कांग्रेस अपने अधिवेशन में मोदी सरकार को कोसने के अलावा कुछ भी हासिल नहीं कर पायी
कांग्रेस के अधिवेशन पर चौथे स्तम्भ की नज़रें इसलिए थीं कि आसन्न लोकसभा चुनाव के मद्देनज़र कुछ नया निकल कर आयेगा. लेकिन कुछ भी नया या बड़ा नहीं निकला. जो बड़ा था, वो हाथ का पंजा था. नयी बोतल में पुरानी शराब की तरह ही चुनाव मंच की जगह अधिवेशन मंच से सभी कांग्रेसी सिर्फ पीएम मोदी और उनके कार्यों को कोसते दिखे.राष्ट्रीय चैनल की कनक्लेव में जिस रहस्यपूर्ण ढ़ंग से ये बात कही थी कि कांग्रेस का अध्यक्ष कोई बाहर का भी बन सकता है. बस इसीलिए सभी मीडिया के लोग उस कौन के बारे में जानने के लिए लगे हुए थे. लेकिन खोदा पहाड़, निकली चुहिया की तर्ज़ पर खोदा पहाड़ निकले नरेंद्र मोदी को कोसते कांग्रेसी. सभी को लगा था कि इस अधिवेशन के माध्यम से कांग्रेस 2019 के लोकसभा चुनाव की तैयारी पर चर्चा करेगी. लेकिन ऐसाकुछ न होते हुए एक ही विषय रहा वो मोदी सरकार, बीजेपी और आरएसएस किसी ने कहा देश को बांटा जा रहा है तो किसी ने जानवरों से तुलना कर दी तो किसी ने देश से किये वादे न पूरे करने की बात कही सभी मुद्दों का केंद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही रहे. चेयरपर्सन सोनिया गाँधी ने कहा कि मोदी ने देश की जनता से किये वादे पूरे नहीं किये. ये बात कहने से पहले सोनिया गाँधी को ये बात याद रखनी चाहिए थी कि मोदी ने देश को कांग्रेस मुक्त बनाने का वादा जो किया था, उसे अमलीजामा पहनाने में पूरी तरह से सफल रहे हैं. कांग्रेस मुक्त भारत का लक्ष्य पूरा करने से मात्र 4 चार राज्य दूर हैं.ये बात भी देश की जनता से पीएम मोदी ने कही थी, इसे पूरा करने में जनता भरपूर सहयोग कर रही है. कांग्रेस के नेताओं को अपनी खस्ता हो चली हालत पर चिंतन करना चाहिए था इस हालत को कैसे सुधारा जा सकता है उस पर चिंतन करना चाहिए था. अधिवेशन करके कांग्रेस ने सिर्फ इतना ही करना चाहा है कि अगर 2019 के चुनाव में सभी दल मिलकर चुनाव लड़ें तो इसके केंद्र में कांग्रेस ही रहे. लगता है कांग्रेस की अभी तक दिन में भी ख्वाब देखने की आदत गयी नहीं है. कांग्रेस को ये बात नहीं भूलनी चाहिए कि वो आज अटल के समय की बीजेपी की जगह पर खड़ी है, जिनकी सरकार संसद में एक वोट से बहुमत हासिल न कर पाने के कारण गिर गयी थी. आज तक की कनक्लेव में सोनिया गांधी ने अदल बिहारी वाजपेई की मोदी के मुकाबले लोकतांत्रिक मूल्यों में बेहतर बताया था. उसी के अटल की सरकार को अनैतिक तरह से गिराने में नहीं हिचकी थीं. कांग्रेस अधिवेशन में भी सोनिया गाँधी लोकतांत्रिक की बातें किस मुंह से कर रहीं थीं. कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष ये कहावत को नहीं भूलनी चाहिए था कि 'लकड़ी जलकर पीछे की तरफ ही आती है. संसद में एक सीट से अटल के नेतृत्व वाली सरकार को गिराने वाली कांग्रेस केंद्र ही नहीं राज्यों में भी एक-एक जीतने के लिए जोड़-तोड़ करती दिखाई दे रही है. बीजेपी को मोदी रूप में मज़बूत नेतृत्व मिल जाने के कारण कांग्रेस को हालत अब उसी भाषा में जवाब मिल रहा है. अगर कांग्रेस भी लोकतांत्रिक मूल्योंन का निर्वहन कर रही होती तो आज वो एक बार फिर से कब की सीधी खड़ी हो चुकी होती. यूपी के उप चुनाव को सामने रख कर देखा जाए तो सपा-बसपा ने कांग्रेस को दोयम दर्जे की पार्टी से ज़्यादा नहीं समझा और दोनों ने गठबंधन करके ये कांग्रेस को साफ़ संकेत दे दिया कि इन्हें कांग्रेस के साथ की कोई ज़रुरत नहीं है.एक समय ऐसा भी था जब एसपी मुखिया मुलायम सिंह यादव बाहर से समर्थन देने के लिए उतावले थे तो कांग्रेस ने उनके समर्थन अनदेखी कर दी थी. आज उन्हीं के पुत्र अखिलेश यादव ने अपना राजनीतिक कद बढ़ा कर कांग्रेस को जता दिया कि उन्हें यूपी में उनके साथ की कोई आवश्यकता नहीं है. लोकसभा में 5 और विधानसभा में मात्र 47 सीटें पाने वाली सपा चार सालों में नए दमखम के साथ एक बार फिर से अपनी ज़मीन को हासिल करने के लिए उठ खड़ी हुई है. अच्छे और बुरे कर्मों का हिसाब यहीं पर होता है. जो कांग्रेस आज लोकतांत्रिक मूल्यों की बात करके के क्षेत्रीय पार्टियों से मिन्नतें कर रही है. उसके साथ से भी इन्हें परहेज हो गया है. इसीलिए कहा जाता है कि अहंकार इंसान को बर्बाद कर देता है. उसी का परिणाम आज कांग्रेस भुगत रही है. भविष्य में बने गठबंधन के केंद्र में खुद को फिट करने का दिवास्वप्न देखना छोड़ देना चाहिए.



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