पूर्ण न्याय न मिलने पर डर है कि कहीं डकैतों के युग की वापसी न हो जाए
आज़ादी के बाद से लेकर अब तक भारत की जनसँख्या 39 करोड़ से बढ़कर १अरब 35 करोड़ हो गयी है. लेकिन किसी भी आती-जाती सरकारों ने इस बढ़ती जनसँख्या को कभी गंभीरता से नहीं लिया. इसी के चलते हमारी सोच भी सतही हो गयी है. संगीन अपराधों पर किसी भी तरह का कोई कड़ा क़ानून नहीं है. जिसके कारण अपराधों का ग्राफ दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा है. आज ये हालात हो गए हैं कि जघन्य अपराध करने वाले का भी मुंह ढ़कने का क़ानून बन गया है. उसके मुंह ढकने को उसका अधिकार कहा जाता है. इस दिल्ली के निर्भया सामूहिक बलात्कार और हत्याकांड ने देश को बहुत अधिक झकझोर दिया था. देश एक साथ उठ खडा. फास्ट ट्रैक कोर्ट ने इसमें शामिल 6 लोगों पर अपराध साबित हो जाने के बाद एक अपराधी को नाबालिग करार देते हुए, बाल सुधारगृह भेज दिया गया. बाकी चार को फांसी की सज़ा सुनाई थी. एक ने जेल में फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली थी. अगर नजीर पेश करते हुए फास्ट ट्रैक कोर्ट में फैसला सुनाया गया था तो उसी के अनुसार कुछ ही दिनों या कुछ महीनों में फांसी दे दी जानी चाहिए थी. लेकिन आज भी वो सब जेल में है और फांसी के समय को लंबा खींचने के लिए मर्सी अपील कर रहे है. अक्सर देखा जाता है कि दुर्दांत अपराधी को भी मुंह ढक कर ऐसे कोर्ट या जेल ले जाया जाता है मनो वो पीड़ित है. किसी पीड़ित महिला के लिए ऐसा नियम हो तो उचित लगता है, क्योंकि उसका चेहरा पहचाने जाने पर उसकी बदनामी होगी, लेकिन जघन्य अपराध करने वाले लोगों को मुंह ढकने की इजाज़त क्यों दी जाती है. क्या उन्हें भी समाज में बेईज्ज़त होना पड़ेगा, अगर उस व्यक्ति को लगता है कि मेरी बदनामी होगी तो उसे अपराध करने से पहले सोचना चाहिए था. अब इसे इस तरह समझें. देश में आपातकाल लगा, सभी के अधिकार छीन लिए गए. ऐसा क्यों हुआ ? संविधान में लिखा है तो इसलिए. अगर कुछ लोग देश में खुराफात कर रहे हैं तो बाकी भोले-भाले नागरिकों को अधिकारों से क्यों वंचित किया जाता है. अब विदेशों के क़ानून को देखे तो वो भी बाल अपराधी पर लचीला है. आस्ट्रेलिया में रह रहे मित्र ने एक घटना बतायी थी. उसे सुनने के बाद अपने देश की क़ानून व्यवस्था पर बहुत तरस आया. मित्र के अनुसार वो आस्ट्रेलिया में न्यूज़ चैनल देख रहे, एकदम स्क्रीन पर ज़रूरी सूचना लिख कर आया और दो युवकों के चेहरे दिखाए गए और ये लिखा था कि इनसे सावधान रहें. ये दोनों अपराधी प्रवृति के है. इसके बाद इनका अपराध बताया जाने लगा. एक 4 साल का बच्चा अपनी माँ के साथ स्थानीय मॉल में गया था. माँ काउंटर पर पेमेंट देने के बाद वो पलटी तो उसका बच्चा, उसके पास नहीं खड़ा था. वो ये सोचकर कि मॉल में ही होगा तो खोजने लगी, जब वो नहीं मिला तो उसने सिक्योरिटी से बताया, सीसीटीवी में देखने के बाद सिक्युरिटी ने बताया कि बच्चा मॉल के गेट की तरफ बाहर जाते देखा गया. महिला ने तुरंत लोकल पुलिस को इन्फार्म किया, पुलिस ने भी सर्च किया, न मिलने पर बयान लेकर अपहरण की एफआईआर लिख ली. कुछ दिन बाद पुलिस को बच्चे की आबादी दूर एक स्थान