फेस बुक पर ऑनलाइन चलने वाले ख़बरिया लोगों कुछ तो देश के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी समझो

कभी-कभी फेस बुक पर ऑनलाइन जितने भी खबरिया चैनल्स और न्यूज़ पेपर्स है उनके समाचारों के पढ़ने और देखने के बाद ऐसा लगने लगता है कि भारत एक समस्या प्रधान देश है. जहाँ किसान आत्महत्या और आन्दोलन कर रहा है. युवा वर्ग बेरोजगारी की मार झेल रहे हैं. इनकी आवाज़ को दबाया जा रहा है. महिलाओं का जीना मुश्किल हो गया है. गरीब जनता भूखी मर रही है. हत्या, बलात्कार लूट-पाट चोरी डकैती आदि-आदि भयानक समस्याएं आम लोगों को झेलनी पड़ रही हैं. कुछ चैनल्स डिवेट में नेताओं और समाजसेवी संगटन के लोगों को बुलाकर अपनी दूकान खोल कर फ़ालतू के सवाल जवाब करते देखे जा सकते हैं. किसी चैनल में जन लोकपाल की पोटली लेकर अनशन पर बैठे अन्ना हजारे विराजमान थे. वो मोदी युग में भी भ्रष्टाचार पर रोक लगाने के लिए लोकपाल की नियुक्ति न किये जाने का रोना रो रहे थे. अन्ना हजारे की बातों से ऐसा लग रहा था कि लोकपाल के बिना भ्रष्टाचार रोका नहीं जा सकता है. उनकी बातों से ऐसा महसूस हुआ कि वो अपने घर से कई साल बाद निकल कर सीधा चैनल के न्यूज़ रूम में विराजमान हो गए हैं. उन्हें आज भी कांग्रेस के शासनकाल में भ्रष्टाचार के खिलाफ किये अपने जन आन्दोलन के बाद के भारत की जानकारी नहीं है. कार्यक्रम समाप्त होते-होते चैनल वाली पत्रकार ने अन्ना से भ्रष्टाचार के खिलाफ बैठे युवाओं को लड़ने के लिए क्या शपथ दिलाना चाहेंगे. इस पर अन्ना जी ने एक हाथ आगे करके शपथ दिलानी शुरू कर दी. इस तरह की नौटंकी करके ये चैनल्स क्या जतलाना चाहते हैं ये कभी भी समझ में नहीं आ सका. अन्ना हजारे को बैठे युवाओं को शपथ दिलाते समय दिल्ली के रामलीला मैदान को याद कर लेना चाहिए था. जहां वो कुछ युवाओं को लेकर भ्रष्टाचार के खिलाफ जन लोकपाल बनाने के लिए अनशन कर रहे थे, लेकिन यूपीए की सरकार ने उनकी अनसुनी कर दी थी. इस आन्दोलन से जनता को तो कोई फ़ायदा नहीं हुआ हाँ के बन्दा जो इनके आन्दोलन में सबसे आगे था वो मुख्यमंत्री ज़रूर बन गया. उसने अपने गुरु अन्ना हजारे की दीक्षा को कितना फ़ालो किया और भ्रष्टाचार के खिलाफ कितना लड़ा, यह बात अन्ना को खुद सोचनी चाहिए थीं. उसके बाद बैठे युवाओं को नौटंकी टाइप की शपथ दिलानी चाहिए थी. मेरे अनुमान के अनुसार इन युवाओं में से ज़्यादातर को देश में क्या हो रहा है कि धेले भर की भी जानकारी नहीं होगी.यह बात इसलिए लिखी कि एक व्यापारी नेता की दूकान पर राजनीति पर गरमा-गरम बहस चल रही थी. उन्हीं में एक एक युवक बोला मोदी जी और योगी जी के राज में गरीब भूखा मर रहा है उसे रोटी के लाले पड़े हुए है. जब मैंने उससे पुछा राशन की दूकान पर दो रुपये किलो गेहूं अति गरीब मिलता है तो उसे विश्वास ही नहीं हुआ. कुछ इसी तरह के मूर्ख युवा हैं जो फेस बुक पर जो भी किसी ने चाहा इन्हें परोस दिया उसी को बिना सोचे समझे मान लेते हैं. कुछ इस डिजाइन का है हमारे देश का युवा उसे फेस बुक पर मिलने वाली साथी मानसिकता वालों की परोसी बदबूदार सामग्री ही मिलती है जिससे उनका मस्तिष्क विकृत होता जा रहा है. यह बात लिखने का मकसद मात्र उन समाजसेवी संगठनों को समझाना है कि उन्हें चैनल्स पर मिलने वाली बाईट से अपनी समाजसेवा वाली छवि चमकाने की जगह समाज के प्रति जिम्मेदारी पर ज़्यादा ध्यान देना चाहिए. इसी में देश की जनता की भलाई है. इन खबरिया चैनलों को कब अपनी ज़िम्मेदारी का एहसास होगा पता नहीं.

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