कमलनाथ किसी का नाम नहीं, अपना काम बताएं कि कांग्रेस ने 55 साल में महिलाओं की सुरक्षा के लिए क्या-क्या किया

यह कांग्रेस के दिमागी दिवालियेपन की निशानी है कि वो अपने प्रतिद्वंद्वी भारतीय जनता पार्टी के के कामों और नारों में अब तक मीन-मेख ही निकाल पा रहा है. ऐसा लगता है कि आम लोगों से कहीं ज्यादा मोदी सरकार के इन चार वर्षों के कार्यकाल से कांग्रेस सबसे ज्यादा परेशान है. सम्पन्न जाटों ने आरक्षण के नाम पर अरबों रुपये की देश की संपत्ति नष्ट कर दी.तुरंत इस मुद्दे पर कांग्रेसी नेता जुट गए कि बीजेपी को जाट आरक्षण पर अपना रुख स्पष्ट करना चाहिए. जब खुद दस साल तक सत्ता का आनंद ले रहे थे तो अपने इस कार्यकाल में ही जाटों को आरक्षण दे देते तो आज रुख स्पष्ट करने के लिए कहने की ज़रुरत न पड़ी. मोदी सरकार के दो साल बीतते ही काला धन लाने का वादा किया था नहीं आया. जब मोदी सरकार ने काला धन निकालने के लिए नोटबंदी कर दी तो चिल्लाने लगे कि गरीब भूखा मर रहा है. अपना पैसा ही लेने के लिए लोगों को लाइन में लगना पड़ रहा है. ऐसी बेसर-पैर की बातें कोई और नहीं कांग्रेस के वर्तमान में अध्यक्ष राहुल गाँधी कहते दिखे. नोटबंदी से गरीब कैसे मर गया, इसका जवाब इनके पास नहीं था. जवाब जनता ने दिया, इसके बाद कई राज्यों से कांग्रेस सफा हो गयी. पाकिस्तान पर जब सर्जिकल स्ट्राइक की गयी तो एक बार फिर से सभी छोटे-बड़े कांग्रेसी पहले तो इ कहते हुए नहीं थके कि फर्जी है. बाद में अपनी पीठ थपथपाते हुए चिल्लाने लगे कि बीजेपी सैनिकों की कार्यवाही का क्रेडिट लेकर इसका राजनीतिक लाभ उठाना चाह रही है. ये बात समझ में नहीं आई कि इससे लाभ मिल सकता था तो खुद ही दस साल में कई सर्जिकल स्ट्राइक कर सकते है. कश्मीरी पत्थरबाज़ों से मार खा रहे देश के सैनिकों को सख्ती करने के लिए मोदी सरकार ने आदेश दिया तो चिल्लाने लगे की निहत्थों पर रबर बुलेट का इस्तेमाल किया जा रहा है. कुछ इसी तरह के दिवालियेपन की बातों के चलते केंद्र की सत्ता से तो गयी ही, साथ में राज्यों से भी इनकी सरकारें गायब होती जा रही हैं. अब कहना शुरू कर दिया है कि मोदी कुछ नहीं कर रहे हैं. मान भी लिया जाए कि मोदी कुछ नहीं कर रहे हैं तो फिर इतना चिल्लाने की क्या ज़रुरत है. अगली बार केंद्र की सत्ता में आने के लिए कुछ गुड वर्क करने की जगह, सिर्फ गाल बजाकर सत्ता में वापसी के ख्वाब देखने में जुटी है. केंद्र की मोदी सरकार ने जब बेटी पढाओं-बेटी बचाओ और मेक इन इंडिया के स्लोगनों  को बेटी छिपाओ ब्लात्कार से बचाओ और रेप इन इण्डिया जैसे सतही मानसिकता के जुमलों को बोलते हुए लोकसभा चुनाव के बाद से गायब कांग्रेस के नेता कमलनाथ अपनी नेतागीरी चमकाने ये कहते हुए आ गए कि भारतीय जनता पार्टी को नाम बदल कर बलात्कार जनता पार्टी रख लेना चाहिए. आज तक हताश और निराश कांग्रेसी क्या कहना चाहते हैं समझ में नहीं आया. कांग्रेस नेताओं की नज़र से देखा जाए तो ऐसा लग रहा है मानो देश में सिर्फ बलात्कार ही हो रहे हैं.इन दिमाग से दिवालिया हो चुके कांग्रेसियों के पास इस बात का जवाब नहीं है कि जिस जगह केंद्र का प्रधानमंत्री बैठता हो उस दिल्ली में 2012 में कांग्रेस की यूपीए सरकार के समय में नाक के नीचे 6 लोग एक छात्रा निर्भया से बर्बरता पूर्वक बलात्कार करते हैं और फिर उसके योनी मार्ग में लोहे की राड डालकर उसकी हत्या कर देते हैं, कमलनाथ क्या कोमा चले गए. देश की राजधानी दिल्ली में ऐसा भयावह कुकृत्य होता है तब इन नेताओं की संवेदनाएं कहा चली गयी थीं. इन दिमाग से दिवालिये कांग्रेसी नेताओं को बेटी बचाओ-बेटी पढाओ स्लोगन भी रास नहीं आ रहा है. अगर पीएम मोदी ने स्लोगन के द्वारा बेटियों को सरक्षण देने की वकालत की है तो इसमें बुराई क्या है. निर्भया लोमहर्षक बलात्कार कांड के दाग लेकर घूमने वाले नेता आज बेटी बचाओ बेटी पढाओ का नारा देने पर नैतिकता और सुझाव देने लगी. आज़ादी के बाद से तीन दशक तक देश पर राज करने वाली कांग्रेस पार्टी ने इतने सालों में महिलाओं की सुरक्षा के लिए कुछ सोचा. किसान आत्मह्त्या कर लेते हैं, इन घटनाओं को रोकने के लिए कोई योजना बनायी. क्या क़र्ज़ माफ़ी ही इसका विकल्प है. अगर क़र्ज़ माफ़ कर देने से ही किसान आत्म हत्या करना बंद कर देते तो तो कांग्रेस ने ६० सालों में अन्नदाता का कर्ज़ क्यों नहीं माफ़ कर दिया. निर्भया कांड के बाद से देश भर में अब तक 1 लाख75 महिलायें और मासूम बच्चियां बलात्कार का शिकार हुई हैं. क्या कांग्रेस के कमलनाथ के पास इस बात का जवाब है कि निर्भया कांड जैसी घटनाओं को रोकने के लिए कांग्रेस ने महिलाओं की सुरक्षा के लिए क्या  किया ? यह बात हैरान करने वाली है कि जो भी आन्दोलन होता है उसका अगुआ नेता कांग्रेस में ही क्यों दिखने लगता है. पाटीदारों को भड़काने वाला कांग्रेस के साथ. दलितों के लिए कथित तौर पर आवाज़ उठाने वाला जिग्नेश मेवाती कांग्रेस के साथ कैसे पहुँच जाता है. ये कैसे होता है, कुछ तो कहीं पर झोल है या तो होने वाले आन्दोलन फर्जी है या फिर ये कथित नेता. जेएनयू में भारत विरोधी नारे लगाने वाला कन्हैया कुमार कांग्रेस की दोस्त पार्टी वामपंथियों का गुर्गा निकला. कांग्रेस की हालत आज उस पंडित जैसी है जो मरे और जिंदे दोनों में खाने के लिए तैयार रहता है.

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