कर्नाटक विधानसभा चुनाव में कांग्रेस जीत गयी तो ठीक, हारने पर टूटन की प्रबल संभावनायें
कर्नाटक राज्य का विधानसभा चुनाव कांग्रेस किसी तरह से जीतने का जीतोड़ प्रयास करेगी. 131साल की कांग्रेस के इतने बुरे दिन आ गए है कि वो क्षेत्रीय दलों से गठबंधन करके राज्यों का चुनाव लड़ने के लिए मज़बूर हो चुकी है. आजादी मिलने के बाद से देश में कोई मज़बूत दल न होने के चलते कांग्रेस निर्बाध गति से सत्ता में आती रही. कहते हैं ज़्यादा शक्तिशाली व्यक्ति में अहंकार आ जाना स्वाभाविक है. अक्सर कहा जाता है कि कांग्रेस नेहरू गाँधी परिवार की प्राइवेट लिमिटेड कंपनी जैसी है जिसमें विरासत में पीढ़ी को पार्टी का नेतृत्व मिलता रहता है. अगर पिछले इतिहास पर नज़र डालें तो कांग्रेस में विरासत वाला ऐसा ख़ास नहीं है. हाँ कुछ दशकों से ऐसा होता चला आ रहा है. यह बात 19 बार कांग्रेस अध्यक्ष बनने वाली सोनिया गांधी से साबित होती है. अब कुछ माह पहले सोनिया के बाद यह पद राहुल गाँधी को सौंपा गया. कांग्रेस के पंडित जवाहर लाल नेहरू देश के प्रथम प्रधानमंत्री बने थे. उसके बाद गुलजारी लाल नंदा, फिर लाबहादुर शास्त्री, एक बार फिर से गुलजरी लाल नंदा, इसके बाद इंदिरा गाँधी ने सत्ता संभाली, देश में आपातकाल लगाने वाली इंदिरा गाँधी ही थीं. सभी छोटे दलों के नेता जेल में डाल दिए गए. इससे सभी नेताओं को एकजुट होने का मौक़ा मिल गया. आपातकाल के बाद हुए चुनाव में सभी दलों ने मिलकर जनता पार्टी का गठन किया. जनता पार्टी ने बहुमत से सरकार बनायी, लेकिन इस सरकार में विभिन्न विचारधाराओं के नेताओं के होने के कारण मोराजी देसाई के स्थान पर चौधरी चरण सिंह ने प्रधानमंत्री पद संभाला. जनता पार्टी अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा न कर सकी. इसके बाद हुए चुनाव में इंदिरा गाँधी के पास एक बार फिर से सत्ता की बागडोर आ गयी. इंदिरा गाँधी की हत्या हो जाने के बाद उनके पुत्र राजीव गाँधी को प्रधानमंत्री पद सौंप दिया गया. राजीव गाँधी के खिलाफ एक बार फिर से राजनीतिक दलों ने मिलकर विश्वनाथ प्रताप सिंह के नेतृत्व में जनता दल का गठन कर केंद्र की सत्ता हासिल कर ली. आपसी उठा-पटक के चलते 1980 में बीजेपी का गठन हो चुका था. सत्ता के लिए बनी जनता दल की सरकार लगभग तीन साल चली.वरिष्ठ समाजवादी नेता चन्द्र शेखर को वीपी सिंह के स्थान पर प्रधानमंत्री बनाया था. इसके बाद कांग्रेस के नेता व इंदिरा गांधी के पुत्र राजीव गाँधी की चुनाव प्रचार के दौरान हत्या कर दी गयी थी. इसका फायदा कांग्रेस को सत्ता के रूप में मिला और वरिष्ठ कांग्रेस नेता पीवी नरसिम्हा राव ने केंद्र में कुछ दलों सांसदों के समर्थन सरकार का नेतृत्व किया. 13वीं लोकसभा के गठन के लिए हुए चुनाव में बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरने के कारण सरकार गठन का मौंका बीजेपी के पास बहुमत न होने के कारण जनता दल ने कांग्रेस के समर्थन से सरकार बना ली.इसका नेतृत्व एचडी देवेगौडा और उसके बाद इंद्र कुमार गुजराल ने किया. अब तक क्षेत्रीय दलों के साथ मिलकर सरकार बनाने का चलन शुरू हो चुका था. बीजेपी ने भी एनडीए का गठन कर के क्षेत्रीय दलों को साथ लेकर अटल के नेतृत्व में सरकार बनायी. जो पांच साल चली.इसके बाद एक बार फिर से कांग्रेस ने सत्ता हासिल की तो 10 यानि की दो बार लोकसभा चुनाव जीते. वर्तमान में एनडीए की मोदी सरकार सत्ता पर काबिज है.अगर पीछे मुड़ कर देखें तो कांग्रेस ने 2014 आते-आते तक कई बार टूटन देखी है. 1939- ऑल इंडिया फॉरवर्ड ब्लॉक बना. इसके पार्टी प्रमुख थे सुभाष चंद्र बोस
1964- केरल कांग्रेस का गठन. इसमें से कई राजनीतिक दल बने. केरल कांग्रेस (एम), केरल कांग्रेस (बी), केरल कांग्रेस (जैकब), केरल कांग्रेस (थॉमस), केरल कांग्रेस (नेशनलिस्ट). 1967- इंडियन नेशनल कांग्रेस (इस पार्टी को चुनाव आयोग ने 1971 आम चुनावों के बाद मान्यता दी). इसकी पार्टी प्रमुख इंदिरा गांधी थीं.
