गुजरात में विनिंग लाइन से बहुत दूर पर खड़ी है राहुल गाँधी की कांग्रेस
गुजरात और हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव की तारीखें घोषित होने से पहले ही कांग्रेस ने पार्टी उपाध्यक्ष राहुल गाँधी को मैदान में उतारकर जो बढ़त बनाने की कोशिश की थी उसमें विफल होती दिखाई दे रही है. कांग्रेस ने यूपी में चुनाव की हार से सबक लेते हुए आम लोगों तक तेज़ी से पहुँचने के लिए सोशल मीडिया पर जमकर काम किया. लेकिन राजनीति के दाँव-पेंच पर कमजोर पकड़ के कारण कुछ ख़ास कर पाती नहीं दिखाई दे रही है. जिस खूबी से मोदी ने लोकसभा चुनाव में सोशल मीडिया के माध्यम से शहर से लेकर गाँवों तक अपनी पकड़ बनायी थी उसी का परिणाम है कि वो देश के प्रधानमंत्री हैं. सुव्यवस्थित तरीके से सोशल मीडिया को संचालित करने वाली टीम मोदी ने ज़बरदस्त तरीके से आम लोगों के सामने मोदी के गुजरात के विकास को मुद्दा बनाकर पेश किया उसकी सराहना कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने भी की थी, वरिष्ठ कांग्रेसी नेता को नरेंद्र मोदी की सोशल मीडिया के इस्तेमाल करने के बयान को तारीफ़ न समझकर उसे आने वाले दिनों में चेतावनी के रूप में न लेकर सभी छोटे-बड़े लीडरों ने जयराम रमेश के बयान को मोदी तारीफ़ से जोड़कर देखा और हाई कमान को ये बात कह कर सन्देश दे डाला कि अगर मोदी इतने अच्छे लगते हैं तो रमेश को भाजपा में शामिल हो जाना चाहिए. अगर सही तरीके से वरिष्ठ कांग्रेस नेता रमेश के बयान को पार्टी के अन्य नेता आने वाले तूफ़ान की आहट की तरह लेते तो आज कांग्रेस कुछ राज्यों में हारने से बच सकती थी. लेकिन दस साल तक मौज करने वाले कांग्रेसियों को लगा कि वो मनमोहन सिंह की ईमानदारी के बूते तीसरी बार चुनाव जीत जायेंगे, इसी अहंकारी सोच की वज़ह से पार्टी के रणनीतिकार नरेंद्र मोदी को हल्के में ले बैठे थे, जिसका परिणाम सभी को मालूम है. राज्यों के चुनावों में हार दर हार के बाद कुछ ऐसी ही गलती कांग्रेस ने गुजरात में दोहरानी शुरू कर दी है. जहां पर प्रधानमंत्री मोदी की साख दाँव पर लगी हुई है जैसे राज्य कांग्रेस ने एक बार फिर से भोथरी धार वाली तलवार लेकर चुनाव मैदान में राहुल गाँधी को उतारा है. बार-बार राहुल गाँधी पर ही दाँव लगा कर कांग्रेस क्या पाने की उम्मीद कर रही है ये तो पार्टी के नेता ही बता सकते हैं. मतदान की तारीखें नज़दीक आ चुकी हैं, लेकिन सोशल मीडिया पर कांग्रेस चुनाव जीतने पर जनता के लिए क्या नया करेगी कहने के स्थान पर सिर्फ दो बातों को नोटबंदी और जीएसटी पर अपने विरोध को ही प्रचारित करने में जुटी हुई है. राहुल कभी नोटबंदी का रोना रोते हैं तो कभी जीएसटी को गब्बर सिंह टैक्स बता कर गुजात की जनता से तालियाँ पिटवा लेते हैं. या किसी प्लाट की गयी लड़की के साथ सेल्फी खींचने की घटना को कुछ ऑनलाइन न्यूज़ पेपर्स के द्वारा प्रोमोट करवाते हैं या फिर राहुल गाँधी की जूडो के दाँव-पेंच वाली तस्वीरों को वायरल कर आदि कर क्या जनता से कहना चाहते हैं समझ से परे है. कोई साल भर पहले हार्दिक पटेल से पाटीदार आन्दोलन करवाने के पीछे क्या सोच थी ये चुनाव में कतना नफा देती, इसकी हवा तब निकल गयी जब हार्दिक पटेल को अपनी नेतागीरी ही खतरे में पड़ती दिखने लगी. हार्दिक ने बुद्धिमानी का काम करते हुए समय रहते कांग्रेस से किनारा कर लिया. दो नेता चुनाव से ठीक पहले लांच किये गए, जो कुछ ख़ास लाभ पहुंचाते में असफल होते दिख रहे हैं. इस तरह से चुनाव में बार बार असफल होने के पीछे कांग्रेस के नेताओं की नकारात्मक सोच मुख्य भूमिका में नज़र आ रही है. इस तरह की निगेटिव सोच लेकर चुनाव में उतरने का कांग्रेस को कितना नफा मिलता है ये गुजरात और हिमाचल प्रदेश के चुनाव नतीजे आने के बाद ही पता चलेगा. फिलहाल इन बचकाने किस्म की बातों से चुनाव जीतने का मुगालता कांग्रेस को ले डूबेगा. अभी तक देखा जाए तो कांग्रेस दोनों राज्यों की विजयी रेखा से काफी दूर पर दिख रही है. इन राज्यों में हारने के बाद कांग्रेस को बहुत ही गहराई से आत्ममंथन करना पडेगा.




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