आशिफ़ा बलात्कार के बाद हत्या का मामला: कहीं ऐसा तो नहीं, मुख्यमंत्री महबूबा दो नावों पर सवारी कर रही हैं
जम्मू-कश्मीर की मुख्यमंत्री को चाहिए कि मासूम अशिफा की बलात्कार के बाद हत्या के मामले पर अब हीला-हवाली नहीं करनी चाहिए. जिस तरह से इस मुद्दे पर विवाद बढ़ा है, उससे यही जान पड़ता है कि इसमें गहरी साजिश की गयी है. ये मामला वैसा सपाट नहीं है जो सोशल मीडिया और न्यूज़ चैनल्स द्वारा दिखाया जा रहा. सवाल ये है कि मारा दिए जाने के डर से जो हिन्दू कश्मीर छोड़ कर जम्मू में शरण लिए हुए हैं. क्या वो इस तरह की साजिश करने की हिम्मत कर सकते हैं. वो भी इस बात के लिए कि बकरवाल समुदाय को जम्मू से भगाया जा सके. कहीं पढ़ा था कि बकरवाल समुदाय ही है, पाकिस्तान से भेजे जाने वाले आतंकवादियों के भारत में आमद की जानकारी देश के खुफिया तंत्र को समय-समय पर देता रहता है. इसी समाज की मासूम की बलात्कार के बाद हत्या की साज़िश कश्मीर से मुसलमानों द्वारा भगाये गये हिन्दुओं ने की होगी गले नहीं उतरती है. बकरवाल समुदाय के लिए कहा जाता है कि ये घुमंतू लोग होते हैं. एक जगह नहीं रहते हैं. ये कभी जम्मू तो कभी कश्मीर के किसी भी हिस्से में रहने लगते हैं. इस घटना पर जम्मू-कश्मीर की महबूबा सरकार की क्या सोच है, ये इसी बात से समझ में आ रही है कि जो जांच स्थानीय क्राइम ब्रांच ने की है. उसी को सत्य मान लिया गया है. लेकिन तीन महीने बाद इस न्यूज़ के सार्वजनिक हो जाने के बाद से देश में उबाल आ गया है. कुछ लोग दोषियों को फांसी तो कुछ लोग दोषियों को निर्दोष बताते हुए उनके समर्थन में सड़क पर उतर आये हैं. 8 साल की किसी मासूम की रेप बाद हत्या का ये पहला केस पर्त-दर-पर्त खुलने के बाद जिस तरह से आरोपियों के समर्थन में जुट रहे लोग, ये कह रहे हैं कि इन्हें साजिशन फंसाया जा रहा है. मानवीय संवेदनाएं रखने वाले भी यही चाहते हैं कि इस केस की सीबीआइ से निष्पक्ष जांच हो और जो दोषी है, उनको कड़ी सज़ा दी जाए. अभी तक सोशल मीडिया पर इस मामले के देखे वीडियो और फोटो से साजिशन फंसाया गया कि बात करने वाले यही कहते दिखते हैं कि निर्दोष हैं और सीबीआइ जांच की मांग पर कायम हैं. इस केस में लगभग तीन महीने बाद अचानक आये उबाल पर कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती की चुप्पी तब भी नहीं टूटी जब भाजपा के दो मंत्रियों ने आरोपितों के निर्दोष होने की बात कहते हुए इस्तीफा दे दिया है. मुख्यमंत्री महबूबा के इस बात पर अड़ जाने पर कि सीबीआइ जांच के लिए केंद्र को चिट्ठी नहीं लिखेंगी, यह दर्शाता है कि 1989 से केंद्र के रिमोट कंट्रोल से चलने वाली कश्मीर की पूर्व की सरकारों जैसा डर वर्तमान सरकार को भी सता रहा है. कश्मीर की फारूख अब्दुल्ला से लेकर उमर अब्दुल्ला तक की सरकारों को कश्मीर में पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवादियों से चलती रहने वाली उठा-पटक का डर दिखा कर केंद्र की पिछली सरकारें अपनी मनमानियां करती रही है. कश्मीर की आती-जाती सरकारों अच्छे से पता रहता है कि अगर केंद्र की बात नहीं मानी तो इसने अपना हाथ खींच लिया तो आतंकवादी फिर ताक़तवर हो कर बम धमाके करने लगेंगे. इसी खौफ के कारण अब तक कोई भी कश्मीर की सरकारें केंद्र के विरोध