ईमानदारी का तमगा लेकर घूमने वाले केजरीवाल के मुंह पर लगी राशन घोटाले की कालिख
समज सेवी अन्ना हजारे महाराष्ट्र से निकल के दिल्ली पहुँचने तक एक दुबले-पतले व्यक्ति के साथ मनोरंजन और न्यूज़ चैनलों में घूम-घूम कर आम जनता को ये समझाते रहे कि ये बन्दा मेरे साथ आम आदमी के लिए भ्रष्टाचारियों से लड़ने और उनका दमन करने के लिए देश की सर्वोच्च प्रशासनिक सेवा को त्याग कर आया है. देश की जनता ने इन बुजुर्ग अन्ना हजारे की बात पर भरोसा कर लिया. इसके बाद दोनों ने परदे के पीछे बैठकर कुछ अन्य ईमानदारों के साथ योजना बनायी कि भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने के लिए जन लोकपाल जाए. देश में बढ़ते भ्रष्टाचार से दुखी जनता को भी लगा सच में ये एक पैन्ट-शर्टधारी सच में ईमानदारी की लड़ाई लड़ने के लिए ही खड़ा है. अन्ना हजारे और साथ घूमने वाला व्यक्ति अरविन्द केजरीवाल ने अपने परदे के पीछे से सपोर्ट करने वालों के साथ दिल्ली के रामलीला मैदान पर डेरा डाल आन्दोलन शुरू कर दिया. इस आन्दोलन से जुड़ने के लिए लोगों को मिस कॉल के जरिये जुड़ने की अपील की गयी. उस समय की यूपीए सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए जन-लोकपाल बनाए जाने के लिए दबाव बनाने लगे अन्ना हजारे के टीम मेंबर भी अपनी-अपनी भूमिका के अनुसार काम में जुट गए. जन-लोकपाल आन्दोलन ने देश की जनता को अन्दर तक झकझोर इसलिए दिया कि एक लगभग 70 साल का बुजुर्ग भ्रष्टाचारियों के खिलाफ आम लोगों के लिए भूख हड़ताल पर बैठा है तो उसे समर्थन देना चाहिए. इस दौरान काफी नौटंकी की जाती रही. अन्ना हजारे के साथ चिपका रहने वाले अरविन्द केजरीवाल रातों-रात नेशनल हीरो बन गए. इस आन्दोलन के साथ स्वघोषित ईमानदार का तमगा भी सीने पर लटका लिया. सब कुछ योजना बद्ध तरीके से हुआ. लेकिन जन-लोकपाल को न बनाने पर अड़ी केंद्र की यूपीए सरकार ने कोई भाव नहीं दिया. आन्दोलन के साथ ये भी घोषणा होती रही कि कोई भी राजनीतिक दल का समर्थन इस आन्दोलन में नहीं लिया जाएगा. इसलिए कोई भी राजनीतिक दल मंच साझा करने न आये. इस बात से जनता में मज़बूत पैठ बनाने में अन्ना-अरविन्द एंड कंपनी ज़बरदस्त सफलता पायी. दिल्ली की जनता छुट्टी के दिन घूमने फिरने की जगह आन्दोलन स्थल पर पहुँचने लगे. तेरह दिन गुजरते-गुजरते जब ये समझ में आ गया कि अब काफी जन समर्थन जुट गया है तो तेरहवें दिन इस आन्दोलन की तेरहवीं करके ख़त्म कर दिया गया. फिर शुरू हुआ नाटक की जन-लोकपाल हम खुद बनायेंगे और इसके लिए चाहे हमें राजनीति में ही क्यों न उतरना पड़े. बस यहीं से एक नये राजनीतिक दल का उदय हुआ, आम आदमी पार्टी के रूप में लोगों के सामने आयी. पार्टी के गठन के बात कुछ प्रतिशत लोगों को यह बात अटपटी लगी कि जो बातें आन्दोलन के दौरान जो बातें मंच से कही गयीं थीं कि हम किसी भी दल का जन लोकपाल बनवाने में समर्थन नहीं लेंगे उसके बाद भी राजनीतिक दल का गठन कर लिया गया. इसी सोच के साथ दिल्ली की जनता ने आम आदमी