कांग्रेस के फैसलों में अस्थिरता के चलते रेत की तरह हाथ से फिसल गया गुजरात
एक तरफ कांग्रेस की अध्यक्ष सोनिया गाँधी कहती हैं कि कांग्रेस से हमेशा देश को जोड़ने का काम किया है.वहीं दूसरी तरफ गुजरात में पाटीदारों को पटाकर वोट पाने के लिए उन्हें आरक्षण देने की बात करती है. हाल ही में स्वर्गीय इंदिरा गाँधी की जन्मशती पर बोलते हुए कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी ने पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी को देश को जोड़ने वाली महिला कहा था. लेकिन इसके विपरीत गुजरात चुनाव में जीत दर्ज करने के लिए राहुल गाँधी मंदिरों में घंटा बजाकर आशीर्वाद ले रहे हैं. साथ ही हार्दिक और जिग्नेश आदि नेताओं को अपने पाले में करने के लिए सारे हथकंडे अपनाते हुए अपने नेताओं के देश को जोड़ने वाले कामों पर बट्टा लगाने से गुरेज़ नहीं कर रहे हैं. अगर ये आरोप मान भी लिया जाए की भाजपा लोगों को बांटने का काम कर रही है तो गुजरात में कांग्रेस क्या करना चाहती है. पिछले कई हफ़्तों से पाटीदारों के आरक्षण की हिमायत करने और दलितों को न्याय दिलाने का नाटक कार्यक्रम चल रहा था. आज पाटीदारों के स्वघोषित नेता ने ये कह कर कि कांग्रेस से आरक्षण की शर्तों के बाद गुजरात चुनावों में समर्थन करने की बात को सहमति दे दी है. वहीँ दूसरी तरफ पटेलों के निचली पंक्ति के नेता इसकी जानकारी होने से इनकार कर रहे हैं. हार्दिक पटेल के बयान को सच कैसे माना जाए कि उनकी कांग्रेस से पाटीदारों को आरक्षण पर सहमति हो गयी है. अगर हो भी गयी है तो इंदिरा गाँधी की सौवीं जन्मजयंती पर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी का लोगों को जोड़ने की बात करने वाली पार्टी कैसे माना जाए. क्या अब कांग्रेस में भी अलग अलग विचार धाराओं के नेता हो गए हैं जो विरोधाभाषी बयान दे कर क्या साबित करना चाहते हैं. अक्सर कांग्रेस का कोई भी नेता ये बात हवा में उछाल देता है कि जब से मोदी पीएम बनें हैं तब से देश में अस्थिरता पैदा हो गयी है. अगर सभी दिग्गज कांग्रेस नेताओं के बयानों पर गौर करें तो देश में कम कांग्रेस में ज़्यादा अस्थिरता दिखाई दे रही है. कांग्रेस का अध्यक्ष कुछ तो उपाध्यक्ष कुछ और बयान देते जान पड़ते हैं. सही मायने में गुजरात चुनाव कांग्रेस के लिए प्रतिष्ठा का सवाल थे,लेकिन कांग्रेस ने सही ढंग से सोच समझ कर प्रचार करना शुरू किया होता तो वो लोकसभा के लिए अपनी ज़मीन तैयार कर लेती. लेकिन पार्टी के नेता इसमें नाकाम रहे. चुनाव आते-आते तक गुजरात में राहुल गाँधी वहां की जनता को किसी भी तरह का संतुष्टि पूर्ण माहौल नहीं दे पाए. नोटबंदी और जीएसटी को लेकर चले थे अचानक से पाटीदारों की तरह घूम जाना पार्टी नेतृत्व के दिमागी दिवालिया पण को जतलाता है. कुल मिलाकर कांग्रेस इन चुनावों में बहुत कुछ कर सकती थी. लेकिन फैसलों में अस्थिरता न होने से नफ़ा कम नुकसान ज़्यादा होने की संभावनाएं बढ़ गयी हैं.




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