कुछ पत्रकारों को हलुवा बनाने जैसा लगता है तीसरे मोर्चे का गठन
इस समय ये हालात हैं कि कोई दो दलों के नेता मुलाक़ात करते हैं तो मीडिया के लोग तुरंत खबर बना देते हैं. तुरंत समाचार बना देंगे कि तीसरे मोर्चे की तैयारी में जुट गए हैं. बीते दिनों तेलंगाना के मुख्यमंत्री ने पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी से भेंट की तो अखबारनवीसों खबर ले उड़े कि ये मुलाक़ात तीसरे मोर्चे की तरफ इशारा कर रही है. कुछ ऐसी ही हास्यास्पद घटना एक बार देखने को मिली थी. यूपी के एक मंत्री महोदय की कार सुरक्षा कर्मियीं और उनके लाव-लश्कर के साथ लखनऊ के सरकारी अस्पताल में घुसी तो हास्पिटल के बाहर खड़े कुछ पत्रकार बन्धु उधर लपक लिए कि कुछ बड़ी खबर है. मंत्री जी एक डॉक्टर के कमरे में जा घुसे तो पत्रकार भी घुसने लगे तो सुरक्षाकर्मियों ने उन्हें रोक दिया इस पर पत्रकारों और सुरक्षा कर्मियों के बीच जब चिल्ल-पौ होने लगी तो मंत्री जी ने अपने सुरक्षा कर्मियों कहा की इन्हें अन्दर आने दो. जब पत्रकारों ने मंत्री महोदय से सवाल दागे कि आप अस्पताल क्यों आये हैं तो मंत्री जी को बताना पड़ा. वो थोड़ा नर्म अंदाज़ में बताया कि पैरों में सूजन के इलाज के लिए आये है और अपना पैर भी दिखाया तो जो पत्रकार पीछे थे वो तुरंत बाहर की तरफ सरक लिए. बाकी अति उत्साही पत्रकारों को अपने न्यूज़ सूंघने की शक्ति पर बहुत गुस्सा आया और खिसियये हुए बहार निकले तो वहां पर उपस्थित सभी लोग हंसने लगे. कुछ ऐसा ही हाल आज भी पत्रकारिता का है. ममता बनर्जी और चन्द्रशेखर राव पर भी पत्रकारों ने अपना राग अलापना शुरू कर दिया है. इन्हें सोचना चाहिए कि तीसरे मोर्चे के लिए कोई भी गैर भाजपाई नेता मिलने के लिए एनडीए का हिस्सा रहे चन्द्र बाबू नायडू से मिलने जाएगा. क्योंकि आज नायडू ही मोदी सरकार के खिलाफ झंडा बुलंद किये हुए हैं. माना कि ममता बनर्जी मोदी और उनकी सरकार की दूर विरोधी हैं. क्या उनके पास यही एक आम बचा हुआ है कि वो तीसरे मोर्चे के लिए लगी रहे और अपना घर न देखें. आज की तारीख में नरेंद्र मोदी एक ऐसा नाम है जिससे विरोधी दल खौफ और खार दोनों ही खाते हैं. आज मोदी विरोध का कारण भी है कि वो ये कि उनका विजय रथ रुकता कम चलता ज़्यादा है. हाल ही में त्रिपुरा में 25 सालों के बाद लाल झंडे को उखाड़ फैंकने वाले पीएम मोदी से विरोधियों में खौफ़ तो लाल झंडे वालों के दिल में हार की खार पैदा हुई ही होगी. मीडिया दो दलों के नेताओं के मिलने को आज की तारीख में तीसरे मोर्चे के बनने से जोड़ने इसलिए भी लगा है क्योंकि 2019 में लोकसभा चुनाव होने हैं. लगता है पत्रकारों को जगाने वाली न्यूज़ लिखने की आदत पड़ गयी है. तीसरा मोर्चा बनेगा ही लेकिन इसमें कांग्रेस पार्टी नहीं होगी. यह इसलिए कहा कि कांग्रेस के अलावा कोई भी ऐसा नेता नहीं है जो तीसरे मोर्चे की जीत के लिए पीएम मोदी से टक्कर ले सके. कांग्रेस ने अपने महाधिवेशन से उन छोटे दलों को अपने पाले में खींचने असफल प्रयास किया है. महाधिवेशन का माहौल खुशहाल कम खिसियाया हुआ ज्यादा दिख रहा था. इसे समझने के लिए भाजपा छोड़ कांग्रेस में आये नवजोत सिंह सिद्धू के भाषण को सुन लें. सिद्धू का भाषण सभी कांग्रेसियों के मक्खन लगाने जैसा था. तीसरा मोर्चा किसी कमजोर राज्य के मुख्यमंत्री की पहल से कभी भी नहीं बन सकता है. अगर बन भी गया तो उसे लोकसभा में असफलता ही हाथ लगने की संभावनायें अधिक है.



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