छिपकली को मगरमच्छ दिखाने देने वाले ख़बरिया चैनल, अयोध्या में गिरा दिये गये विवादित ढांचे को फिर खड़ा कर सकते हैं
आख़िरकार सलमान खान को जमानत मिल ही गयी. फ़ालतू की छोटी-छोटी बातों पर दुआ और प्रार्थना करने वालों की सर्व शक्तिमान ने सुन ली. ऐसे लोग न बुद्धिमान होते हैं न मूर्ख होते है ये इन दोनों के बीच के होते हैं. बोले तो खच्चर(गधी-घोड़े की क्रास ब्रीड) होते हैं. ये बहुतायत में भारत देश में पाए जाते हैं. इन्हें जो दिखा दो या बता दो,उसे सच मान लेते हैं. पृथ्वी पर विचरण करने वाले ऐसे लोगों से ही कुछ खबरिया चैनलों के बुद्धिजीवियों के घर के गैस का चूल्हा जल रहा है. कुछ भी दिखा दो उसे बिना आगा-पीछा देखे सच मान लेते हैं. इस लफ्फाजी वाली न्यूज़ के चलते कुछ चैनलों ने एक-दूसरे की चड्ढी उतारने के लिए वायरल सच के नाम से कार्यक्रम शुरू किया है. इसमें खबर को सही है या गलत की मोहर लगाई जाती है. ये बात समझ से परे है कि एक बिरादर भाई किसी की चापलूसी करने के लिए कुछ( इनके लिए बहुत कुछ) ज्यादा कमाना चाहता है और ये अपने बिरादर भाई के ही कपड़े उतारने पर आमादा हो जाते हैं. खबर फर्जी है, तो ये कैसे न हो. दिल्ली में बैठकर कोई देश भर की ख़बरों को कैसे पा सकता है. इन ख़बरिय चैनलों ने अपनी देश के सभी कोनों में पकड़ दिखाने के लिए अब दिहाड़ी पत्रकार बनाने शुरू कर दिए हैं. इन दिहाड़ी पत्रकारों से सत्य खबर पाने की कितनी उम्मीद की जा सकती है. कभी सोचा अगर अयोध्या के मंदिर-मस्जिद विवादित ढांचे के समय में इसी तरह से थोक के भाव ये ख़बरिया चैनल होते तो टीआरपी(माल कमाने का जुगाड़) की गला कट दौड़ के चक्कर में कई दर्जन बार बवाल करवा चुके होते. ऐसे ख़बरिया चैनलों से खड़े विवादित ढांचे की वीडियो बाईट के साथ आज की तारीख में कवरेज मांगे तो ये एक घंटे की वीडियो रिकार्डिंग समेत न्यूज़ बनाकर चैनल पर दिखा सकते हैं, साथ में न्यूज़ चलने लगेगी कि विवादित ढांचा गिरा नहीं है. आज भी अपनी जगह स्थापित है. देश 70 से 90 प्रतिशत हिन्दू मुस्लिम ने विवादित ढांचा नहीं देखा होगा. यह बात इसलिए लिखी है क्योंकि सबसे नज़दीक यूपी की राजधानी के मुस्लिमों को छोडिये, हिन्दूओं ने भी ढाँचे के अन्दर स्थापित राम लला को नहीं देखा होगा. उस समय भी कुछ पत्रकार, आज की प्रजाति के खबरनवीस उस समय भी पाए जाते थे. जिन्होंने फैज़ाबाद बाद के होटलों में बैठे-बैठे विवादित ढाँचे के गिरने की लाइव रिपोर्टिग कर डाली थी. अच्छा ही हुआ होलसेल में इन खबरिया चैनलों के आने के पहले ही ये विवादित ढांचा गिर गया, वरना सलमान खान को जोधपुर से मुंबई स्थित घर तक छोड़ने वाले ऐसे चाटुकार ख़बरिया चैनल आये दिन विवादित ढांचा गिरवाते रहते और जाति-धर्म के नाम पर नेताओं को सत्ता पर काबिज़ करवाते रहते. दोनों ही तरह के लोग आये दिन मारामारी कर रहे होते. ढ़ाई दशक पहले जब न्यूज़ हाथ से लिखी जाती थी तब गिनत के पत्रकारों को छोड़कर सत्य और तथ्यपरक न्यूज़ छापने की होड़ मची रहती थी, सिर्फ इसलिए की उन्हें बाईलाइन(टॉप परन्यूज़ लिखने वाले का नाम होता है) मिलेगी. इसके उलट आज 'पेड न्यूज़' का बोल-बाला है. किसी को बदनाम करने के इरादे से कुछ लिखवाना है या पने समर्थन में कुछ लिखवाना है तो फटा-फट माल खर्चो बेहतरीन काम लो. ढाई दशक पहले पत्रकार शब्द सुनने ही एक कृशकाय दबे कुचले अधपकी दाढ़ी,शर्ट की जेब में फंसे हुए कलम वाले व्यक्ति की छवि आँखों के सामने कौंध जाती थी.लेकिन चैनलों के बढ़ते ग्लैमर ने पत्रकारिता का सत्यानाश कर दिया. ये ग्लैमर ही चौथे स्तम्भ को खत्म करने का ज़िम्मेदार होगा.एक बार फिर से बिकाऊ मीडिया का सलमान खान के घर के आस-पास जमावड़ा होगा खबर चल रही होगी कि टाइगर ने दो दिन के बाद भरपूर नींद ली. सुबह नाश्ते की टेबल पर परिवार के साथ अच्छे से नाश्ता किया. फ़िल्मी हस्तियों का आना जाना लगा हुआ है आदि-आदि इन कुछ चैनलों पर चलने लगेगा. कल कोई भी चैनल महंगे पेट्रोल की बात नहीं करेगा. सस्ते टमाटर बात करने से इन्हें कुछ मिलना नहीं है. इस प्रोफेशन में 'तू मेरी खुजा, मैं तेरी खुजाऊंगा' कब तक चलेगा कहीं तो इसका अंत होना ही है.





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