एसटी/एससी एक्ट:निर्णय पर अटल सुप्रीम कोर्ट: न्याय के मंदिर में देर है, पर अंधेर नहीं

शीर्ष न्यायालय ने रिव्यू पिटीशन पर स्टे से साफ इनकार कर दिया है. यह इस बात को साबित करता है कि एसटी-एससी का दुरुपयोग हो रहा था. इस बात को अच्छे से समझ लेने के बाद ही एसटी एससी एक्ट बदलाव करने का एक सराहनीय निर्णय लिया गया. रिव्यू पिटीशन में केंद्र सरकार के तर्कों को दरकिनार करते हुए शीर्ष न्यायालय का कहना था.कि न्याय पाने का सभी को बराबर का अधिकार है. अगर एसीएसटी एक्ट पीड़ित को न्याय देता है तो. यदि किसी को इस एक्ट के तहत झूठे मामले में फंसाया जाता है तो उत्पीडन के शिकार को न्याय पाने का इतना ही अधिकार है. रव्यू पिटीशन पर स्टे न देने के निर्णय से साफ़ हो गया है कि चीफ जस्टिस का फैसला बहुत गहराई से सोच समझ कर लिया गया है. इसके दुरुपयोग का जीता जागता उदाहरण है ये केस.  दो अगडी जाति के नेताओं के बीच चुनावी रंजिश के चलते प्रधानी के चुनाव में बार-बार हारने के बाद जीत दर्ज करने वाले अगड़ी जाति के नेता से खुन्नस रखने लागा था. अचानक एक दलित महिला पर रात के समय फरसे से हमला होता है. हमला किसने किया ये अज्ञात होता है. पुलिस जांच करके चली जाती है. कुछ दिन बाद प्रधानी का चुनाव जीतने वाले अगड़ी जाति के बुजुर्ग नेता को पुलिस एससी-एसटी एक्ट के तहत जेल में डाल देती है. जेल जाने के बाद खुलासा होता है कि उस दलित महिला ने प्रधानी के चुनाव में रंजिश रखने वाले नेता ने इस दलित महिला को धन का लालच देकर विरोधी नेता के  खिलाफ हमला करने की रिपोर्ट दर्ज़ करवा थी. ऐसे झूठे केस जब सुप्रीम कोर्ट के समक्ष  ज्यादा पहुँचने लगे तो इसे शीर्ष न्यायालय ने संज्ञान लिया होगा. ऐसा ही एक केस है जिसमें दलित व्यक्ति अगड़ी जाति के दुकानदार से खाद खरीदता था. ज्यादा रुप्य्सा बकाया हो जाने पर दलित ने दूसरी दूकान से खाद लेना शुरू कर दिया. जब अगड़ी जाति के व्यक्ति ने अपने उधर रुपयों मांगे तो दलित ने उसके खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करवाई कि इस व्यक्ति ने मेरा गला पकड़ कर जाति सूचक गाली देते हुए मारा-पीटा. ऐसे ही अन्य फर्जी केस भी होंगे. एक राष्ट्रीय चैनल के अनुसार 5 साल में लगभग दो लाख मामले एसटी एससी एक्ट के तहत दलित उत्पीड़न के दर्ज किये गए. जिसमें मात्र 50 हज़ार मामलों में दोष सिद्ध हो पाया है. इस हिसाब से दर्ज लगभग डेढ़ लाख मुक़दमें फर्जी थे. न्याय की कुर्सी पर बैठा व्यक्ति हर उस व्यक्ति के लिए भगवान होता है जो उससे न्याय के मंदिर में न्याय की आस लेकर आता है. कहते हैं ऊपर वाले के घर देर है अंधेर नहीं है. इसी कारण मुख्य न्यायधीश को एससी-एससी एक्ट के तहत मुक़दमों की बाढ़ से ही लगा होगा कि इस एक्ट के बाद भी दलित उत्पीड़न क्यों नहीं रुक रहा है. अगर शीर्ष न्यायालय अपने विवेक से संज्ञान न लेता तो न्याय के मंदिर से पीड़ितों का भरोसा उठ जाता. समय बड़ा बलवान है कि बात आज साबित हो गयी. इस एक्ट के मामले में सुप्रीम कोर्ट का इतना कड़ा रुख ही बताता है कि आज तक जिस एक्ट के तहत लोगों को सज़ा हुई है वो कहीं निर्दोष तो नहीं थे. इस एक्ट में तुरंत गिरफ्तारी पर रोक लगाने के फैसले को आपस लेने की केंद्र  सरकार की तरफ से दायर रव्यू पिटिशन पर शीर्ष न्यायालय से मिले दो टूक जवाब के साथ ये हिदायत भी मिलना की देश में इतना बवाल क्यों हो रहा है उसे रोकने की और सुरक्षा की ज़िम्मेदारी सरकार की है. हम लोगों को न्याय देने के लिए है तो सरकार को उनकी सुरक्षा करने की ज़िम्मेदारी होती है देश में फैली अराजकता की स्थिति से निपटाना केंद्र सरकार का काम है.

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