध के किनारे हो गए. कुछ अनकहे सवाल हैं कि अगर काबिलियत थी तो क्यों नहीं अटल जी की सरकार में ऊँचे ओहदे पर रहते हुए भी कुछ नहीं कर पाये. अगर अटल सरकार के पांच साल पर नज़र फेरी जाए तो बहुत अच्छे से 13 पार्टियों को लेकर सरकार चली थी. ताबूत काण्ड जैसे एक दो स्कैम उछाले थे. 2004 में चुनाव हुए तो मुख्य विरोधी पार्टी कांग्रेस ने बीजेपी के सकात्मक प्रचार शाइनिंग इण्डिया को नकारात्मक प्रचार में बदल कर केंद्र की सत्ता में वापसी कर ली थी. उसके बाद वाजपई जी जैसा कोई यशवंत सिन्हा समेत कोई भी नेता भाजपा में नहीं उभरा जो बीजेपी की केंद्र की सत्ता में वापसी करा पाता. ये सिलसिला अगले पांच साल और चला था. इसी पर यशवंत सिन्हा से सवाल है कि जब आप में इतनी ही काबिलियत थी तो बीजेपी की कमान संभालते हुए सता में वापसी करके अपनी आज की जैसी जुझारू प्रवृति को दिखाना चाहिए था. जिस तरह से मोदी सरकार के फिलाफ मोर्चा खोल रखा है, कुछ ऐसा ही यूपीए-1 में कर दिखाना था. इसमें भी नहीं कुछ कर पाने की कूबत थी तो यूपीए-2 में कुछ कर ले जाते. यशवंत सिन्हा इस समय बीजेपी में कैकई की भूमिका में हैं. जो अपनी बात मनवाने के लिए कोप भवन में जा जमी थी. अगर अटल सरकार के समय आपकी वित्त नीति सही थी और देश सही दिशा में आगे बढ़ रहा था तो आपका शाइनिंग इण्डिया क्यों नाकाम रहा था. जिसे जनता तक पहुंचाने की जिम्मेदारी आप जैसे नेताओं की ही थी. अगर रिपीट नहीं हो पाए तो वो आप लोगों की नासमझी का परिणाम था. छल-कपट की राजनीति से कोसों दूर पूर्व प्रधनमंत्री अटल बिहारी शाइनिंग इण्डिया के विरुद्ध नकारात्मक प्रचार को नहीं पहचान पाए थे तो आप जैसे दूसरों को तो आगे आना चाहिए था. आज की तारीख में आपका अर्थ व्यवस्था समेत बाकी सभी मुद्दों पर बयान देने से साफ़ ज़ाहिर हो रहा है कि जो आप बोल रहे हैं उसकी स्क्रिप्ट विरोधियों की है, आपके मुंह का इस्तेमाल कर रहे हैं. अपने आपको इस्तेमाल न होने दें तो ही बेहतर है. यह इसलिये कहा कि आज जो देश की बागडोर संभाले हुए है. उससे नकारात्मक राजनीति कर के जीत पाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है.विपरीत परिस्थितियों को अनुकूल बना लेना पीएम मोदी के बायें हाथ का खेल है . बहुत पिछली एनडीए सरकार में वित्तमंत्री रहते हुए थोड़ी बहुत उपलब्धियां हासिल की हैं उन पर पानी न फेरे, इसी में आपका सम्मान निहित है.



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