पार्टी के मुकाबले बीजेपी पर ज्यादा भरोसा करते हुए. दिल्ली विधानसभा चुनाव में उहा-पोह की स्थिति में जनता ने कांग्रेस बीजेपी और नव गठित आम आदमी पार्टी किसी को भी बहुमत नहीं दिया. इस बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरी बीजेपी ने दो टूक कह दिया कि वो सरकार न बनाकर विपक्ष में बैठेंगे. इसके बाद आम आदमी पार्टी ने जिस कांग्रेस के भ्रष्टाचार के खिलाफ दिल्ली विधानसभा चुनाव लड़ा उसी से समर्थन लेकर सरकार बना ली. तब तक लोकसभा चुनाव का बिगुल बज गया. बीजेपी की तरफ से नरेंद्र मोदी चुनाव प्रचार की कमान संभाली और मुख्य राष्ट्रीय पार्टी कांग्रेस की कमान परंपरा के अनुसार गाँधी परिवार के सोनिया गाँधी और राहुल गाँधी चुनाव में जोर आज़माइश के लिए उतरे. नव गठित आप ने नरेंद्र मोदी को हल्के में लिया. आम आदमी पार्टी कि ईमानदारी का झंडा गाड़ चुके अरविन्द केजरीवाल चेहरा बनाकर इनके रणनीतिकारों ने उतारा, देश की जनता को अपने विकास की बात समझाने में नरेंद्र मोदी सफल रहे, वहीं अरविंद केजरीवाल को भारी समझते हुए आप की दिल्ली सरकार ने इस्तीफा दे दिया. ये आप की सबसे बड़ी दूसरी भूल थी. पहलीं भूल दिल्ली नें सरकार बनाने में कांग्रेस से समर्थन ले कर की थी.भ्रम में रहकर देश की जनता समाझी कि अरविन्द केजरीवाल ईमानदार (स्वघोषित) तो है ल्रेकिन नेतृत्व क्षमता नहीं है. में कमजोर हैं. लोकसभा में मात्र 4 सीटें पाने वाली आम आदमी पार्टी को एक बार फिर से दिल्ली की सत्ता दिखाई देने लगी. दिल्ली के लोगों से पिछली गलतियों की माफ़ी मांगते हुए पूर्ण बहुमत देने की अपील कर दी. इस झांसे में आकर दिल्ली की जनता ने स्वीकार कर प्रचंड बहुमत दे डाला. आज इसी का खामियाजा दिल्ली की जनता को राशन घोटाले के रूप में भुगतना पड़ रहा है. बिहार के चारा घोटाले से भी बड़ा घोटाला दिल्ली की आम आदमी सरकार ने राशन घोटाला कर डाला. तीव्र इच्छाओं के कारण जिस तेज़ी से राजनीति आम आदमी पार्टी उभरी थी, उसी रफ़्तार से उसका पतन भी हो गया. आप में ज़्यादातर नेता शुतुरमुर्ग जैसे लगते हैं, जो हमले के डर से रेत में सर छिपा कर ये सोचता है कि उसे कोई नहीं देख पा रहा है. कुछ ऐसा ही आप को भी लगता है कि घोटाले उजागर होने के बाद भी स्वघोषित ईमानदार का तमगा होने के कारण किसी को कुछ पता नहीं चलेगा. शायद केजरीवाल पर मुख्यमंत्री पद ज्यादा भारी पड़ गया जिसने ये समझने सोचने की शक्ति छीन ली कि बुरे लोगों का साथ कर रहे हो तो जनता को समझ में आ जाएगा कि तुम्हारा चरित्र कैसा है. कांग्रेस का इस घोटाले पर आप के प्रति डिस्काउंट का मूड रहेगा. जैसा कि कपिल सिब्बल ने माफ़ी देकर जता दिया है कि मोदी विरोधी सब अपने हैं.लेकिन अरविंद केजरीवाल को केंद्र की मोदी सरकार से इस राशन घोटाले में डिस्काउंट की उम्मीद नहीं करनी चाहिए. खास कर पीएम मोदी से तो बिलकुल भी नहीं जो अपनों को डिस्काउंट नहीं देते है वो इन्हें क्या देंगे.



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