महागठबंधन के पहले गैर भाजपाई दलों को मोदी को टक्कर देने के लिए ज़रुरत है एक अदद मोदी की

राजनीति के गलियारे में हलचल तेज हो गयी हैं, समाचार पत्रों और खबरिया चैनल बता रहे हैं कि सभी छोटे-बड़े राजनीतिक दल मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार के खिलाफ एकजुट होकर चुनाव लड़ने के लिए किसी मोर्चे या महा गठबंधन को रूप देने की कोशिश में हैं. बीते दिनों पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री से मिलने के लिए तेलंगाना के मुख्यमंत्री गए थे. गठबंधन को प्रारूप देने के लिए बातचीत की है. इधर अपनी पार्टी जेडीयू से नाराज़ शरद यादव भी पूरे भारत का भ्रमण करके के राज्यों के छोटे दलों को जोड़ने की मुहिम पर है. इसी कड़ी में दंगे से सुलग रहे पश्चिम बंगाल को नेतृत्वविहीन छोड़कर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी दिल्ली में गैर भाजपाई दलों समेत कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं से मिलने के लिए जमी थीं. विरोधी दलों की इस मुहिम को हवा देने के लिए केंद्र में कोई मंत्री पद न मिलने से खफा शत्रुघ्न सिन्हा, यशवंत सिन्हा और अरुण शौरी भी विरोधियों के खेमे में टहलते हुए दिखाई. मायावती और अखिलेश यादव भी केंद्र में सरकार बनाने के लिए जुगाड़ में लगे अन्य दलों को साथ खड़े हुए हैं. चन्द्र बावू नायडू ने तो बीजेपी से नाता तोड़कर केंद्र सरकार पर हमले भी शुरू कर दिये हैं. सभी दलों से संपर्क साधकर ममता बनर्जी राजनीति को अपने पर केन्द्रित करने का प्रयास कर रही है. अगर गठबंधन बनता है उसमें मुख्य भूमिका निभा सकें और सरकार बनने पर महत्वपूर्ण पद पर काबिज़ हो सकें. अब एक नज़र लोकसभा में सभी छोटे बड़े दलों की स्थिति पर डालते हैं. कांग्रेस-44,एआईएडीएमके-37,टीएमसी 34,बीजद-20, शिवसेना-18 तेदेपा-17 और तेरास-11 ही दहाई अंकों तक सीटें पाए हुए हैं. बाकी के अन्य दलों के पास 1 से 9 तक लोकसभा की सीटें हैं. इनमें 6-7 लोकसभा सीटें जीतने वाले दल फिलहाल एनडीए का हिस्सा है. इन सभी दलों पर नज़र डाली जाए तो लोकसभा 2014 में दहाई  पार न कर पाने वाले दल और कुछ हाथ में न होने वाले दल क्या सच में मोर्चा बनाकर सरकार बनाने में जुटे हैं या फिर अपनी खोयी हुई प्रतिष्ठा को वापस पाने प्रयास में हैं. क्या बसपा जसके पास कोई भी सांसद नहीं हैउसे ये उम्मीद है कि मोर्चा बन जाने के बाद उनकी स्थिति में सुधार आ सकता है. कुछ ऐसा ही हाल समाजवादी पार्टी का भी है जिसके पास उप चुनाव के बाद दोनों सीटें जीत कर कुल 7 सांसद हो गए हैं. अब सबसे बड़ा सवाल मोर्चे या गठबंधन के सामने यह है कि पीएम मोदी की छवि को कौन टक्कर देने वाला नेता इस गठबंधन के पास है जो सभी राज्यों में इतना लोकप्रिय हो कि उसके वोट देने की अपील पर जनता उस क्षेत्रिय पार्टी को वोट दे. अगर विश्लेषण किया जाए तो खस्ता हाल छोटे दलों के लिए 2019 के लोकसभा चुनाव सत्ता पाने के लिए कम अपनी खिसकी जमीन को पकड़ पाने के लिए ज्यादा लग रहे हैं. मुख्य क्षेत्रिय दलों में बिहार में राजद, यूपी में बसपा और सपा समेत अन्य दल कितना कुछ कर पायेंगे कहना मुश्किल है. कुल मिलाकर महागठबंधन या तीसरा मोर्चा बनाने के लिए जो हल्ला मच रहा है वो सिर्फ कुछ दलों के अपना अस्तित्व बचाये रखने और कुछ के लिए अपना आधार वापस पाने के लिए हो रहा है. सभी क्षेत्रिय दलों समेत कांग्रेस को अच्छे से मालूम है कि मोदी जैसे नेता की काट के लिए कोई ऐसा नेता फिल वक्त उनके पास नहीं है. जो सभी राज्यों में दखल रखता हो जिसके कहने पर जनता वोट डाले. अनुमान लगाया जाए तो 2019 में मोदी हरा पाना बहुत ही टेढ़ी खीर है. सभी दल कितना कुछ कर पते हैं भविष्य के गर्भ में है.

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