सोशल मीडिया के अवैतनिक पत्रकार ही दिला पायेंगे मासूम आशिफा को न्याय

मनोविज्ञान (psychology) एक चेप्टर भ्रम(a,myth) और विभ्रम (Hallucination) का पढ़ा था. भ्रम पर इसमें लिखा था कि काल्पनिक बातों को लगातार बोलते रहें तो वो सच जैसी सामने वाले को लगने लगती हैं. इसी तरह विभ्रम में अगर किसी व्यक्ति को हाथ रस्सी का टुकड़ा पकड़ कर दिखाएँ और उसको बार बार ये कहते रहे कि ये सांप है तो सामने वाले का मस्तिष्क भी इन बातों को सच मानने लगता है और वो रस्सी को सांप देखने लगता है. हालांकि ये उस व्यक्ति का दृष्टि भ्रम होता है.  सभी लोग टीवी पर चैनलों के माध्यम से मनोरंजन और न्यूज़ आदि देखते हैं. देखने के दौरान ब्रेक आने पर साबुन, शेम्पू, तेल, ब्लेड, हेयर रिवूवर, त्वचा को गोरा करने वाली क्रीम मर्दाना ताक़त वाली टेबलेट आदि आदि के विज्ञापन दिखाये जाने लगते हैं. कुछ विज्ञापन इतने अच्छे से गढ़े गए होते है कि इन्हें बार-बार देखने पर हम भ्रम की स्थिति में पहुँच जाते हैं हमारा मस्तिष्क हमें इस उत्पाद को खरीदने के लिए प्रेरित करने लगता है. विज्ञापन देखने के बाद उस उत्पाद को इस्तेमाल के लिए खरीद लेते हैं. धीमे-धीमे खरीदारों की तादाद करोड़ों में पहुँच जाती है और उत्पाद बनाने वाली कंपनी अपने मकसद में कामयाब हो जाती है.  कई महीने के इस्तेमाल के बाद गोरा या घने बाल न होने पर भी व्यक्ति उसका इस्तेमाल करता रहता है. इस तरह से तीन लोगों के बीच एक चेन सी बन जाती है. इस तरह उत्पाद-टीवी-व्यक्ति तीनों एक दूसरे के ऊपर निर्भर हो जाते हैं. उत्पाद बेचने के लिए टीवी ज़रूरी है तो टीवी पर दिखाए जाने वाले चैनलों के लिए व्यक्तियों की तादाद आवश्यक हो जाती है. बस यहीं से व्यक्ति का शोषण होने लगता है. उसे पता भी नहीं चलता कि वो ठगी का शिकार हो रहा है. कभी सोचा दाढ़ी बनाने वाले ब्लेड और शेविंग क्रीम में खूबसूरत महिला मॉडल का क्या काम. यही विज्ञापन का फंडा होता है कि खूबसूरत मॉडल देखने वाले के मस्तिष्क पर असर डालती है. आज फैशन परस्त लोगों को विज्ञापन के माध्यम से बेवकूफ बनाना बहुत ही आसान हो गया है. बस यहीं से टीवी चैनलों के बीच गला काट टीआरपी की होड़ शुरू हो गयी है. खासकर न्यूज़ चैनल्स तो स्वघोषित नंबर-1 घोषित करने में जुटे हुए हैं. तो कुछ न्यूज़ चैनलों को ये बाद अच्छे से समझ में आ गयी है कि टीआरपी कैसे बढ़ाई जा सकती है. इसके लिए वो देखने वालों के मस्तिष्क को भ्रम और विभ्रम की स्थिति में ले जाता है. जो न्यूज़ चैनल इन दोनों का इस्तेमाल अच्छे से कर ले जाता है. वो अपने मक़सद में सफल हो जाता है. इसी तरह की घटनाओं के कारण आज कल राजनीतिक दल भी इन्हें पाटने में लगे हुए हैं. इन्हें हायर करके किसी भी घटना को भ्रामक रूप देना होता है तो इनका इस्तेमाल किया जाता है. हालिया घटनाओं पर नज़र डालें तो कैम्ब्रिज एनालिटिका नाम बहुत जोर शोर लिया जा रहा था. आम जनता तक सिर्फ इतना ही सच पहुंचा की इस कैम्ब्रिज एनालिटिका ने सोशल मीडिया के माध्यम से लोगों के डाटा चोरी किये हैं. इस डाटा का इस्तेमाल एक राजनीतिक पार्टी ने चुनाव जीतने के लिए किया है. इस डाटा चोर कंपनी ने सिर्फ ये प्रत्येक व्यक्ति के मनोविज्ञान को समझा और उसके मुताबिक ही घटनाओं को अंजाम दिया गया. तीन महीने से ज्यादा समय बीत जाने के बाद भी अचानक से एक खबर चलने लगी कि 