प्रोपेगंडा के माध्यम से स्थापित स्वघोषित बाबाओं, फ़िल्मी कलाकारों और नेताओं आदि जैसी दीमकों को खत्म करना आवश्यक है
आसाराम बापू को आख़िरकार अपने दुष्कर्मों की सज़ा मिल ही गयी. न्यायालय ने कई वर्षों से जेल में बंद आसाराम को नाबालिग से बलात्कार के आरोप में आजीवन कारावास दिए जाने का निर्णय ले ही लिया. आसाराम के भक्तों का मानना है कि वो निर्दोष हैं, उन्हें फंसाया गया है कि बातें गले न उतरने वाली हैं. आसाराम के भक्तों का यह सोचना उनकी सेट मानसिकता के अनुरूप है. क्योंकि इन भक्तों के मस्तिष्क में आसाराम की जो तस्वीर खिंच चुकी है, उसे किसी तरह से साफ़ नहीं किया जा सकता है. ये नहीं हो कि इन भक्तों में सभी आसाराम के अनुयाई ही हैं, इनमें ज़्यादातर उसके वेतनभोगी कर्मचारी भी होंगे, जोकि प्रोपेगंडा करके लोगों को आसाराम का भक्त बनाते थे. यहाँ पर इस बात को साफ कर दूं कि मनोविज्ञान का मत है कि पब्लिसिटी और पोपेगंडा दो अलग प्रचार माध्यम हैं. अक्सर इन दोनों को आम व्यक्ति प्रचार से जोड़ लेता है. ऐसा इसलिए हो जाता है क्योंकि दोनों में किसी व्यक्ति या वस्तु का प्रचार किया जाता है. जब से समाज का बाजारीकरण हुआ है तब से पब्लिसिटी को प्रोपेगंडा ने पछाड़ दिया है. प्रोपेगंडा की आम लोगों के बीच इतनी गहरी पैठ हो गयी है कि आम व्यक्ति को भी भगवान बना देता है. जैसा कि आसाराम के मामले में हुआ है. आसाराम में कोई भी दिव्य शक्ति नहीं थी, फिर भी उसे प्रोपेगंडा ने भगवान का रूप दे डाला, यही बात गुरमीत उर्फ़ राम-रहीम, रामपाल आदि बाबाओं के लिए कही जा सकती है. जैसे ये थे नहीं उससे कई हज़ार गुना इनको दिव्य शक्ति का मालिक प्रोपेगंडा ने बना डाला. इनके झांसे में मूर्ख हो या अत्याधिक बुद्धिमान कोई भी फंस सकता है. दुनिया का कोई भी बुद्धिमान व्यक्ति यह नहीं कह सकता है कि वो कभी भी प्रोपेगंडा के झांसे में नहीं फंसा है, तो उसे अपना आंकलन खुद करना चाहिए. क्या उसने टीवी चैनल्स पर दिखाए जाने वाले विज्ञापन से सम्मोहित होकर कोई उत्पान नहीं खरीदा? सभी समाज में रहने वाले लोग आये दिन प्रोपेगंडा के कारण ठगी का शिकार होते रहते हैं, लेकिन स्वयं इस बात को जान नहीं पाते हैं. कभी सोचिये 15 रुपये का टूथ ब्रश बेचने के लिए कम्पनियाँ टीवी विज्ञापनों पर करोड़ों रुपये क्यों खर्च करती हैं. क्या इसका उत्पादन वाली कम्पनियाँ समाज सेवा के लिए करती हैं. अगर ऐसा ही है तो 15 रुपये का ब्रश बेचने के लिए विज्ञापन पर धन न खर्च करके उसे घर-घर फ्री बाँट दें. आज नेतागीरी में भी प्रोपेगंडा अपनी अहम भूमिका निभा रहा है. नेतागण अपने आप को शुद्ध देशी घी बताकर सोशल मीडिया के माध्यम से लोगों के बीच अपनी पकड़ बनाने में जुटे हुए हैं. अपने को अच्छा साबित करने के लिए उजले वस्त्रधारी नेता के कपड़ों को गंदा कर अपने कपड़ों को उजला साबित करने के प्रयास करते देखे जा सकते हैं. खुद ही समझे कि आज देश के ज़्यादातर दलों के नेता दूसरे नेता की बुराई ही करते दिखते हैं, वो कभी भी अपनी उपलब्धियां आम लोगों को नहीं बता पाते हैं. आज़ादी के बाद से अब तक राजनीति में पब्लिसिटी (सकारात्मक प्रचार) देखने को कम, प्रोपेगंडा(नकारात्मक प्रचार) देखने को ज्यादा मिल रहा है. आज तक किसी भी नेताओं को स्वयं के स्थापित मील के पत्थरों(माइल स्टोन) की बात करते नहीं देखा. कुछ शातिर दिमाग लोगों ने नेतागीरी की जगह बाबा व अन्य कुछ बनने में ज्यादा नफा देखा और देखते ही देखते वो अकूत धन के मालिक बन गए. जो आज राम-रहीम, आसाराम, रामपाल, जाकिर नाइक जैसे लोग स्वघोषित धर्म के ठेकेदार बन बैठे हैं. लेकिन सच ही कहा गया है कि पाप का घड़ा कभी न कभी फूटता ही है. इसी कड़ी में आज देश का झंडाबरदार बनने वाले फ़िल्मी लोगों के लिए बुरी खबर ये रही कि फिल्म इंडस्ट्री की एक हिरोइन ममता कुलकर्णी के बारे में लिखा था कि वो मादक पदार्थों गिरोह से जुड़ी हुई है और उन पर 2000 करोड़ के मादक पदार्थ के मामले में अदालत में न पेश होने के कारण भगोड़ा घोषित कर दिया गया है. इसके साथ उसकी 20 करोड़ की सम्पत्ति को कुर्क किया जाएगा. ऐसा नहीं है कि सभी पथभ्रष्ट हैं. कुछ अच्छे लोग भी हैं, जिनके कारण दुनिया टिकी हुई है. भ्रष्ट और बेईमान हर क्षेत्र में विद्यमान हैं. समाज में फैले ऐसे लोग, लाइलाज बीमारी नहीं है. इन्हें खत्म किया जा सकता है, देश हालातों को देखते हुए इन्हें ख़त्म किया जाना अति आवश्यक हो गया है. अगर ऐसा न हुआ तो नित ने बाबा, नेता, फिल्म कलाकार, नीरव मोदी, विजय माल्या जैसे कथित उद्योगपति, डॉक्टर, इंजीनियर, आईएएस आदि नए-नए कारनामों के माध्यम से कुकृत्यों के माध्यम से सुर्खियाँ बटोरते रहेंगे और देश को हानि पहुंचाते रहेंगे. देश आम इंसानों का क्या हाल होगा समझा जा सकता है. आज निहित स्वार्थों के लिए कुछ राजनीतिक दल किसी भी तरह से सत्ता पर काबिज होने के लिए प्रोपेगंडा का फंडा अपनाये हुए हैं. ऐसे लोगों को सबक सिखाया जाना ज़रूरी हो गया है. कुछ वर्षों से कथित उद्योगपतियों के भागने और कथित बाबाओं के जेल जाने, रुपहले पर्दे पर अपने अर्ध-नग्न शरीर को फूहड़ तरीके से दिखाने वाली हीरोइनों के बेनकाब होने के बाद से ऐसा लगने लगा है कि जल्द ही स्वच्छ समाज की एक बार फिर से स्थापना होने की और भारत कदम बढ़ा चुका है.




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