एससी/एसटी एक्ट आन्दोलन : नफे-नुकसान का पता राजनीतिक दलों को 2019 में चलेगा

पिछले दिनों एससी/एसटी  एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट के लिए निर्णय कोई बहुत बड़ा फेर-बदल नहीं किया गया था. इसके बावजूद कुछ राजनीतिक दलों ने ये भ्रम फैलाया कि आरक्षण खत्म कर दिया गया है. इस बात को सुन कुछ प्रतिशत प्रतिशत अज्ञानी दलितों में भ्रम फैल गया और कुछ राजनीतिक दलों ने इस आन्दोलन की अगुआई करते हुए इसे भयानक रूप देने का भरपूर प्रयास किया. ऊपर कुछ प्रतिशत इसलिए लिखा क्योंकि देश में 20 राज्य हैं इनमें से कुल 10 राज्यों में एससी/एसटी एक्ट पर लोगों को भ्रमित किया गया. इन दस में से नौ राज्यों में बीजेपी की सरकार है. एकमात्र राज्य पंजाब में कांग्रेस की सरकार है. बीजेपी शासित राज्यों में जमकर तोड़-फोड़ आगजनी हो हिंसा हुई, लेकिन कांग्रेस शासित राज्य पंजाब में ऐसा कुछ नहीं हुआ. यही बातें एससी/एसटी एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को दलितों के सामने तोड़-मरोड़ कर किसने परोसा होगा. पंजाब को माइनस कर दें तो बाक़ी बचे 9 राज्यों में से राजस्थान मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने हैं. इसी के साथ 2019 में लोकसभा दस्तक दे देंगे. ये बात शंका पैदा करती है कि क्या दलित उत्पीड़न एक्ट सिर्फ इन्हीं 9 राज्यों में ही है. बाकी के बचे 20 राज्य=यों में आरक्षण और एससी/एसटी एक्ट नहीं है? है,लेकिन वहां पर आन्दोलन के माध्यम से हिंसा फैलाने से बीजेपी विरोधियों को कोई नफ़ा नहीं दिख रहा होगा. अगर इन राज्यों में इस आन्दोलन से सबसे ज्यादा वोट का मुनाफा होना है तो वो कांग्रेस है, यूपी में सपा बसपा को ऐसे जातीय आन्दोलन की सख्त ज़रुरत थी. मेरठ के हो रहे वायरल वीडियो इस बात को पुख्ता करते हैं. पंजाब में हिंसा न होने के कारणों में जाया जाए तो सामने कांग्रेस दिखाई देती है. अगर कांग्रेस ये दलील देती है कि राज्य के मुख्यमंत्री ने पुख्ता इंतज़ाम कर लिए थे. तो फिर ऐसा क्यों हुआ कि लगभग 32 फीसदी दलित आबादी वाले राज्य पंजाब में आन्दोलनकारियों ने थोड़ा तो ग़दर काटना चाहिए थ. कितने भी पुख्ता इंतजाम कर लिए जाए तो भी अन्य राज्यों की तुलना में बहुत भयानक स्थिति होनी चाहिए थी.यह बात बहुत खटक रही है कि जो कांग्रेस बाल की खाल निकालती है और मोदी  सरकार विरोध करने लगती है उसके दूसरे दिन समाचार पत्रों में कोई ऐसा बयान नहीं आया कि हम दलितों के साथ हैं हाँ ये ज़रूर कहा गया कि समय पर पुनर्विचार याचिका समय पर इस एक्ट पर दाखिल कर दी जाती तो इतनी हिंसा न होती. इसी बात ने आशंकाओं को जन्म दिया कि पंजाब इस हिंसा की आग से अछूता क्यों रहा. बार-बार कांग्रेसियों का ये बयान आना कि समय पर रिव्यू पिटीशन दाखिल क्यों नहीं की गयी. ये बातें साफ़ इशारा कर रही हैं कि कांग्रेस की हताशा दिन बी दिन इसलिए  बढ़ रही है क्योंकि वो मोदी के पीएम बनने के बाद से दर्ज़न भर से अधिक राज्यों को गवां चुकी है. सभी विरोधी दलों को यह बात अच्छे से समझ लेनी चाहिए कि देश की जनता ने जाति और धर्म की राजनीति को तिलांजलि दे दी है. इसीलिए नकारात्मक राजनीति असरकारी साबित नहीं हो रही है. इस को त्रिपुरा और गुजरात के चुनाव साफ़ तौर पर संकेत दे चुके हैं. किस राजनीतिक दल को इस एससी/एसटी एक्ट आन्दोलन से किसको-कितना नफा हुआ ये अब 2019 के लोकसभा चुनाव के परिणाम बतायेंगे.

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