भंसाली को पद्मावती की रिलीज के लिए देश की जनता से एनओसी लेना ज़रूरी है
संजय लीला भंसाली की बनायी पद्मावती मूवी पर चल रहे विवाद के कारण मन में उपजे सवालों से आम लोगों को अवगत करने की इच्छा जाग गयी. फ़िल्मी मैगजीन में पढ़ने को मिलता रहा है कि कई दशकों से फिल्म मेकर्स बॉलीवुड के स्टार कलाकारों के स्थापित चरित्र के अनुरूप कहानी लिखवाते रहे हैं. कुछ दशक पहले एक साक्षात्कार में पढ़ा था कि सलीम(सलमान के पिता) जावेद(जावेद अख्तर) ने ही अमिताभ बच्चन को "एंग्री यंग मैन" बनाया. अमिताभ बच्चन की मूवी जंज़ीर के सफलता पाने के बाद से सलीम-जावेद की जोड़ी ने उनके एंग्री यंग मैन के चरित्र को अपनी कलम से नयी ऊँचाइयाँ दी थी. इस चरित्र को अमिताभ बच्चन ने बाखूबी निभाया था. इसके चलते उनकी फिल्मों बॉक्स ऑफिस पर अपार सफलता पाने के बाद नए आयाम स्थापित किये थे. इसी तरह से कहानी लेखकों ने नाना पाटेकर को भी एक सनकी व्यक्ति के चरित्र में ढाला था. नाना की कई मूवी उनके विलेन के रूप में पसंद की गयी, चेहरे से औसत होने के बावजूद वो बॉलीवुड के चिकने-चुपड़े हीरो पर हॉवी होते चले गए थे और उन्होंने अपनी एक अलग पहचान बनायी. इनके बाद के आये हीरो में शाहरूख खान को सामने रखते हुए ही फिल्म मेकर्स मूवी बनाने रहे और ये सिलसिला अब भी ज़ारी है.इन सब चरित्रों को टाइप्ड रोल कह सकते है. कई दशक तक जुड़वा भाइयों और बहनों, मेले में बिछड़ जाने वाले परिवार,ईमानदार पुलिस अधिकारी और व्यक्ति, अंडरवर्ल्ड आदि पर हिंदी फ़िल्में हमेशा ही काल्पनिक पात्रों पर आधारित होती हैं. विरले ही फिल्म मेकर्स रहे हैं जिन्होंने सत्य घटनाओं पर आधारित फिल्मों का निर्माण किया है. अगर हॉलीवुड और बॉलीवुड की तुलना की जाए तो बॉलीवुड उसके सामने कहीं भी नहीं ठहरता है. हॉलीवुड भविष्य में होने वाली घटनाओं, ग्रहों से आये इटी, साइंस फिक्सन, युद्ध की ऐतिहासिक घटनाओं आदि पर शानदार मूवी बनाने में उन्हें महारथ हासिल है. आज हॉलीवुड की हिंदी में डब की गयीं मूवी इंग्लिश न समझने वाले लोगों में अपनी मज़बूत पैठ बना चुकी हैं. इन्हीं युवाओं में से एक ने कई दर्ज़न हॉलीवुड मूवी के नाम गिना डाले. कई दशकों का लंबा सफर तय कर चुका हिंदी सिनेमा आज तक एक भी ऐसी मूवी नहीं दे सका जो ऑस्कर जीतने में सफल हुई हो. भाला हो सर रिचर्ड एटनबरो का जिनकी बनायी "गांधी" मूवी की बदौलत काश्ट्यूम डिजाइन के लिए भानु अथैय्या ने ऑस्कर जीतने में सफलता पाई थी. इसी कड़ी में डैनी बॉयल की स्लम डॉग मिलेनियम में म्यूजिक और लीरिक्स के लिए ए आर रहमान और गुलज़ार को ऑस्कर दिया गया था. "गाँधी" मूवी की स्क्रिप्ट लिखाते में सर रिचर्ड एटनबरो ने 18 साल मोहनदास करम चन्द्र गांधी शोध के बाद कहानी लिखवायी थी. उनका कहना था कि गांधी से सम्बंधित किसी भी विवादित पक्षों को नहीं छुआ था. जब एक सशक्त स्टोरी तैयार हो गयी तो कई साल तक महात्मा गाँधी पर मूवी बनाने की हिम्मत इसलिए नहीं जुटा पाए कि कहीं को विवाद न पैदा हो जाए. हॉलीवुड के फिल्म मेकर्स का नजरिया किसी फिल्म को बनाने में हमेशा सतर्कतापूर्ण रहता है. लेकिन भारत के देसी फिल्म मेकर्स मूवी की स्क्रिप्ट में गानों और डांस का तड़का और हेरोइन को नहलाने से गुरेज़ नहीं करते हैं चाहे वो पद्मावती सरीखी ऐतिहासिक हस्ती ही क्यों न हो. फिल्म हो हिट करने के लिए सारे मसालों का प्रयोग करने से गुरेज़ नहीं करते हैं. भारत के किसी भी महान फिल्म मेकर्स को आज़ादी के कई दशक बाद भी महात्मा गाँधी पर या स्लम एरिया के काल्पनिक पात्र जमाल मालिक पर फिल्म बनाने की नहीं सूझी. सूझती कैसे गाँधी युग में पुरुष लांग वाली धोती और कुर्ता तो महिलायें सूती साड़ी के अंदर हुआ करती थीं. ऐसे चरित्र में हिरोइन से गाने पर डांस कराने से बॉक्स ऑफिस पर सफलता की न के बराबर उम्मीद की जा सकती है. पद्मावती पर बनी मूवी भी एक सतही मानसिकता के साथ बनायी गयी होगी. इसी के चलते संजय लीला भंसाली को विरोध झेलना पड़ रहा है. हिंदी फिल्म को हिट कराना है तो उस पर विवाद खड़ा कर दो, समझ लो कि ये फिल्म मोटी कमाई करके देगी. कुछ ऐसा ही उड़ता पंजाब फिल्म का भी रहा था. विवाद के चलते उसने मेकिंग खर्च से अधिक कमाई कर ही ली थी. ऐसे फिल्म मेकर्स को मेरी सलाह है कि तथ्यपरक मूवी बनाएं जो धन के साथ-साथ ऑस्कर भी जीतने में सक्षम रहे. ताकि धन के साथ दुनिया में सम्मान भी प्राप्त किया जा सके. ग़दर फिल्म की अभिनेत्री के सकीना नाम पर कितना ग़दर कटा था तो पद्मावती पर बवाल हो रहा है तो कौन सी बड़ी बात है. भंसाली को चाहिए कि रानी पद्मावती के वंशजों को मूवी दिखाकर जो भी काट-छांट होनी हो कर के एनओसी लेकर मूवी को रिलीज करा लें तो इसी में ही भलाई है. मोटी मलाई के चक्कर में न पड़ें उसी में ही समझदारी है.



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