रामलीला मैदान में अन्ना का किसान आन्दोलन: पुल करके खुलने वाले दरवाज़े को पुश करके खोलने में जुटे हैं अन्ना
दिल्ली के रामलीला मैदान पर अन्ना के फ्लाप शो अनशन का आज तीसरा दिन है. कई लाख लोगों के समर्थन की उम्मीद लेकर अनशन पर बैठे अन्ना हजारे दूसरी बार न कह कर तीसरी बार अनशन या प्रदर्शन पर बैठे है, तीसरा इसलिए लिखा क्योंकि एक बार ऐसा अनशन वो एक बार मुंबई में ही कर चुके हैं. रामलीला मैदान में चल रहे अनशन में कुछ हज़ार लोग ही अपनी उपस्थिति दर्ज करा पाए हैं. इनमें बहुत से लोग तमाशबीन भी होने इनकार नहीं किया जा सकता है, इसके पीछे न्यूज़ चैनलों के कवरेज न करना भी कारण हो सकता है. अन्ना का यह कह कर आन्दोलन पर बैठना कि उन्होंने पीएम को किसानों और लोकपाल के मुद्दे पर कई दर्ज़न चिट्ठी लिखी थीं. जिनका जवाब न मिलने पर उन्होंने केंद्र सरकार के खिलाफ आन्दोलन करने का मन बनाया. अगर अन्ना हजारे सिर्फ सोशल मीडिया पर दिखने वाली पोस्ट ही देखते हैं तो उन्हें चाहिए था कि कई दर्ज़न चैनल जो केंद्र की मोदी सरकार के विरोध में ही खड़े रहते हैं उन्हें भी देख लेना चाहिए था. इन चैनलों में विरोधी स्टोरी तो चलाई जा सकती है, लेकिन रुटीन की नेशनल और इंटरनेशनल खबरों को तोड़-मरोड़ कर नहीं दिखाया जा सकता है. ऐसा लगता है कि अन्ना हजारे को देश में क्या-क्या बदल गया है इसकी उन्हें कोई खबर नहीं है या खबर लेना ज़रूरी नहीं समझा. खैर इस उम्र में अन्ना हजारे को कुछ अन्य पत्रकारों की तरह जगाने वाली बात लिखना गैर-ज़रूरी समझता हूँ. एक बात ज़रूर लिखना चाहूँगा वो ये कि अन्ना हजारे को इस बढ़ती उम्र में दिल्ली रामलीला मैदान पर एक फिर से अनशन करने का फालतू का मशवरा किसने दिया. लेकिन इसे अन्ना ने मान क्यों लिया ये थोड़ा आश्चर्य करने वाली बात है. थोड़ा शब्द इसलिए लिखा क्योंकि जब उन्होंने दिल्ली के रामलीला मैदान पर जन लोकपाल बनाने के लिए आन्दोलन शुरू किया था, तब जनता के सामने पेश किये गए अन्ना हजारे और अरविन्द केजरीवाल साफ़-सुथरी छवि के साथ करप्शन के मुद्दे पर विरोधियों के निशाने पर चल रही केंद्र की यूपीए सरकार थी. इसी का नफा अन्ना हजारे के सहयोगी अरविन्द केजरीवाल को मुख्यमंत्री की कुर्सी के रूप में मिला था. 15 वर्षों से दिल्ली में चल रही कांग्रेस की शीला दीक्षित सरकार के भ्रष्टाचार के कारनामों पर 400 पन्नों की जन्मपत्री का प्रचार करके उखाड़ फैंका था. बस इसके बाद अन्ना के प्रिय शिष्य अरविन्द केजरीवाल ने स्वघोषित ईमानदार बन गए. केजरीवाल को लगा कि जनता को आसानी से मूर्ख बनाया जा सकता है ने हिम्मत बढ़ाई और 2014 मोदी से भिड़ने की गलती कर दी. अति महत्वाकांक्षाओं से लबरेज केजरीवाल भी अन्य दलों की तरह ही तिकड़मबाज़ी की राजनीति को अपनाने से नहीं चूके. इन हथकंडों ने स्वघोषित ईमानदार की छवि को बुरी तरह से धो डाला, इसके लपेटे में अन्ना हजारे भी आ गए. केजरीवाल आईना तो अन्ना आईने में दिखने वाला चेहरा थे. कुछ इसी तर्ज़ पर जनता के सामने आये थे.आईना केजरीवाल तो अन्ना इसमें दिखने वाला चेहरा बन गए थे. एक-दूसरे के पर्याय बन चुके थे. इसी कारण से अरविन्द केजरीवाल के किये सभी कार्यों का अन्ना की छवि पर भी पडना ही था. आज रामलीला मैदान पर धूल जमे शीशे में दिखने वाली छवि को फिर साफ़ करने के लिए अन्ना हजारे एक बार फिर से आ जमे हैं. आम जन के रिस्पांस को देखते हुए नहीं लगता कि अन्ना को कुछ हासिल होगा. अन्ना को ये बात समझनी चाहिए कि धूल शीशे पर जमी है, उसे साफ़ करें, खुद के चेहरे को साफ़ करने से कोई लाभ नहीं होने वाला है. राम लीला मैदान पहुंचे मुट्ठी भर लोगों को को देखते हुए लगता नहीं है कि उम्र दराज़ अन्ना हजारे अपनी छवि को साफ़ कर पायेंगे. अन्ना हजारे का अनशन वैसा ही है कि कोई व्यक्ति pull करके के खुलने वाले दरवाज़े को push करके खोलने का प्रयास कर रहा है.




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