सवर्ण बहती नदी के मानिंद है, जो चट्टानों को चकनाचूर कर अपना रास्ता बना लेता है

बसपा सुप्रीमो मायावती का यह बयान कि सवर्णों को आगे कर भाजपा कर रही आरक्षण का विरोध. यह बात कुछ न हज़म होने वाली लगती है. उनके अनुसार भाजपा सोशल मीडिया के माध्यम से अगड़ी जाति के नाम पर  'भारत बंद' जैसा असंवैधानिक कार्य कर रही है. भाजपा की आरक्षण विरोधी नीति का कोई विरोध करे, न करे लेकिन बसपा विरोध करती रहेगी. बसपा सुप्रीमो का यह भी कहना है कि 10 अप्रैल को आरक्षण के विरोध बंद बीजेपी का प्रायोजित कार्यक्रम था. उन्होंने अगड़ी और अल्पसंख्यक वर्ग के ग़रीबों को आरक्षण दिए जाने की पक्षधर है. बसपा सुप्रीमो का बयान सही मायने में तुष्टिकरण की नीति से ज़्यादा नहीं है. उन्हें ये कैसे महसूस हुआ की अगड़े गरीबों को भी आरक्षण की ज़रूरत है. यह बात 10 अप्रैल को आयोजित अफवाह वाले आरक्षण विरोधी आन्दोलन से समझ में आई तो ठीक लगता है. अगर उन्हें लगा कि आज़ादी के बाद से अब तक के आरक्षण से अगड़ों और मुस्लिमों को जॉब नहीं मिल रही है और ये भूखे मर, इन्हें भी आरक्षण की ज़रुरत हैं, तो इस ह्रदय परिवर्तन कहा जाए तो ज्यादा उचित है. बसपा मुखिया ये भूल रही हैं कि आज़ादी से लेकर आज तक अगर अगड़ी जातियों ने अपने लिये आरक्षण मांगना शुरू कर दिया होता, तो इन्हें कई दशक पहले ही आरक्षण मिल चुका होता. शत-प्रतिशत अगड़ी जाति अपने बुद्धिबल से ही सब कुछ हासिल करती रही हैं, उसे कभी भी आरक्षण की ज़रूरत इसीलिए नहीं पड़ी. इसी वज़ह से अफवाहों पर ध्यान न देते हैं. अब सवर्णों की सोच बन चुकी है,अपने बुद्धिबल और मेहनत से ही बिना आरक्ष्ण के ऊँचे ओहदे पर पहुंचा जा सकता है. आज़ादी के 70 साल बाद ही सही, किसी नेता ने किस वज़ह से, गरीब अगड़ी जाति और अल्पसंख्यकों के लिए भी आरक्षण होना चाहिए सोचा तो. वैसे भी बसपा मुखिया को अगड़ी जाति के गरीबों की चिंता इसलिए नहीं करनी चाहिए क्योंकि इसी गरीब तबके के लोग लालटेन की रौशनी में, घर की फर्श पर खड़िया से सवालों का घोटा लगाकर,खाली पेट, बहुत कुछ हासिल करने के लिए प्रयासरत रहता है. अब उसके लिए कठिन परिश्रम, निरंतर लक्ष्य की प्राप्ति के लिए अध्ययन क्रिया उसके जीवन का हिस्सा बन चुकी है. उसे पता है आरक्षण के चलते उसे यही करना है. आरक्षण समर्थकों को हमेशा यह बात याद रखनी चाहिए कि भारत को ऋषि मुनियों का देश इसीलिए कहा जाता है. इन महान हस्तियों ने ही अपने कठिन तप से ही देश को अध्यात्म में नई ऊँचाइयां दी हैं. इन्हीं का वंशज मानते हुए आज अगड़ी जाति अपनी कठिन परिश्रम से देश क्या, विदेशों भी अपना लोहा मनवा रही है. इसलिए आरक्षण के लॉलीपॉप की आवश्यकता, अगड़ी जाति से ज्यादा अकर्यमण लोगों को है. ये बात इसी से साबित होती है कि 10 अप्रैल को आरक्षण विरोधी आन्दोलन की राजनीतिक दलों द्वारा फैलाई गयी अफवाह पर अगड़ी जाति के लोगों ने कान तक नहीं दिया. यह बात सभी जोड़-तोड़ की राजनीति करने वाले नेताओं को याद रखनी चाहिए कि सवर्ण पानी के मानिंद निर्मल होता है और लगातार बहता रहता है. अगर उसका रास्ता विशालकाय चट्टानें रास्ता रोकने का प्रयास करती हैं तो उन्हें चूर-चूर कर अपने साथ बहा ले जाता है.

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