शब्दों के हेर-फेर के अंधड़ में फंसी बसपा को नहीं सूझ रहा कोई रास्ता

बीएसपी ने अपनी पारी की शुरुआत करने के लिए उत्तर प्रदेश में कुछ शब्दों की राजनीति की, राजनीतिक समझ के धुरंधरों को भी इन शब्दों की हेराफेरी समझ में नहीं आई. बाबा साहेब ने संविधान लिख तो वो भारतीय संविधान के प्रतीक बन गए. उनकी मूर्तियों को स्थापित किया गया तो उनके बाएं हाथ में संविधान की पुस्तक और दाहिने हाथ का इशारा संसद भवन रहा. इस प्रतिमा के अनुसार बाबा साहेब न्यायालय की ड्रेस में हैं. इसका मतलब है, एक हाथ में संविधान है, तो ड्रेस का तात्पर्य काला कोट सफ़ेद शर्ट और काली पैंट. नीली तो यूपी लाने में की गयी. ताकि बसपा के झंडे को नीला रंग दिया जा सके. अब शब्दों में हेराफेरी भी बसपा नेताओं ने की. याद होगा उत्तर प्रदेश में राम मंदिर का ताला 1989 प्रधानमंत्री राजीव गाँधी ने खुलवाया था. इसके चलते हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच कड़वाहट बढ़ गयी. ताला खुलने के पूर्व ही बसपा का 1984 में हो चुका था.राजनीति की बिसात बिछाते समय बसपा संस्थापक कांशीराम ने यह गणित लगायी की सबसे पहले दलित वोटों को एक जुट करना चाहिए. दबे-कुचले दलितों को ऊपर लाने के लिए संविधान में कुछ विशेष दिया, जिससे उनको दलित अपना मसीहा मानने लगे थे. निष्पक्ष रूप से संविधान का निर्माण किया था. बाबा साहेब मानवतावादी बौद्ध दर्शन से प्रेरित थे. 'बहुजन हिताय बहुजन सुखाय' तथागत बुद्ध के धर्मोपदेश का मतलब था बौद्ध धर्म बहुत बड़े जन समुदाय के सुख और हित के लिए है. 1984 में कांशीराम ने बहुजन समाज पार्टी की स्थापना की तो राजनीति से प्रेरित पार्टी को आगे बढ़ाने के लिए मुद्दों की तलाश शुरू की. अपने कर्मठ कार्यकर्ताओं को उत्तर प्रदेश मंथ देने के लिए तैयार किया. कार्यकर्ता गाँव-गाँव घूमकर बसपा का प्रचार करने में जुट गए. इधर कांशीराम राजनीति का लक्ष्य तलाशने में लगे रहे. शहरों के बनिस्बल गाँवों में बहुत ज्यादा अपर और लोवर कास्ट की फिलिंग होने के कारण, कांशीराम ने मायावती के साथ मिलकर इस फिलिंग की आग में घी डालने की तैयारी कर ली. पार्टी बनने के बाद बसपा ने पहले चुनाव से ही जातिगत नारों को गढ़ा गया जो कुछ इस तरह से थे. 'तिलक तराजू और तलवार- इनको मारो जूते चार'... 'बनिया माफ़, ठाकुर हाफ, बामन साफ़'... 'ठाकुर बामन देख के जूता मारो फेंक के' आदि जाति विद्वेष के नारों से यूपी के विधानसभा चुनाव गूँज गये. इन नारों से बसपा का ज्यादा भला नहीं हुआ तो थोडा और हमलावर रुख अख्तियार करते हुए. हरिजन शब्द जो महात्मा गाँधी ने बोला था पर मायावती ने आपत्ति जताते हुए कहा कि अगर हम हरिजन(हरि भगवान के बन्दे) हैं, बाक़ी सब क्या राक्षस हैं. और इसी के बाद हरिजन के स्थान पर दलित शब्द का इस्तेमाल किये जाने पर अड़ गयीं. इसके स्थान पर दलित का संबोधन किया जाने लगा. दबे-कुचले लोगों को लगा कि कोई तो अपनी जाति का है, जिसने सरकार पर इतना दबाव बनाया. कुछ इसी तरह से शब्दों की राजनीति करते हुए. बसपा ने बाबा साहेब को यूपी में लाने से पहले उनके नाम में पिता के जुड़े नाम को निकाल दिया. बाबा साहेब अपना नाम नाम बी.आर. अम्बेडकर लिखते होंगे बी- भीमराव आर- रामजी(पिता का नाम) अम्बेडकर. इस लिहाज से उनका पूरा नाम भीमराव रामजी अम्बेडकर था. रामजी को नाम से माइनस इसलिए किया गया क्योंकि बहुजन समाज को संख्या में ज्यादा है के रूप में स्थापित करना था. इसके अलावा दलितों को बौद्ध धर्म का फालोवर जताने के लिए बाबा साहेब के नाम से रामजी इसीलिए हटाया गया होगा. ताला खुलने के कारण भगवान रामजी  सांप्रदायिक रूप ले चुके थे. साथ ही ये सोच रही होगी कि बाबा साहेब के नाम में रामजी(पिता का नाम ) जुड़ा रहेगा तो मकसद हल नहींहो सकता था. इसी दौरान कांशीराम अस्वस्थ रहने लगे, तो उनकी जगह मायावती ने ले ली. सुप्रीमो बनने के बाद तेवरों में और अधिक पैनापन आ गया. एक-तरफ़ा वोट न मिलने के कारण बसपा खिचड़ी सरकारें ही  बना सकीं, जो पांच साल पूरी नहीं चलीं. सवर्णों से पीड़ित(नारों के लिहाज से) दलितों को एक झंडे तले लाने का पूरा लाभ नहीं मिल सका था. दलित वोटों के साथ लेने के चक्कर में बाक़ी के वोट साथ नहीं आ सके. मुस्लिम वोट तभी किसी पार्टी की तरफ एक साथ जाता है, जब बीजेपी सामने होती है. इसके बाद सवर्ण वोटों को साथ लाने के लिए बसपा सुप्रीमो ने सर्वधर्म हिताय- सर्वधर्म सुखाय का नारा गढ़ा. गौतम बुद्ध ने बौद्ध धर्म को मानने वालों को इससे संबोधित किया था, लेकिन बसपा ने अपनी पार्टी से सवर्णों को जोड़ने के लिए इसका इस्तेमाल किया. इसमें भरपूर सफलता मिली और मायावती ने पूर्ण बहुमत से यूपी में सरकार बनायीं. आज भी बसपा मुखिया अच्छे से इस बात को समझती हैं कि वो दलित वोटों से पूरे तौर पर सत्ता में नहीं आया जा सकता हैं. इसलिए अब तीखे तेवरों में धार को कम कर लिया है. बीते दिन उन्होंने बीजेपी पर दलितों के हित की रक्षा का ढोंग करने का आरोप मढ़ दिया था, लेकिन सवर्ण वोटों को ध्यान में रखते हुए यह भी कहा कि  गरीब सवर्णों और अल्पसंख्यकों को भी आर्थिक आधार पर आरक्षण मिलना चाहिए. दलित वोट के साथ ही सवर्ण वोटों की सभी राजनीतिक दलों को दरकार रहती है. क्योंकि मुस्लिम वोट यूपी की सपा को भी चला जाता है. लोकसभा की तैयारी में लगे दलों को जीत के लिए हर जाति के वोटों की दरकार है. इसी वज़ह से अपनी खोई जमीन को वापस पाने के लिए बसपा मुखिया ने अपना रुख नरम कर लिया है. 

Comments