छोटे सिन्हा ने बड़े सिन्हा को चने के झाड़ पर चढ़ा के पैदल कर दिया

अब इसको क्या कहेंगे. छोटे वाले सिन्हा ने बड़े वाले सिन्हा को चने के झाड़ पर चढ़ा दिया. मारे जोश के बड़े वाले सिन्हा बीजेपी से निकल लिये. ये बड़े वाले सिन्हा कोई और नहीं अटल की सरकार में वित्त मंत्री रहे यशवंत सिन्हा हैं. जिन्होंने बीजेपी से नाता तोड़ लिया. कितनी गलत बात है कि फिल्म स्टार से नेता और सांसद बने शत्रुघ्न सिन्हा ने आखिरकार एक बुजुर्ग को सड़क पर लाकर ही दम लिया. अब कह रहे हैं मैं बीजेपी नहीं छोड़ रहा हूँ. अब इनसे पूछा किसने कि बीजेपी छोड़ रहे हैं या नहीं. वैसे जिस महान बुद्धिजीवी पत्रकार ने ये सवाल किया होगा, उसकी तरफ इस सवाल को पूछने के लिए लाल गाँधी जी पक्का सरका दिए गए होंगे. अक्सर पत्रकार वार्ता में नेता के कुछ सेट बुद्धिजीवी बैठे होते हैं, जो वही सवाल करते हैं, जो वार्ता के लिए बैठा नेता कहता है.अगर कोई जानकर युवा पत्रकार जोश में कूद कर सवाल करने लगता है तो नेता के सभी चम्मू पत्रकार उसे यह कह कर चुप करा देते हैं कि क्या यार... चूतियापे की बात पूछ रहे हो. बस वो युवा पत्रकार चुप्पी साध लेता है. ऐसा ही एक वाकया पत्रकार वार्ता में देखने को मिला. मुख्यमंत्री महोदय प्रेस वार्ता कर रहे थे. सारे लाल नोटधारी बुद्धिजीवी वही सवाल कर रहे थे जो सीएम महोदय ने समझा रखे थे. इन्हीं के बीच एक तेजतर्रार युवा पत्रकार भी बैठा था. जो स्टडी करके के आया था. जब उसने सवाल किया तो सीएम महोदय कुछ असहज हो गए. इस बात को भांपते ही चाटुकार पत्रकार उस युवा पर पिल पड़े और बैठ जाओ... बैठ जाओ ... ये सवाल आज की वार्ता के विषय से सम्बंधित नहीं हैं. लेकिन वो युवा पत्रकार भी अड़ियल किस्म का था, वो न बैठा तो, न बैठा. मौके की नज़ाक़त को भांपते हुए मुख्यमंत्री जी निकल लिए. उसके बाद फिर क्या था. छोटे मगर खोटे पत्रकार बड़े वालों से भिड़ गए. आख़िरकार इन्होंने भी युवा शक्ति के सामने हार मान कर निकल लेना ही बेहतर समझा. कुछ ऐसा ही होता है. पत्रकार वार्ता , स्पॉट रिपोर्टिंग और साक्षात्कार में. कुछ इसी तरह का माहौल होता है. सब कुछ पहले से ही तय होता है. सभी लोग चैनलों की डिवेट देखते रहे होंगे. सारी बातें लाल गाँधी जी के मध्यम से तय हो चुकी होती हैं. अक्सर कुछ नेता डिवेट को बीच में छोड़कर इसलिए चले जाते हैं, क्योंकि उन्हें पूछे गए सवाल के जवाब याद नहीं रहते हैं तो वो निकल लेने में ही भलाई समझते हैं. इसे पढने के बाद ध्यान से देखिएगा तो सच्चाई सामने आ जायेगी. कभी भी कोई भी डिवेट बिना परिणाम के समाप्त हो जाती है ऐसा क्यों होता है. एंकर ये कहते हुए कि समय खत्म हो गया है फलां ने ये कहा, तो फलां ने ये कहा. अरे टीवी वाले पत्रकारों जब हमेशा ही टाइम कम पड़ता है तो क्यों नहीं इसका टाइम आधा घंटा और बढ़ लो, या फिर बीच-बीच में जो विज्ञापन पेलते रहते हो उन्हें न दिखाओ. खैर वैसे भी इन बुद्धिजीवियों को ज़्यादा नहीं  समझाया जा सकता है और न ये समझ ही सकते हैं. छोटे पर्दे वाले ये बुद्धिजीवी बड़े वाले होते हैं. कुछ इसी तरह का सवाल खलनायक से नायक, उसके बाद नेता और सांसद बने छोटे वाले सिन्हा साहब ने कह रखा होगा कि मुझ पर सवाल दागना और मैं जवाब दूँगा. इस तरह के सवालों से सामने वाले नेता की लम्बाई बढ़ जाती है. पार्टी को लगने लगता है कि ये कहीं न भाग जाए तो उसे रोकने की तैयारी करने लगते हैं. हमेशा यही देखा गया है कि किसी भी पार्टी से भागने वाले नेता पैदल ही घूमते रहते हैं. बीजेपी को केशुभाई ने छोड़ा तो वो पैदल ही रहे, बाघेला ने छोड़ा तो वो भी एक दशक से ज्यादा पैदल रहे, टिकट न मिलने पर जसवंत सिंह भागे तो वो एक दम गायब ही हो गये. कहीं पढ़ा था कि उनको हेमरेज हो गया थ. इसके बाद सिद्धू पाजी भागे तो कुछ दिन भूमिगत रहे इस उम्मीद से कि कोई भाजपाई च्रौरी करने आएगा. जब कोई नहीं आया तो राज्यसभा की जगह विधानसभा में बैठने को मज़बूर हो गए. भाग्य अच्चा था कि पंजाब में कैप्टेन अच्छा मिल गया तो मंत्री की जॉब मिल गयी वरना कपिल के शो में सरकस कर रहे होते. अब बड़े वाले सिन्हा साहब को किधर जायेंगे, सभी को मालूम है. कांग्रेस से भी छोटी रीजनल पार्टी में जाने का मतलब है. लम्बाई छोटी हो जाना. फ़िलहाल तो बड़े सिन्हा साहब का समय को देखते हुए कुछ भला नहीं हो सकता है, 2019 इन्हें इंतज़ार करना पड़ेगा. वैसे 2019 में भी कुछ हासिल इसलिए नहीं होगा क्योंकि देश की जनता पीएम के रूप में मोदी जी को छोड़ने वाली नहीं है. किये बड़े के मुताबिक़ अपने हिस्से के 15 लाख वसूल कर ही दम लेगी.

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