भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस(ओ) या कांग्रेस(आई) में से किसकी वाहक है वर्तमान की कांग्रेस ?

कांग्रेसी हमेशा कहते हैं कि वर्तमानम में जो कांग्रेस पार्टी है, वही पुरानी कांग्रेस है. यह बात मौजूदा कांग्रेस नेता कहते हैं कि वर्तमान जो कांग्रेस है वही पुरानी कांग्रेस है. शायद इन लोगों ने 11 बार से अधिक टूटने वाली  कांग्रेस का इतिहास नहीं पढ़ा है या फिर पढ़ना नहीं चाहते हैं. अंग्रेजों से आज़ादी के लिए लड़ रहे सेनानियों को एक झंडे तले लाने के प्रयास स्वरुप ए.ओ. हयूम कांग्रेस का गठन किया जिसकी पहचान तिरंगा बना. स्वतंत्रता पाने के उद्देश्य से बनायीं गई कांग्रेस आज़ादी मिलने के बाद इसे जीवित रखा गया. स्वतंत्रता मिलने के बाद महात्मा गाँधी ने भी कांग्रेस संगठन को समाप्त करने की बात कही थी. उस समय के नेताओं ने इस सुझाव को मानने से इंकार कर दिया था. ये है कांग्रेस का इतिहास. कांग्रेस में अब तक 11 बार टूटन हुई है. सबसे बड़ी टूट 1969 में हुई थी. इस विभाजन का बीज तो दो साल पहले ही पड़ चूका था.जब प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की जनवरी 1966 में मृत्यु हो गई. मोरारजी देसाई ने सर्वसम्मति की बात न मानकर. वोटिंग पर अड़ गए. कामराज ने इंदिरा गांधी के लिए लामबंदी की, और वह कांग्रेस संसदीय दल में 355 सांसदों का समर्थन पाकर पीएम बन गईं. ये कामराज का आखिरी सफल दांव था. 1967 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस कई राज्यों में बुरी तरह हारी. लोकसभा में भी उसे महज 285 सीटें मिलीं. खुद कामराज तमिलनाडु में अपनी गृह विधानसभा विरुधुनगर से चुनाव हार गए. इसके कुछ ही महीने बाद इंदिरा गाँधी ने ये कहा कि हारे हुए नेताओं को पद छोड़ना चाहिए. कांग्रेस अध्यक्ष के पद से कामराज की रुखसती हो गई. उनकी जगह आये कर्नाटक के मुख्यमंत्री रहे निजलिंगप्पा. मगर अंदरखाने में संगठन के फैसले अभी भी कामराज ही ले रहे थे. उन्होंने तय किया कि इंदिरा को काउंटर करने के लिए उनकी कैबिनेट में मोरार जी देसाई को जरूर होना चाहिए. इंदिरा को मन मारकर उस वक्त ये फैसला मानना पड़ा. इसलिए मार्च 1967 में जब उन्होंने पीएम पद की शपथ ली तो डिप्टी पीएम के रूप में मोरारजी भी बगलगीर थे. उन्हें वित्त मंत्री का पोर्टफोलियो मिला था. इंदिरा को आर्थिक मसलों की ज्यादा समझ नहीं थी. और इस बात पर मोरार जी उन्हें लगातार नीचा दिखाते थे. इंदिरा अपनी बारी का इंतजार कर रही थीं. उधर कामराज इंदिरा का विकल्प सोचने लगे थे. राष्ट्रपति डॉ. जाकिर हुसैन की मृत्यु हो गयी. इस के बाद के घटना क्रम ने पूरी तरह से दो फाड़ होने में आग में घी का काम किया.संगठन ने आंध्र प्रदेश के नेता नीलम संजीव रेड्डी को प्रत्याशी घोषित किया. इंदिरा ने उपराष्ट्रपति वीवी गिरी को पर्चा दाखिल करने को बोला. और फिर चुनाव के एक दिन पहले कांग्रेसजनों से अंतरआत्मा की आवाज पर वोट डालने की अपील कर डाली. कांग्रेस कैंडिडेट रेड्डी चुनाव हार गए. वीवी गिरी राष्ट्रपति बन गए. संगठन के बुजुर्ग नेताओं को काटो तो खून नहीं. उन्होंने नवंबर 1969 में एक मीटिंग बुलाई. और इंदिरा गांधी को पार्टी से निकाल दिया और कांग्रेस संसदीय दल को नया नेता चुन लेने का हुक्म दिया.मगर इंदिरा इसके लिए तैयार थीं. संसदीय दल की मीटिंग में उन्हें 285 में 229 सांसदों का समर्थन मिला. बचे वोट उन्होंने तमिलनाडु में कामराज की धुर विरोधी डीएमके पार्टी से जुटा लिए. लेफ्ट पार्टियां भी उनके साथ आ गईं.जिस कांग्रेस को नेहरू के बाद के दौर में कामराज और मजबूत करना चाहते थे, वह उनके सामने कमजोर हो गई. दो कांग्रेस बन गईं. असल कांग्रेस हो गई कांग्रेस-ओ (ऑर्गनाइजेशन)और दूसरी कांग्रेस-आर (रूलिंग) जो इंदिरा संभाल रही  थीं. चुनाव आयोग ने दो फाड़ हो जाने के बाद भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस(ओ.) चुनाव निशान तिरंगे में चरखा तो वही इंदिरा गाँधी की कांग्रेस(आर) गाय-बछड़ा एलाट किया गया था. पंजा चुनाव चिन्ह के पीछे एक ऐतिहासिक घटना है, आपातकाल के बाद इंदिरा कांग्रेस को बुरी हार का सामना करना पड़ा. इस हार से परेशान इंदिरा गाँधी ने मंदिर की शरण ली. कहते हैं काँचीकोटि के शंकराचार्य के आशीर्वाद स्वरुप उठे हाथ को पंजा चुनाव निशान बनाया था. पंजा चुनाव निशान के पीछे क्या यही घटना है या आपातकाल लगाये जाने की ऐतिहासिक घटना रही है. जिसने राजनीतिक दलों के साथ-साथ आम आदमी को भी दहला दिया था. पुराने चुनाव चिन्ह को आशीर्वाद मिलने से जोड़ने की बात कुछ गले नहीं उतरती है. आपातकाल के बाद हुए चुनाव में विरोधी दलों की जीत और कांग्रेस की हार के लिए चुनाव चिन्ह गाय-बछड़ा इतना जिम्मेदार नहीं था जितना की आपातकाल रहा था. कहीं ऐसा तो नहीं कि आपातकाल के कलंक को पंजे के पीछे छिपाने के लिए नया चुनाव चिन्ह पंजा बनाया गया हो. कुल मिलाकर देखा जाए तो वर्तमान की कांग्रेस आज़ादी वाली कांग्रेस नहीं लगती है. दो फाड़ होने बाद भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (ओ) को के कामराज ने संभाला था उसके बाद मोराजी देसाई ने इसका नेतृत्व किया था, जिन्होंने आपातकाल के बाद एक जुट हुए दलों के साथ मिलकर जनता पार्टी का गठन कर केंद्र की सत्ता के प्रधानमंत्री बने थे. अब आप ही स्वयं तय करें कि वर्तमान की कांग्रेस पुरानी कांग्रेस ही है. या फिर 1969 में बनायीं गयी स्वर्गीय इंदिरा गांधी की कांग्रेस है. 

Comments