मासूमों और महिलाओं के साथ हो रहे बर्बर अपराध : देश के झंडाबरदारों को चाहिए कि फ़िल्मी नौटंकी से परहेज़ करें

कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गाँधी ने रात को कैंडल मार्च निकाला, मार्च के माध्यम जम्मू के कठुआ में मासूम आशिफा और यूपी के उन्नाव में युवती के साथ हुए गैंग रेप काण्ड का विरोध दर्ज़ कराना था. मार्च में बहन प्रियंका वाड्रा भी शामिल हुईं थी. चैनल की महिला पत्रकार का कहना है कि उनके साथ शारीरिक छेड़खानी की गयी. महिला पत्रकार की इस बात प्रियंका वाड्रा भी समर्थन  करेंगी. ज़ाहिर सी बात है कांग्रेस का कैंडल मार्च था तो उनकी पार्टी कार्यकर्ता ही आस-पास रहे होंगे. दोनों कांग्रेसी भाई बहनों को ये बात अच्छे से समझ में आ गयी होगी कि लुच्चे और शोहदे उनकी पार्टी में भी पाए जाते हैं. कुछ इसी तरह की हरक़त केन्द्रीय मंत्री स्मृति ईरानी के साथ भी हुई थी, शायद इस घटना के समय स्मृति ईरानी दिल्ली के चांदनी चौक से चुनाव लड़ रही थीं. उसी दौरान किसी कांग्रेसी शोहदे ने उन पर अभद्र टिप्पणी की थी. किसी नॅशनल नेशनल को ये बात उन्होंने बतायी थी. किसी कांग्रेसी कार्यकर्ता द्वारा अभद्र टिप्पणी करने के मामले को अगर कांग्रेस संज्ञान लेकर नारी सम्मान की बात पर उस शोहदे कार्यकर्ता पर कार्यवाही कर देती तो एक नजीर पेश कर सकती थी. लेकिन इसे छोटी बात समझ कर टाल दिया होगा. अगर उस समय ही कांग्रेस ने नारी सम्मान पर एक्शन ले लिया होता तो कैंडल मार्च में प्रियंका और अज-तक की पत्रकार से छेड़खानी न होती. देखा जाए तो आज़ादी के बाद से ही महिलाओं के साथ अत्याचार बढ़ गए थे. बंटवारे के समय आखों महिलाओं के साथ बलात्कार किये गए थे. सही मायने में शुरूआत गलत हो जाने से आज हम नारी को सम्मान देने की परम्पराओं को भूल चुके हैं. फिल्म मेकर मनोज कुमार ने अपनी एक मूवी के गाने में नर को राम तो नारी को माता सीता बोला है. आज समय की रफ़्तार ने सारे नैतिकता के मूल्यों को हवा में उड़ा दिया है. आज सिर्फ नैतिकता की बात ही की जाती है वो भी सत्ता में आने के लिए. देश के नागरिक होने के कारण ये कर्तव्य है कि नेताओं को नैतिकता का पाठ पढाये न कि इनके नैतिकता दिखाने वाले कैंडल मार्च में शरीक हों. क्या कांग्रेस के के राहुल गाँधी के पास इस बात का जवाब है कि उस दिन इनकी नैतिकता कहाँ चली गयी थी, जब चलती बस में दिल्ली की मेडिकल की छात्रा के साथ जिस बर्बरता पूर्वक बलात्कार किया गया था. इसी जगह पर अगर ऐसे अपराधों को रोकने पर काम किया जाता तो आज ऐसी घटनाएँ न होती. दोषियों की अपील पर माननीय शीर्ष अदालत ने जो दस बातें रखते हुए फांसी की सजा को बरकरार रख उससे सबक लेकर देश के सभी आम और खास को बलात्कार पर साख से सख्त क़ानून बनवाने लिए सड़क पर उतरा रहना चाहिए था. जब तक इस पर सख्त कानून न बन जाता. दोषियों की फांसी दिए जाने की अपील को खारिज करते हुए दस बन्दुओं को इंगित किया था जो इस प्रकार से हैं.
1. जजों ने 2 बजकर 3 म‌िनट पर फैसला पढ़ना शुरु क‌िया। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि चारों आरोपियों ने निर्भया के साथ जिस तरह का बर्बरता पूर्ण व्यवहार किया उससे ये साबित होता है कि अपने तरह का अनोखी घटना है। 2. यह मामला रेयरेस्ट आफ रेयर है। केस की मांग थी कि न्यायपालिका समाज के सामने एक मिसाल पेश करे। 3. निर्भया कांड में कोर्ट का फैसला आते ही अदालत कक्ष में तालियां बजीं। 4. अदालत ने कहा इस मामले में कोई रियायत नहीं दी जा सकती।
5. निर्भया कांड सदमे की सुनामी थी। जिस तरह से अपराध हुआ है वह एक अलग दुनिया की कहानी लगती है। 6.दोषियों ने हिंसा, सेक्स की भूख की वजह से अपराध किया। 7. वारदात को क्रूर और राक्षसी तरीके से अंजाम दिया गया। 8. उम्र, बच्चे, बूढ़े मां-बाप ये कारक राहत की कसौटी नहीं। 9. इस अपराध ने समाज की सामूहिक चेतना को हिला दिया। 10. पीडि़ता का मृत्यु पूर्व बयान संदेह से परे... अगर देश का का चौथा स्तम्भ और कथित झंडाबरदार नेता इन दस टिप्पणियों को देश के आम लोगों तक ईमानदारी से पहुंचाते तो निर्भया कांड हमारे सभ्य समाज का अंतिम अपराध होता. निर्भया काण्ड पर जब निर्णय आ चुका था. तो फांसी देने में हिलाहवाली क्यों. जिस तरह त्वरित कोर्ट ने फैसला दिया था, उसी तरह से इन चारों नर-पिशाचों की फांसी पर अमल कर दिया गया होता तो आज हज़ारों मासूम बच्चियां और महिलाओं को ऐसे अपराधों से बचाया जा सकता था. राहुल गाँधी किस नैतिकता की बात करते हुए रात को कैंडल मार्च  निकल रहे थे, जबकि निर्भया के साथ बर्बरता पूर्वक बलात्कार उन्हीं के शासनकाल   दूर नहीं ठीक नाक के नीचे देश की राजधानी दिल्ली में हुआ था. सभी राजनीतिक दलों के नेताओं को चाहिए कि सत्ता में आने का रास्ता न समझ एक दूसरे पर  कीचड़ उछलने के स्थान पर इन अमानुषिक घटनाओं रोकने के लिए कोई कड़ा क़ानून बनाए. वरना जिस दिन आम लोगों ने फैसला और सजा देना शुरू कर दिया तो देश के चारों स्तंभों के ढहने में वक़्त नहीं लगेगा. 


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