विरोधियों के लिए मोदी को 2019 में हरा लेना, मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है
राष्ट्रीय न्यूज़ चैनल के एक कार्यक्रम में पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी ये दावा कर रही थीं कि कांग्रेस 2019 फिर से केंद्र की सत्ता में वापसी करेगी. बाकायदा उनके पास इस वापसी के लिए पूरी योजना है. उनका यह भी कहना कि केंद्र में सत्तासीन मोदी सरकार का अच्छे दिन का हाल भी पूर्व की केंद्र पर काबिज अटल सरकार के शाइनिंग इंडिया जैसा ही होगा. पत्रकार ने जब 2019 वापसी के दावे की योजना के बारे में पूछा तो वो टाल गयीं कि से योजना सार्वजानिक रूप से नहीं बतायी जा सकती है. लेकिन जिस तरह के इशारे किये हैं, सत्ता में वापसी के उससे साफ़ पता चलता है कि कांग्रेस को अभी भी अपने विरोधी के खिलाफ नकारात्मक प्रचार करने पर पूरा भरोसा है. सभी केन्द्र की अटल बिहारी वाजपेई के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार के शासन की याद होगी. बहुत ही सुचारू रूप सरकार चलाते हुए पांच साल पूरे किये थे. इन्हीं 5 वर्षों की उपलब्धियों को लेकर अटल के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार दूसरी पारी खेलने की तैयारी में थी. लेकिन कांग्रेस जिसे अपने निगेटिव प्रचार पर बहुत भरोसा था ने अटल सरकार के शाइनिंग इंडिया की धज्जियाँ उड़ाते हुए केंद्र से बेदखल कर खुद सत्ता पर काबिज हो गयी थी. अटल के साथ के सभी नेता यह बात नहीं समझ पाए कि ऐसा कैसे हो गया. आज जो यशवंत सिन्हा कूद-कूदकर मोदी सरकार के खिलाफ बोल रहे हैं. कुछ ऐसा ही नेता अटल सरकार के बेदखल होने का कारण बने थे. शायद कुछ ऐसा ही प्रयोग एक बार फिर से कांग्रेस करने की जुगत में है. इस बार ऐसा प्रयोग कांग्रेस ने मोदी के सत्ता संभालते ही शुरू कर दिया है. कभी असंतुष्ट भाजपाइयों को तो कभी नए युवा नेताओं को गाहे-बगाहे, बेवजह के मुद्दों के साथ उतारती रहती है. प्रधानमंत्री मोदी ने 70 प्लस नेताओं को बाहर का रास्ता दिखाने का फरमान जारी किया तो उनके जख्मों पर मलहम लगाने सभी कांग्रेसी उनकी तरफ लपक लिए.एलके आडवाणी,मुरली मनोहर जोशी, यशवंत सिन्हा, अरुण शौरी, नवजोत सिंह सिद्धू ,कीर्ति आज़ाद और शत्रुघ्न सिन्हा आदि ने नाराजगी जाहिर की तो इन सब नेताओं को उकसाने की भरपूर कोशिश की और सफलता भी पायी. लेकिन एक अड़ियल रुख अपनाए रहने वाले ईमानदार छवि के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तस से मस न हुए. आज भी इन सभी नेताओं के दिलों में केंद्र की सत्ता का हिस्सा न बन पाने का मलाल है. अटल सरकार का हिस्सा रहे इनमें से कुछ नेताओं के कारण ही अटल सरकार का शाइनिंग इंडिया का नारा फ्लाप करने में कांग्रेस सफल रही थी. आज जितने विरोधी दल अटल सामने नहीं थे, उसके बनिस्बत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने हैं. साथ में घर के अन्दर भी उनके विरोध की मशाल लेकर चलने वाले नेताओं की कमी नहीं है. शायद कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गाँधी इन्हीं सब विरोधियों के बूते 2019 में केंद्र की सत्ता में वापसी का ख्वाब देख रही हैं. अगर अटल और मोदी के बीच के अंतर को देखा जाए तो अटल बिहारी वाजपेई आदर्शवादी और साफ़-सुथरी राजनीति करने वाले नेता हुआ करते थे. उनको तिकड़मबाज़ी की राजनीति से परहेज था. जिसके चलते वो विरोधियों ने उनकी 13 दिन और तेरह महीने में दो बार सरकारें गिरा दी थीं. इसी वज़ह से आज खुले मंच से पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी के 2019 सत्ता में वापसी की बात ने एक बार फिर से इस बात की चर्चा पर मज़बूर कर दिया है. सोनिया गाँधी और कांग्रेस शायद ये भूल गयीं हैं कि इस बार इनका पाला अटल से नहीं अड़ियल रुख पर कायम रहने वाले नरेंद्र मोदी से पडा है. जो विपरीत बहने वाली हवाओं का रुख अपने अनुकूल कर लेने में महारथ हासिल है. जिस मोदी को कांग्रेस छठी बार गुजरात में हरा न पायी, वो कितना कुछ कर सकेगी ये खुद समझें. 25 साल तक जिसने गुजरात में एक ही स्थान पर कांग्रेस जकड़ दिया था. उनसे पार पाना असंभव ही लगता है. 2014 से अब तक अलग-अलग तरह के दर्ज़नों पूर्वनियोजित आन्दोलन कराये गए,ये सभी 2019 में मोदी सरकार को उखाड़ने के लिए किये गए थे. लेकिन हर बार कांग्रेस को मुंह की खानी पड़ी.नोटबंदी सर्जिकल स्ट्राइक और जीएसटी पर छाती कूट-कूट कर प्रलाप करने का परिणाम ये रहा कि आज कांग्रेस मात्र 4 राज्यों में बची हुई है, वो भी तभी तक जब तक वहां चुनाव नहीं हो जाते हैं. हमेशा तिकड़मबाज़ी की राजनीति से सत्ता पर काबिज होने वाली कांग्रेस को अब सकारात्मक राजनीति रास नहीं आती है. गुजरात में कांग्रेस की नकारात्मक राजनीति को झेलते हुए मोदी ने 14 साल चिपक शासन किया था, को कांग्रेस के सारे हाथ-कंडे पता चल चुके हैं. 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को 44 में कुछ दर्ज़न सीटें घटा या जोड़ लेनी चाहिए. विरोधियों को उन्हीं के गढ़ में घुसकर पटखनी देने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से इतना ही पाने की उम्मीद करनी चाहिए. फिलहाल तो केंद्र की सत्ता पर काबिज़ होने का ख्वाब अधूरा ही रह जाना है. अगर विरोधियों के पास नरेंद्र मोदी जैसा कोई नेता हो तो उन्हें केंद्र में आने की उम्मीद करनी चाहिए, वरना ये बहुत ही दूर की कौड़ी है. ये बात देश के 21 राज्यों में भगवा लहराने से ही समझ में आ जानी चाहिए.




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