फ़ालतू की बयानबाजी करा राहुल को स्थापित नेता बनने से रोकने वाला कांग्रेसी है या कोई बाहरी व्यक्ति

कर्नाटक के विधानसभा चुनाव के मद्देनज़र बीते कई दिनों से कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी राज्य में डेरा डाले हुए हैं और धुआंधार प्रचार करने में लगे हुए हैं. लगभग डेढ़ दर्जन से अधिक राज्यों में हार मिलने से निराश कांग्रेस को कर्नाटक में जीत की आस लगाये हुए है. इस प्रचार के दौरे की कुछ ख़बरें सोशल मीडिया के माध्यम से देखने को मिल रही हैं. जिनसे लगता है. कांग्रेस एक बार फिर से कुछ पंजाब जैसा चमत्कार होने की उम्मीद लगाए हुए है. गुजरात की तर्ज़ पर कर्नाटक में भी हिन्दू,मुस्लिम इसाई वोटों के लिए राहुल मंदिर दरगाह और चर्च आदि की परिक्रमा में जुटे हुए हैं. अगर कर्नाटक के विधानसभा चुनाव फतह कर लेती है तो कांग्रेस से अधिक राहुल गाँधी को नफ़ा होना है. उन्हें कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में पूरी तरह से मान्य हो जायेंगे. हालिया घटना में मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने हाई-कमान के कहने पर लिंगायत समाज को अलग हिन्दूओं के रूप में मान्यता दे डाली है. एक तरफ कांग्रेस कहती है कि बीजेपी देश के टुकड़े करना चाहती है, वहीँ दूसरी तरफ लिंगायत को अलग हिन्दू घोषित करने की बात गले न उतरने वाली लगती है. 20 फीसदी लिंगायतों को हिन्दुओं से अलग करना वोट बैंक की राजनीति से कुछ ज़्यादा नहीं लगता है. इसके पीछे कांग्रेस के राजनीतिक रणनीतिकारों की क्या सोच है. वही बेहतर समझ सकते हैं. कुछ इसी तरह का वोट बैंक की राजनीति के तहत गुजरात में भी पाटीदारों दलितों और पिछड़ों के वोटों को साधकर चुनाव जीतने का असफल प्रयास किया था.लेकिन प्रधानमंत्री मोदी के गृह राज्य में बीजेपी को छठी बार भी चुनाव में नहीं हरा पायी. गुजरात में 99 सीटें जीतने पर बिकाऊ मीडिया के माध्यम से ये प्रचारित करवाया था कि बीजेपी को 100 का आंकड़ा पार नहीं करने दिया. ये क्या बात हुई बहुमत से 7 सीटें अधिक जीतने वाली बीजेपी को क्या 99 सीटों पर रोक लेने में ही कांग्रेस को इतनी ख़ुशी मिल गयी. ये बातें कांग्रेस की हताशा की तरफ इशारा करती है. कर्नाटक में भी मंदिरों की परिक्रमा के दौरान मैसूर में एक स्कूल की छात्रा ने राहुल से नेशनल केडेट कोर की ट्रेनिंग से होने वाले फायदों के बारे में पूछा तो उन्हें एनसीसी के बारे में किसी भी तरह का कोई ज्ञान नहीं था. इस घटना पर वायरल हुए वीडियो को देखकर कांग्रेसियों पर थोड़ा गुस्सा आया कि वो अल्पज्ञान रखने वाले राहुल गाँधी से सीरियस मुद्दों पर भी फिल्मी टाइप की कॉमेडी कराने से नहीं चूकते हैं, जिसका लाभ बीजेपी पूरे तौर पर उठा ले जाती है. गुजरात चुनाव में भी कुछ इसी तरह की बातें कहलाई जाती रहीं. जीएसटी को गब्बर सिंह टैक्स तो नोटबंदी को ग़रीबों के लिए अभिशाप जैसा ही बोलते दिखाई दिए थे. अगर कांग्रेसियों ने जीएसटी को गब्बर सिंह टैक्स कहने के लिए ज्ञान दिया था तो उन्हें कुछ देश की राजनीति पर भी जानकारी देते रहें ताकि खुले मंच पर राहुल गाँधी की किरकिरी न हो. कभी-कभी राहुल गाँधी के इतने सीधे होने पर तरस आने लगता है. पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान अमेठी में कांग्रेस समर्थक ने उनसे समस्या बतायी और बीजेपी के नेताओं के वहां पर होने की बात कही तो वो पलट कर बोले की जाओ तुम बीजेपी के नेताओं के साथ चले जाओ. कांग्रेस में कोई ऐसा है जो राहुल गाँधी के राजनीतिक जीवन पर ग्रहण लगाने का प्रयास परदे के पीछे से कर रहा है. किसी एक मुद्दे पर कई तरह की बातें कहलवा कर उन्हें पप्पू साबित करना चाहता है. हाल ही में कांग्रेस के महाधिवेशन में उनके मुंह से कहलवाया गया कि मुझे एक पुआरी ने कहा जा तू प्रधानमंत्री बनने वाला है. जिस तरह से कर्नाटक में चल रहा है उससे तो यही लगता है कि कांग्रेस यहाँ भी हारने की कगार पर है. यह बात कांग्रेस के नेता अच्छे से समझते हैं कि राहुल गाँधी अब गाँधी परिवार के एकलौते झंडा बरदार नेता हैं. राहुल का राजनीतिक जीवन खत्म होते ही अध्यक्ष की कुर्सी किसी गाँधी परिवार से बाहर के नेता को मिलनी निश्चित है. खुले मंच पर राहुल की किरकिरी कराने वाले की सोनिया गाँधी और उनके हितैषियों को इस अति महत्वाकांशी की खोज करनी चाहिए. जो कांग्रेस के अध्यक्ष पद पर नज़रें गड़ाये बैठा. वरना वो दिन दूर नहीं जब  फ़िल्मी स्टाइल में उन्हें अल्पज्ञानी घोषित कर राहुल गाँधी को बाहर का रास्ता दिखने के चक्कर में है.

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