यूपी की दो सीटों के उपचुनाव में चारों दलों की प्रतिष्ठा दाँव पर
उत्तर प्रदेश में दो लोकसभा सीटों पर हो रहे उपचुनाव और अधिक महत्वपूर्ण इसलिए हो गए हैं, क्योंकि दो दुश्मनों को इन चुनावों ने एकजुट कर दिया है. गेस्ट हाउस काण्ड के बाद बसपा और सपा के बीच आई कभी भी न पाटे जाने वाली दरार को भर दिया है. इस भर चुकी दरार के पीछे दोनों ही दलों के स्वार्थ निहित हैं. सपा और बसपा के बीच ताल-मेल का कारण पिछले लोकसभा और विधानसभा में दोनों दलों को बीजेपी से मिली करारी हार की खार है. 2014 के लोकसभा चुनाव में जहां समाजवादी पार्टी को 5 सीटें मिली थीं, वहीं बसपा को कुछ हाथ नहीं लगा था. यूपी के 2017 के विधानसभा चुनाव में एक तुम(सपा) तो एक बार हम (बसपा ) की तर्ज़ पर होते आ रहे चुनावों में बसपा सुप्रीमो को पूरी उम्मीद थी की वो अकेले ही विधानसभा चुनाव लड़कर सत्ता पर काबिज़ हो जायेंगीं. सपा भी कांग्रेस का हाथ थामकर रिपीट होने की उम्मीदों के साथ चुनाव लड़ा था. लेकिन सारी राजनीतिक गणित को फेल करते हुए मोदी मैजिक ने बुरी तरह हार से दोनों दलों को दो-चार करवा दिया. इन चुनावों में बसपा मात्र 19 सीटें तो वहीँ सपा 47 सीटों पर ही जीत दर्ज कर सकी थी. इस बुरी हार की खार ने ही दोनों धुर-विरोधी दलों को एक साथ लाने पर मज़बूर कर दिया. एक हाथ दे और एक हाथ ले की तर्ज़ पर एक मंच पर आये इन दोनों दलों ने लोकसभा और राज्यसभा में एक दूसरे को समर्थन देना तय कर लिया.आज सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव न सांसद हैं और न ही विधायक हैं.वहीं दूसरी तरफ मायावती 2018 राज्यसभा फिर से जाने की जुगत में लगी हुई हैं. इसीलिए 11 मार्च को यूपी की गोरखपुर और फूलपुर सीट के लिए हो रहे उपचुनाव में बसपा सुप्रीमो, सपा को समर्थन दे रही है. इसी बहाने धुर-विरोधी दोनों दल अपनी ताक़त को भी आँक लेंगे. अगर सपा इस उपचुनाव में दोनों सीटें जीत जाती है तो बसपा सुप्रीमो मायावती अप्रैल 2018 में ख़त्म हो रहे राज्यसभा के कार्यकाल के बाद समाजवादी पार्टी के समर्थन से राज्यसभा में फिर से एंट्री पा लेंगी. वर्ष 2014 में बिल्ली की चाल से गुजरात से चलते हुए चुपचाप आये नरेंद्र मोदी को प्रदेश की जनता ने सर-आँखों पर बैठाया था. जिस ईमानदार और विकासशील व्यक्तित्व के साथ यूपी में हनकदार एंट्री करने वाले पीएम मोदी की यह छवि अभी भी बरकरार होगी तो सपा-बसपा के लिए ये उपचुनाव जीत पाना मुश्किल होगा. बीते विधानसभा चुनावों और निकाय चुनावों पर नज़र फेरी जाए तो दोनों ही चुनावों में बीजेपी यूपी में सपा, बसपा और कांग्रेस पर भारी पड़ी थी. विधानसभा चुनावों में ज़बरदस्त सफलता के बाद निकाय चुनावों में बीजेपी बहुत बड़ी सफलता न मिली हो लेकिन यूपी में तीनों विरोधी दलों कांग्रेस सपा और बसपा को भी जनता ने पूरी तरह से नकार दिया था. निकाय चुनाव पार्टी की छवि के बनिस्बत प्रत्याशी की व्यक्तिगत छवि मायने रखती है. अगर कुछ ऐसा ही होगा तो बसपा के समर्थन से लोकसभा का उपचुनाव लड़ने वाली सपा को दोनों सीटें जीत पाना मुश्किल हो जाएगा. ईमानदार और विकासशील नेता की छवि का मोदी मैजिक बरकरार रहा तो बीजेपी को दोनों सीटें जीतने में मुश्किल नहीं होगी. सोशल मीडिया के माध्यम से समझदार हो चुकी यूपी की जनता को ये कच्चे और स्वहित वाले गढ़बंधनों की पहचान होने लगी है. इसलिए ऊंट किस करवट बैठा ये तो चुनाव परिणाम आने के बाद ही पता चलेगा.



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