इंसान तन से नहीं मन से अमीर होता है : ऐसे धनवान सड़क के किनारे बैठे मिलेंगे
इच्छा पूरी होने के अनुसार शनिवार के दिन छोटे भाई जैसे मित्र के साथ सडक के किनारे डेरा डाले रहने वाले ग़रीबों को पूड़ी-सब्जी के पैकेट बांटने के लिए कार से निकले थे. कई जगह कार रोक-रोक पूड़ी के पैकेट के वितरण के दौरान सुखद अनुभूति इस बात की हुई कि हमसे पहले भी कुछ लोग उन्हें पूड़ी करे पैकेटों का वितरण करके गए थे. अक्सर आते-जाते सड़क के किनारे बैठे इन गरीब और लाचार लोगों को देखकर सोचता था कि ये लोग ऊपर वाले के भरोसे रोटी के लिए बैठे हैं क्या इन्हें रोटी सच में मिलती होगी ? कुछ इसी तरह के सवाल इन बेसहारा लोगों के लिए मन में उठते थे. अक्सर टीवी पर सच्ची घटनाओं पर आधारित प्रोग्राम में देखा है कि किस तरह से बेटे अपने माँ-बाप घर पर इसलिए नहीं रखना चाहते हैं कि उन्हें खिलाना पड़ेगा. इसी कारण इन्हें पूड़ी के पैकेट बाँटते हुए एक पूर्वाग्रह के तहत आगे बढ़ रहे थे. जितने पैकेट बांटे उतना ही सुखद अनुभव होता रहा. राजधानी के शनि मंदिर के पास जब एक गरीब की तरफ पैकेट बढ़ाया तो उसके मुंह से निकले शब्दों ने हैरान होने के साथ ख़ुशी की अनुभूति भी हुई.उसने पैकेट थामने की जगह बोला साहब पेट भर चुका है, आपके जैसे ही कई एक आकर पूड़ियाँ दे जा चुके हैं. ये किसी दूसरे भूखे को दे देना. उसके इनकार ने एक सबक दे दिया, जो ख़ुद सड़क के किनारे भगवान भरोसे बैठा है जिसे कल की चिंता करते हुए पूड़ी रख लेनी चाहिए थी, लेकिन इस खाली जेब को कल की चिंता सभी सामर्थ्यवान लोगों के बनिस्बत न के बराबर है. इन ग़रीबों के करीब जाने पर इस बात का अनुभव ज़रूर मिला कि इन्हें अपने साथ के लोगों की भी फ़िक्र होती है. पेट भरने के लिए बढे हाथ को उस बन्दे ने कल पेट भरने का जुगाड़ करने की जगह बहुत ही दरियादिली से अपने जैसे दूसरे मिल जाएगा के लिए इनकार कर दिया. एक विकलांग के लिए पैकेट मांगने के लिए लपकता हुआ आया और पैकेट लेकर उसे दे दिया. ये सब देखते हुए ऐसा ऐसा महसूस होने लगा कि सच में ये धन से चाहे गरीब हो लेकिन मन से ये बहुत आमीर लगे. बहुत अच्छे से याद है वर्ष 8 नवम्बर 2016 की रात जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने रात को ये ऐलान किया था कि अभी से 5 सौ और 1 हजार के नोट चलन से बाहर किये जा रहे हैं. भ्रष्ट तरीके से कमाई गयी अकूत धन संपदा वालों को काठ मार गया था. जिनके पास ठसाठस कालाधन घर की तिजोरियों में भरा हुआ था. उनके लिए बर्दाद बर्बाद करने वाली घोषणा थी. इसके दूसरे दिन से ही 60 वर्षों तक शासन करने वाली कांग्रेस नोटबंदी के बाद सड़क पर आ गए गरीब काले चोरों के लिए खुद भी सड़क पर उतर आई. आड़ ली इन सड़क पर बैठे ग़रीबों की. गरीब भूखा मर रहा है. रोजगार छिन गए हैं, उद्योग धंधे चौपट हो रहे हैं आदि बहुत कुछ चिल्लाई इन ग़रीबों की आड़ में. आज जब पूड़ी बांटने के दौरान की घटना और नोटबंदी के समय लाइन में लगने के चार हज़ार रूपये निकालने के लिए खड़े लोगों से इन ग़रीबों का मिलान किया तो आज इनकी पेट भरे होने की बात सुनकर लगा कि सच में ये सडक पर बैठे हुए लोग भारी भरकम मकानों में रहने वालों के मुकाबले दिल से करोड़पति हैं. जुगाड़ कर कर के अपने काले नोटों को सफ़ेद करने के लिए ग़रीबों का इस्तेमाल करने वालों के दिल में अपने लोगों की याद कैसे नहीं रही कि अगर दूसरे लोगों को 5 सौ रुपये देकर रोज लाइन में लगवा कर रुपया निकाल लेंगे तो दूसरों को क्या मिलेगा ये इन्होंने कभी नहीं सोचा होगा. आज जब उस गरीब बेसहारा के पूड़ी का पैकेट लेने से इंकार कर किसी दूसरे का पेट भर जाएगा की सोच, इन काले धनवानों की सोच से कई गुना ऊँची लगी. सच में 'मेरा देश बदल रहा है'. अब यह बात बहुत अच्छे से समझ में आ गयी कि महंगे मकानों, कपड़ों और गाड़ियों में चलने वाले तन से अमीर होते हैं. मन से अमीरों से तो बीते शनिवार को मिला हूँ.




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