8 वर्षीय मासूम अशिफा की बलात्कार के बाद बर्बरता पूर्वक हत्या कर दी गयी है, तीन महीने से ज्यादा समय बीत जाने के बाद भी इसे फैलाने में चैनलों और सोशल मीडिया ने मुख्य भूमिका निभायी. इस घटना में तड़का देने के लिए फ़िल्मी हीरोइने जोकि पैसा लेकर बदन उधाडू सीन देने में शर्म नहीं करती हैं, उन्हें शर्म करो हिन्दुस्तानियों की तख्ती पकड़ा कर सोशल मीडिया में ला खड़ा किया. इनमें टीवी के विज्ञापनों में लक्स से नहाने वाली मखमली बदन करीना कपूर भी शामिल की गयीं. जैसा की ऊपर पढ़ा कि झूठा प्रचार करते करते युवा लड़के-लड़कियों के दिमाग में भ्रम और विभ्रम की स्थिति में घुसी इन सेलिब्रिटी ने झकझोरने का असफल प्रयास किया. असफल प्रयास इसलिए लिखा क्योंकि मार्क जुकरबर्ग के क्रियेशन फेस बुक ने अनपढ़ से लेकर पढ़े-लिखे सभी को न्यूज़ चैनल वालों से भी उच्चकोटि का पत्रकार बना दिया है.सोशल मीडिया के ये पत्रकार राष्ट्रीय न्यूज़ चैनलधारी स्थापित पत्रकारों से भी ज्यादा तेज़ तर्रार बनते जा रहे हैं. अशिफा की घटना पर कई दर्जन अलग-अलग बातें को प्रोपोगंडा किया गया. मासूम अशिफा के बलात्कार और हत्या की बातों का ऐसा वर्णन किया गया मानो लिखने वाला बलात्कारियों की हरक़तों को अद्रश्य रूप में देख रहा था. कैसे चार दिन तक उसे नशे उत्तेजित करने वाले इंजेक्शन देकर सभी आरोपियों ने कई बलात्कार किया. वो भी मंदिर के अन्दर बंधक बनाकर. जबकि उस पवित्र मंदिर में पूजा करने तीन गाँवों के लोग सुबह-शाम दो समय जाते हैं, इन्हें हवा तक नहीं लगी. आज इस घटना को लिखने के लिए डेंटिंग का काम करने वाले एक युवा मुस्लिम ने प्रेरित किया. उस युवक ने मुझ पर कठुआ के मामले में सवाल दागा कि भाई इस मामले में क्या हुआ है. उसके सवाल के जवाब में उससे सवाल पूछ लिया कि क्या सामने वाली मसजिद में कोई हिन्दू लड़की को कुछ मुसलमान बंधक बनाकर चार दिन तक बलात्कार कर सकते हैं? क्या नमाज़ पढने आने वाले लोगों में कोई एक या मुतवल्ली इसका विरोध नहीं करेंगे. कम पढ़ा लिखा होने के बावजूद यह बातें सुनकर, वो बस इतना ही बोला, मैं समझ गया कि मामला क्या है. ऊपर वाले ने उस मुस्लिम युवा की किस्मत में गरीबी लिखी लेकिन दिमाग उसे ज़रूर दे दिया. अगर सभी हिन्दू-मुस्लिम उस युवक की तरह सोचने-समझने लगें तो इस तरह के फसाद ही न रहेंगे. कोई भी अपने नफे के लिए इस तरह के प्रोपोगंडा करने में सफल नहीं हो सकता है. एक वीडियो देखा था जिसमें अशिफा के माँ बाप जिनका चेहरा ढक दिया गया था. इसमें उसकी माँ ने एक बात यह भी बोली कि इन हत्यारों ने उसे उंचाई से नीचे फेंका था, जिससे उसके एक पैर की हड्डी दो जगह से बुरी तरह से टूट गयी थी. उसका कहने का मतलब था कि एक पैर आगे-पीछे दायें-बाएं घूम जा रहा था. अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि अशिफा को न्याय कैसे मिलेगा. अगर मनगढ़ंत कहानी पर ही सज़ा होती है तो साज़िश करने वाले अपने मक़सद में कामयाब हो जायेंगे बनाए गए आरोपियों और अशिफा को न्याय नहीं मिल पायेगा. इस मामले में हर एंगल से बड़ी साज़िश दिख रही है और देश के सभी लोग चाहेंगे कि आगे भी ऐसी साज़िश का शिकार कहीं उनका मासूम बच्चा न बन जाए. अगर दोषी पकडे गए लोग ही हैं तो उन्हें फांसी के अलावा कोई सजा नहीं दी जानी चाहिए.

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