राज्यसभा चुनाव में बसपा प्रत्याशी को मिली हार ने मायावती की बनायी भविष्य की योजना पर पानी फेर दिया
राज्यसभा चुनाव में बीएसपी के प्रत्याशी की हार से सुप्रीमो मायावती को तेज़ झटका ज़रूर लगा होगा. आनन फानन में किये गठबंधन का कोई नफ़ा नहीं हुआ. सही मायने में बसपा सुप्रीमो भविष्य की राजनीति में क्या होगा को भांपने में अक्षम रहीं. आज से क्या, अभी से ही सुप्रीमो मायावती को बसपा के भविष्य को संवारने के लिए कड़े और सूझ-बूझ के साथ फैसले लेने होंगे. समय के साथ चलने वाला ही मंजिल तक पहुंचता है इस बात पर अमल करना होगा. बसपा सुप्रीमो को ये बात बहुत अच्छे समझ लेनी चाहिए की बदले की भावना से राजनीति का वर्तमान में कोई स्थान नहीं रह गया है. अगर अपना खोया हुआ सम्मान वापस पाना है तो अपनी सोच को बदलने की आवश्यकता है. बसपा सुप्रीमो ने वाही गलती की जो वो पूर्व में बदले की भावना से प्रेरित होकर कर रही थीं. गेस्ट हाउस काण्ड का ज़िक्र करना थोड़ा ज़रूरी है. जब गेस्ट हाउस कांड हुआ था, उसके बात मायावती ने बीजेपी का दामन थाम लिया था. इस घटना में बीजेपी के नेताओं ने ही उन्हें हिम्मत दी थी. जिसके बदले मायावती ने बीजेपी के साथ मिलकर सशर्त चुनाव लड़ा था, तय ये हुआ था कि 5 साल की विधानसभा में ढ़ाई-ढ़ाई वर्ष दोनों दलों के नेता यूपी की सत्ता संभालेंगे. लेकिन मायावती अपने वोट बैंक दलितों को जब एकजुट कर लिया तो उन्हें लगा कि वो बिना किसी सहारे के भी मुख्यमंत्री बन सकती हैं. बस यहीं से उनकी सोच ने धोखा देना शुरू किया ही साथ ही राजनीति के आंकड़ों को समझने में भी गच्चा खाती रहीं. अगर बसपा सुप्रीमो उस बात को राजनीतिक पारी की शुरुआत करने के कुछ समय बाद ही ये समझ लेती की दलितों के वोटों से पूर्ण बहुमत पाना मुश्किल है तो वो जैसे को तैसा की राजनीति से किनारा कर लेतीं तो आज पार्टी का सम्मान बचा रहता. यूपी में बसपा-भाजपा गठबंधन की गांठों को स्वयं खोलने वाली मायावती को ये नागवार गुजरा की उनके मुख्यमंत्री पद से इस्तीफे के बाद भी यूपी के भाजपा नेताओं ने जोड़-तोड़ करके सरकार बना ली थी. यहीं से सपा और भाजपा उनके लिए दुश्मन हो गए थे. इसका बदला मायावती ने केंद्र की अटल सरकार को समर्थन न देकर ले लिया था. कहते हैं किसी भी व्यक्ति के बुरे दिन कब शुरू हो जाएँ कहा नहीं जा सकता है. 4 बार यूपी की सत्ता पर काबिज़ होने वाली मायावती को 2014 के लोकसभा चुनावों से झटके लगने लगे. राज्य के साथ केंद्र की राजनीति में ख़ासा दखल रखने वाली बसपा सुप्रीमो को सपने भी इस बात का अंदाजा नहीं रहा होगा कि गुजरात से चल कर यूपी में आने वाला व्यक्ति नरेंद्र मोदी बसपा को जड़ से उखाड़ फैंकेगा. केंद्र की सत्ता में खासा दखल रखने वाली मायावती सीटें को एक भी सीट नहीं मिली थी. यहीं से मायावती को एक बार फिर से आगबबूला कर दिया. हार के बाद अपनी कमजोरियों को देखने की जगह मायावती पलटवार की योजना बनाने लगीं. इसी चक्कर में बसपा को एक बार फिर से बुरी हार का सामना विधानसभा चुनाव में करना पड़ा. बसपा को मात्र 19 सीटें ही मिल सकीं. बसपा मुखिया को जब यहाँ से सोच बदलकर बीजेपी से हाथ मिलाना था तो उन्होंने उप चुनाव में बदले की भावना से समाजवादी पार्टी की तरफ हाथ बढ़ा दिया. परिणाम स्वरूप भाजपा दोनों सीटें हार गई. इससे मायावती को ये मुगालता हो चला कि गठबंधन कर भाजपा को अगले चुनाव में पटखनी देने के लिए इतनी ऊर्जा मिल चुकी है. उन्हें इस बात का अंदाज़ा नहीं रहा कि सपा में और उसकी पार्टी के साथ चलने वालों से भी उन्हें किसी भी चुनाव में वोटों की उम्मीद न होनी चाहिए थी. नतीजा सामने आ गया, बसपा के राज्यसभा प्रत्याशी भीम राव अम्बेडकर क्रास वोटिंग से नुकसान होना ही था. इसके पीछे कुंडा के राजा भैया रहे. जिन्हें अपने मुख्यमंत्रित्व काल में जेल में डाल दिया था. सपा और अपने क्षेत्र प्रतापगढ़ के आस-पास क्षेत्रों में ख़ासा दखल रखने वाले रघुराज प्रताप सिंह ने साफ तौर पर ह दिया था कि वो बसपा प्रत्याशी को राज्यसभा में वोट नहीं करेंगे. यह बात मायावती को पहले ही समझ लेनी थी कि जिस सपा से वो उप चुनाव में एक हाथ दे और एक हाथ ले की शर्त के साथ खड़ी हुई हैं, उसके साथ उनकी ज्यादतियों के शिकार नेता भी हैं. कुल मिलकर बसपा का भविष्य इस बात पर निर्भर करता है कि वो अब किसका सहारा लेकर बसपा को बचाएंगी.



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