मुद्दे से भटक जाने के चलते,जनता ने उपचुनाव में भाजपा को झटका देकर कड़ा सन्देश दिया है
उत्तर प्रदेश को अक्सर लोग उलटा प्रदेश कहते हैं. यहाँ के लोग कभी भी क्या उल्टा-पुल्टा कर दें कोई नहीं समझ सका. बड़े-बड़े राजनीतिक पंडित भी हार-जीत का सही आंकलन नहीं कर पाते हैं. इस बात को आज यूपी की जनता ने साबित कर दिया. 2014 से मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी लोकसभा, विधानसभा और निकाय चुनावों में जीतती चली आ रही थी. अचानक से उलटा प्रदेश की जनता ने लगभग तीन दशकों से गोरखपुर की सदर सीट जीत रही भाजपा को पटखनी देकर बुरी तरह से हिला दिया. विधानसभा चुनाव में हमेशा सूखा काटने वाली भाजपा गोरखपुर सदर सीट 27 साल से नहीं हारी थी, बीजेपी को लोकसभा में सरकार बनाने के लिए 71+2 सांसद, विधानसभा में 325 विधायक और निकाय में 10 मेयर बना डाले. इतना सब बीजेपी को यूपी की जनता ने दिया. लेकिन अचानक से ऐसा क्या हुआ की चार साल से बहुत कुछ देने वाली यूपी की जनता ने फूलपुर की पहली बार जीती सीट छीन ली और साथ ही वो सीट भी छीनकर हाथी पर सवार साइकिल को दे दी. जो बीजेपी तीन दशकों से नहीं हारी थी. उत्तर प्रदेश की जनता के मन में क्या आ गया कि खुद के बसाये भाजपा के घर को एक झटके में उजाड़ दिया. बीजेपी के दिल्ली में बैठे हाईकमान इस बात पर गहराई से आत्म-मंथन और चिंतन करना चाहिए. जिन मुद्दों पर 2014 यूपी में चुनाव लड़ी और शानदार जीतें दर्ज करती रही ऐसा क्या हुआ. कहीं ऐसा तो नहीं हुआ कि बीजेपी मुद्दा छोड़ने का नुकसान उठाना पडा है. यूपी में भाजपा जाति और धर्म की राजनीति के चलते विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज कर सत्ता तक नहीं पहुंची थी. जोड़-तोड़ की राजनीति से भाजपा को नफा कम नुकसान ज़्यादा हुआ. प्रदेश के मुख्य राजनीतिक दल सपा और बसपा से जब-जब गठजोड़ किया, बीजेपी को नफा कम नुकसान ज़्यादा हुआ. बसपा से गठबंधन करके सत्ता हासिल की लेकिन कार्यकाल पूरा होने के बीच में ही बसपा ने नाता तोड़ लिया. इसके बाद बासपा ने अकेले ही प्रदेश में सरकार बनायी कुछ ऐसा समाजवादी पार्टी ने भी किया. लगभग तेरह वर्षों का सूखा तब कटा जब मोदी मैजिक ने अभेद्य सपा और बसपा के वोट बैंक कोभेद्य कर लोकसभा और विधानसभा में जबरदस्त सफलता हासिल की. विरोधियों को हिला देने वाली इस सफलता के पीछे नरेंद्र मोदी की विकास पुरुष की छवि थी. विकास के नाम पर मोदी ने यूपी के शहरी क्षेत्रों के साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों में भी अपनी मज़बूत पैठ बना ली थी. जिसके परिणाम स्वरुप भाजपा ने शानदार जीतें हासिल की थीं. अभी भी समय है बीजेपी को इस बात पर गहराई से मंथन करना चाहिए कि वो सपा बसपा और कांग्रेस से जाति और धर्म के नाम पर चुनाव में जीत नहीं सकती है. फिलहाल ये उप चुनावों में वर्तमान समय में भाजपा को कोई नुकसान नहीं होने वाला और नाहि सपा और बसपा को नफ़ा होने वाला है. यूपी एक ऐसा अभिशप्त राज्य है जहां मुख्य दल गठबंधन करने के बाद 5 वर्ष सरकार नहीं चला पाये हैं. इसलिए सपा-बसपा के साथ अन्य दलों के आ जाने के बाद भी सफलता की गारंटी इस गठबंधन के पास नहीं होगी. कहीं न कहीं इन दलों के सुप्रीमो में अहम् की लड़ाई होनी ही होनी है. फिलहाल ये दो सीटों के उपचुनाव की हार-जीत किसी भी दल के लिए सत्ता तक पहुँचने की गारंटी क़तई नहीं माने जा सकते हैं. सपा और बसपा कई दशक पहले से दो ध्रुव की तरह हैं. हमेशा एक साथ नहीं रह सकते हैं. कुल मिलाकर इस उप चुनाव में बसपा के लिए सपा ने, तो सपा ने बसपा के लिए 2019 में वेंटिलेटर का काम किया है. इनके साथ आ जाने से बीजेपी को चुनौती मिलनी ही है. इससे भाजपा कैसे निपटेगी ये भविष्य के गर्भ में है.



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