में फैसला नहीं ले पाती थीं. वर्तमान की केंद्र की मोदी सरकार ने हमेशा ही महबूबा सरकार को देश हित में फैसले लेने की खुली छूट दे रखी है तो महबूबा मुफ़्ती को भी चाहिए कि केंद्र का भरोसा किसी भी मुद्दे पर न तोड़ें. अशिफा मामले की सीबीआइ जांच न करने पर अड़ी महबूबा को चाहिए कि साज़िश के तहत जिस तरह से हिन्दुओं के कुल देवता के मंदिर में मासूम अशिफा की बलात्कार के बाद हत्या की बातें सोशल मीडिया के माध्यम से कुप्रचारित की गयी और मामले को ये हवा दी कि लगभग एक हफ्ते तक बलात्कार और बाद हत्या मंदिर में हुई है कि लोकल खुफिया एजेंसी की थ्योरी मंदिर की भौगोलिक स्थिति को देखते हुए मनगढ़ंन और साजिश लग रही है. अशिफा को एक घंटे के लिए मंदिर में बंधक बनाने की बात को मा ली जा सकता है, लेकिन एक हफ्ते तक पूजा स्थल जिसमें तीन गाँवों के सभी हिन्दू दो समय आकर पूजा अर्चना करते हैं. इसे कैसे मान लिया जाए कि इन लोगों ने अशिफा को देखा और इस बारे में पुलिस को खबर न देकर, उसके साथ मंदिर के अन्दर हुए बर्बर व्यवहार को मौन स्वीकृति दे दी होगी. कुल मिला कर मंदिर की भौगलिक स्थिति और उसके रखरखाव (उजाड़ नहीं था), मान्झीराम के घर और मंदिर के बीच की दूरी, वहां तक जाने वाले रास्ता(जोकि मांझी राम के घर के पास से गुजरता है), घर से कुछ मीटर की दूरी पर मासूम आशिफा की मारकर डाल दी गयी लाश, आदि बातें शंकाओं को जन्म दे रही हैं कि एक सम्प्रदाय विशेष को भगाने के लिए इस तरह की बचकारी साजिश करके अपने ही फंसने का खुद कोई इंतजाम कैसे कर सकता है. मुख्यमंत्री महबूबा को चाहिए कि डरने की राजनीति का वर्तमान में कोई स्थान नहीं है. उन्हें चाहिए कि अपने खास लोगों से इस बात की सच्चाई पता करके केंद्र को इस मामले की रिपोर्ट भेज कर पूरे मामले की सीबीआइ जाँच की मांग करें. ताकि सभी धर्म के लोगों को भय मुक्त समाज देने में अहम भूमिका निभाएं. जम्मू-कश्मीर भारत का एक ऐसा राज्य है जो आज़ादी के बाद से लेकर अब तक कभी भी शांत नहीं रहा है. कश्मीर को धरती का स्वर्ग फिर से बनाने में अगर मुख्यमंत्री महबूबा सफल हो जाती हैं तो ये पीडीपी और उनके जीवन की बहुत बड़ी उपलब्धि कहलाएगी. इस बात को सामने रखकर चिंतन करे कि राज्य की क्राइम ब्रांच और पुलिस द्वारा की गयी जाँच पर कई सवाल उठ रहे हैं, उस मंदिर का जिक्र किया गया जिस मंदिर के तीन दरवाजे हैं, और इस मंदिर का चार्ज शीट में आना और भी कई सवाल खड़े कर देता है, क्योंकि मंदिर के तीन दरवाजे हैं और तीन गाँव के लोग हर रोज़ दो बार वहां पूजा आरती करने आते हैं तो फिर ऐसे तो आसिफा को उधर 4-6 दिन तक बंदी बनाकर दुष्कर्म करना कैसे संभव हो सकता है ? मुख्यमंत्री महबूबा को चाहिए दो नावों पर सवार होने वाली कहावत से बचें और गठबंधन धर्म निभाते अपनी सहयोगी पार्टी बीजेपी के साथ मिलकर मासूम आशिफा को न्याय दिलाये और असली गुनाहगार जो भी हैं को फांसी के फंदे तक ले जाने का प्रयास करें. मनो विज्ञान भी यही कहता है कि किसी को अँधेरे में रस्सी दिखाकर उसे कई बार बताओ कि सांप है तो वो व्यक्ति इस विभ्रम में आ जाता है और रस्सी को सांप समझने लगता है. कुछ इसी तरह का अब मासूम का केस बन चुका है.





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