पर डेडबॉडी मिली. घटना स्थल की जाँच से पता चला कि उस बच्चे को बहुत बुरी तरह से मारा गया था. उसकी आँखों, नाक, कान, में इलेक्ट्रानिक खिलौने के तार घुसेड़े गए हुए थे. गुदा द्वार में दो सेल डाले गए थे. उन्हें निकला गया. सभी बरामद वस्तुओं को सीलकर बॉडी को पोस्ट मार्टम के लिए भेज दिया गया. पीएम रिपोर्ट में बच्चे के पेट के अन्दुरुनी हिस्सों में चोट और हाथ और पैर की हड्डियाँ टूटी बतायी गयी थी. इसके बाद पुलिस और सक्रीय हुई और मॉल के सभी सीसीटीवी कैमरों की उस दिन की फुटेज खंगालने लगी तो उसमें एक जगह मॉल के बाहर के शीशे की तरफ से दो बच्चे, मृतक बच्चे को बाहर आने का इशारा करते हुए दिखाई दिए. पुलिस ने इन दोनों बच्चों के स्टील फोटोग्राफ निकलवा कर खोज शरू की तो 7 और 6 साल के दो बच्चे पुलिस की पकड़ में आ गए. पूछताछ उन बच्चों ने बताया कि हमने ही उस बच्चे की हत्या की है. गहनता से पूछताछ में उन दोनों ने बताया कि हम उसे मारने के बाद, ये देखना चाहते थे कि सेल और तार जोड़ने से क्या ये इलेक्ट्रानिक खिलौने की तरह वर्क करेगा. इसीलिए उसके नाक, कान, आँखों और गुदा द्वार में तार और सेल डाले थे. टीवी न्यूज़ में दिखाए गये युवक, यही दोनों बच्चे थे. बालपण में किये गए अपराध पर बच्चे को सुधार गृह बालिग़ होने तक रखा जाता है इसके बाद उसे वहां से सामाजिक जीवन जीने के लिए छोड़ दिया जाता है. बालिग़ होने के बाद किसी भी बाल अपराधी को बंधक नहीं रखा जा सकता है. इसलिए बाल सुधार गृह से जाते समय इन दोनों की तस्वीरे ले ली गयी थीं. उम्र के साथ चेहरे और शारीरिक बदलावों को कम्प्यूटर के द्वारा चेंज किया जाता रहा. अपराध और अपराधियों के प्रति विदेशों में कितनी सक्रियता है इस घटना से समझा जा सकता है. अन्य देशों में में क़ानून का मानना है कि अपराधी प्रवृति का व्यक्ति कभी भी, किसी भी अपराध को अंजाम दे सकता है. इसलिए आस्ट्रेलिया पुलिस प्रशासन लोगों की सुरक्षा के मद्देनज़र इन दोनों हत्यारे बच्चों की, जो अब युवा हो चले हैं कि तस्वीरों को दिखा कर लोगों को सावधान करता रहता है. रहता है. निर्भया केस में अफरोज नामक नाबालिग को वोट बैंक की राजनीति के तहत बाल सुधार गृह से निकलते समय, एक राजनीतिक दल ने सिलाई मशीन और एक लाख रुपये किसलिए दिए थे मालूम नहीं जबकि इसी नाबालिग ने लोहे की रॉड को निर्भया के यौनी मार्ग इनसर्ट किया था. भारत में इस वीभत्स को अंजाम देने वाले नाबालिग की अन्य देशों की तरह टीवी पर फोटो दिखाना तो दूर अब इस घटना को इखते समय, उसका का नाम तक नहीं लिखा जाता है. देश में अपराधों पर कैसे लगाम लगे. जब इतना सम्मान एक अपराधी को दिया जायेगा. किसी सरकार को इन बढ़ते अपराधों की रोकथाम के लिए एक ईमानदार पहल करनी पड़ेगी. वरना कथित लोगों के कैंडल मार्च और राजनीतिक दांव-पेंचों में फंस कर अपराध पीड़ितों को आधा-अधूरा न्याय ही मिल पायेगा. बढ़ते अपराधों को देखते हुए जघन्य अपराधों पर सख्त से सख्त कानून बनाना आवश्यक हो गया है. वरना वो दिन दूर नहीं है जब कोई पीड़ित न्याय के लिए चम्बल के डाकुओं का चोला ओढ़ने परहेज नहीं करेगा.




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