जनता में अपनी विश्वसनीयता खो चुके अन्ना हजारे का आंदोलन सफल होना असंभव है
पिछली बार के मुकाबले इस बार अन्ना हजारे के आन्दोलन को आम लोग ज़्यादा भाव नहीं दे रहे हैं. यह बात इसलिए लिख रहा हूँ क्योंकि अन्ना हजारे के लोगों का कहना है कि लोगों को आन्दोलन स्थल तक सरकार पहुँचने नहीं दे रही है. इस बात में बहुत बड़ा छेद यह है कि जब हरियाणा में बलात्कारी राम रहीम (वर्तमान में जेल की हवा खा रहे हैं) के चेले-चपाटे इकट्ठा हो सकते हैं तो अन्ना का आन्दोलन तो एक नेक काम के लिए हो रहा है. कहीं ऐसा तो नहीं कि इस बार के अन्ना आन्दोलन पर लोगों को इसलिए भरोसा नहीं है. पिछली बार के जन-लोकपाल के लिए किये आन्दोलन से जनता खूब इसलिए जुडी क्योंकि उनके मुख्य सहयोगी अरविन्द केजरीवाल साथ थे. अन्ना जब भी जनता से इनको मिलाते थे तो यही कहते थे कि ये बंदा बहुत ही ईमानदार है. देश में बढ़ रहे भ्रष्टाचार को ख़त्म करने के लिए इन्होंने आईआरएस का पद त्याग दिया है. इनके पास मात्र दो जोड़ी पैंट शर्ट हैं. जिन्हें धोते और पहनते हैं. आन्दोलन शुरू हुआ तो लोगों का जनसैलाब उमड़ पड़ा था. अन्ना को तीन लोगों अरविन्द केजरीवाल, मनीष सिसौदिया और कुमार विश्वास ने तेरह दिन तक भूख हड़ताल पर रखा. तेरह दिन बाद भी कुछ हासिल नहीं हुआ तो रस पिलाकर अनशन तुड़वाते हुए ये कहा गया कि भ्रष्टाचार की कीचड़ को साफ़ करने के लिए राजनीतिक पार्टी बनाकर कीचड़ में घुस कर इसे साफ़ करेंगे. इस आन्दोलन से कुछ छोटे नाम बड़े होकर उभरे थे. किरण बेदी ने समय रहते राजनीतिक दल बनाने वालों का साथ छोड़ दिया कि ये कोई विकल्प नहीं है. अरविन्द केजरीवाल के साथ कुछ अन्य लोग मनीष सिसौदिया(इस समय दिल्ली की डीसीएम की कुर्सी को सुशोभित कर रहे हैं), कुमार विश्वास, प्रशांत भूषण, योगेन्द्र यादव परदे के पीछे से न्यूज़ चैनल के पत्रकार आशुतोष आदि जुटे थे. आम आदमी पार्टी के गठन के बाद ये कुनबा छोटा होता गया लेकिन महत्वाकांक्षाएं बढती गयीं. जो हुआ वो सभी के सामने है. दो जोड़ी पैंट शर्ट वाले डेड आनेस्ट अरविन्द केजरीवाल लालू यादव से गले मिलने लगे. जिन्हें की अब तक चारा घोटाले में 14 साल की जेल की सजा कोर्ट सूना चुका है. हाल ही में लाभ के पद के मामले में आप के 21 विधायकों को चुनाव आयोग अयोग्य घोषित कर बर्खास्त कर दिया था. और भी कुछ इसी तरह के झमेले में फंसने वाले आप और अन्ना के सहयोगियों के कारण जनता के कान खड़े कर दिए. अन्ना सच्चे मन से किसानों के लिए आन्दोलनरत हैं. इस बात पर अब आम आदमी भरोसा नहीं कर पा रहा है. आन्दोलन की विश्वसनीयता बनाए के लिए वर्तमान सहयोगी इस आन्दोलन से जुड़ने वालों से एफीडेविड लिखवा रहे हैं कि वो राजनीति में नहीं आयेंगे. कितनी हास्यास्पद बात है कि एक हलफनामे का क्या महत्व है. आज की तारीख़ में तीन तलाक़ कोई भी नहीं दे सकता है उसके बाद भी तीन तलाक़ की घटनाएँ हो रही हैं. अन्ना हजारे को ये बात अच्छे से समझ लेनी चाहिए कि मोदी के पीएम बन जाने के बाद से भ्रष्टाचार पर मज़बूत लगाम लगी है. छोटी-मोटी हेराफेरी तो कोई भी कर सकता है लेकिन यादव सिंह सरीखे लोगों के नकेल डाल दी गयी है. आम जन को पीएम मोदी का भ्रष्टाचार के खिलाफ अपनाया फंडा समझ में आ चुका है. इस बात का अंदाजा 21 राज्यों में जीत से ही लगाया सकता है. नोटबंदी ने इन सब काले चोरों की रीढ़ तोड़ दी है. आज की तारीख में आन्दोलन से जुड़ने वाले लोगों के हलफनामे से सफल बना लेने की न सोचें.क्योंकि आमजन को आपके हलफनामे पर से भरोसा उठ चुका है.




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