1968- मणिपुर पीपल्स पार्टी बनी. पार्टी प्रमुख थे मोहम्मद अलीमुद्दीन1997- ऑल इंडिया तृणमूल कांगेस का गठन किया. ममता बैनर्जी ने अगुवाई की.
1999- नेशनल कांग्रेस पार्टी बनी. अध्यक्ष थे शरद पवार.2002- विदर्भ जनता कांग्रेस बनी. पार्टी प्रमुख जम्बवंतराव धोते थे.2007- हरियाणा जनहित कांग्रेस बनी. भजन लाल ने अगुवाई की.2011- वाईएसआर कांग्रेस पार्टी का गठन. पार्टी प्रमुख थे वाई एस जगनमोहन रेड्डी. इसी साल ऑल इंडिया एन आर कांग्रेस भी बनी. एन रंगास्वामी ने अगुवाई की.
2014- जय समायकआंध्र पार्टी. एन किरणकुमार रेड्डी ने पार्टी बनाई.
अब तक कांग्रेस के टूटने से 11 दलों की उत्पत्ति हो चुकी है. कर्नाटक का विधानसभा चुनाव भी एक बार फिर से कांग्रेस के टूटने के संकेत दे रहा है. अगर यहाँ पर भी राष्ट्रीय अध्यक्ष कांग्रेस की सत्ता में वापसी नहीं करवा पाए तो लोकसभा चुनाव आते तक कांग्रेस में उठा-पटक होना तय है. जिस तरह से कुछ क्षेत्रीय दल अपना अस्तित्व बचाने के लिए जूझ रहे हैं, इससे यही जान पड़ता है कि इन दलों को राहुल गांधी का लोकसभा 2019 चुनाव में नेतृत्व स्वीकार नहीं होगा. अगर ऐसा होता है तो अलग थलग पड़ी कांग्रेस के नेताओं को हार-दर-हार की खीज अलग होने पर मज़बूर कर सकती है.
1964- केरल कांग्रेस का गठन. इसमें से कई राजनीतिक दल बने. केरल कांग्रेस (एम), केरल कांग्रेस (बी), केरल कांग्रेस (जैकब), केरल कांग्रेस (थॉमस), केरल कांग्रेस (नेशनलिस्ट). 1967- इंडियन नेशनल कांग्रेस (इस पार्टी को चुनाव आयोग ने 1971 आम चुनावों के बाद मान्यता दी). इसकी पार्टी प्रमुख इंदिरा गांधी थीं.
1968- मणिपुर पीपल्स पार्टी बनी. पार्टी प्रमुख थे मोहम्मद अलीमुद्दीन1997- ऑल इंडिया तृणमूल कांगेस का गठन किया. ममता बैनर्जी ने अगुवाई की.
1999- नेशनल कांग्रेस पार्टी बनी. अध्यक्ष थे शरद पवार.2002- विदर्भ जनता कांग्रेस बनी. पार्टी प्रमुख जम्बवंतराव धोते थे.2007- हरियाणा जनहित कांग्रेस बनी. भजन लाल ने अगुवाई की.2011- वाईएसआर कांग्रेस पार्टी का गठन. पार्टी प्रमुख थे वाई एस जगनमोहन रेड्डी. इसी साल ऑल इंडिया एन आर कांग्रेस भी बनी. एन रंगास्वामी ने अगुवाई की.
2014- जय समायकआंध्र पार्टी. एन किरणकुमार रेड्डी ने पार्टी बनाई.
अब तक कांग्रेस के टूटने से 11 दलों की उत्पत्ति हो चुकी है. कर्नाटक का विधानसभा चुनाव भी एक बार फिर से कांग्रेस के टूटने के संकेत दे रहा है. अगर यहाँ पर भी राष्ट्रीय अध्यक्ष कांग्रेस की सत्ता में वापसी नहीं करवा पाए तो लोकसभा चुनाव आते तक कांग्रेस में उठा-पटक होना तय है. जिस तरह से कुछ क्षेत्रीय दल अपना अस्तित्व बचाने के लिए जूझ रहे हैं, इससे यही जान पड़ता है कि इन दलों को राहुल गांधी का लोकसभा 2019 चुनाव में नेतृत्व स्वीकार नहीं होगा. अगर ऐसा होता है तो अलग थलग पड़ी कांग्रेस के नेताओं को हार-दर-हार की खीज अलग होने पर मज़बूर कर सकती है.



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