कर्नाटक :एक-दूसरे की खिचड़ी में अधिक घी देखने वाले 116 विधायकों को संभालना कांग्रेस-जेडीएस के लिए बड़ी चुनौती

कर्नाटक के 55 घंटे पुराने बीजेपी के मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा ने इस्तीफा दे दिया. इसके साथ ही कर्नाटक में मुख्यमंत्री पद पर चल रही खींचतान की स्थिति खत्म हो गयी है. प्रदेश में सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरी बीजेपी ने संवैधानिक तरीके से अपने नेता बीएस येदियुरप्पा मुख्यमंत्री बनाये जाने के लिए राज्यपाल को पत्र लिखकर अवगत कराया था. राज्यपाल ने बीएस येदियुरप्पा को शपथ दिलवा दी.  इसके बाद सत्ता में पिछली बार रही कांग्रेस ने ये कहते हुए शीर्ष अदालत का दरवाज़ा खटखटाया कि बीजेपी के पास बहुमत नहीं है तो कैसे सरकार बना सकती है. संज्ञान लेते हुए न्यायालय ने मुख्यमंत्री येदियुरप्पा को बहुमत सिद्ध करने के निर्देश दिए. येदियुरप्पा ने बहुमत साबित न करते हुए अपना 30 मिनट का भाषण देने के बाद इस्तीफे की घोषणा कर दी और विधानसभा से निकल कर राज्यपाल को इस्तीफा देने चले गए. इस तरह से जोड़-तोड़ करने वाली कांग्रस ने एक बार फिर सफल रही. अब कर्णाटक में 224 सीटों वाली विधानसभा में 38 सीटों वाले तीसरे नंबर की पार्टी, जनता दल सेकुलर 78 सीटों वाली कांग्रेस के सहयोग से कर्नाटक में सरकार बानाएगी. वर्तमान में 224(222) सीटों वाली विधानसभा में 113 सीटों के बहुमत के आंकड़े से बीजेपी 8 सीटें दूर रह गयी. वहीं जोड़-तोड़ की राजनीति के तहत एक-दूसरे के विरुद्ध चुनाव लड़े कांग्रेस  और जेडीएस ने सरकार बनाने का दावा पेश कर दिया. कांग्रेस का मानना है कि उन्हें जेडीएस के साथ मिलकर सरकार बनाने का जनादेश मिला है. अब लोगों को अच्छे से समझ में आता जा रहा है कि कांग्रेस का लोकतंत्र कभी भी खतरे में पड़ सकता है. निवर्तमान सिद्धारमैया समेत अन्य राज्यों में कांग्रेस की सरकारों ने अगर जनता के लिए काम किया होता तो नैतिकता और लोकतंत्र खतरे में है का हवाला न देना पड़ता. अगर कर्नाटक की आज की स्थिति पर नज़र डाली जाए तो कांग्रेस ने कितनी ज़बरदस्त नैतिकता की नजीर पेश की है. जिस दल के विरुद्ध विधानसभा चुनाव लड़ा उस दल को जो बहुमत से 74 सीटें दूर था उसे समर्थन दे दिया और बहुमत से 8 सीटें कम जीतने वाली भाजपा नैतिकता का पाठ पढ़ा रही है. सत्ता के लिए किसी भी दल के साथ चले जाने कि पुरानी बीमारी है. दिल्ली में जो केजरीवाल इनकी मुख्यमंत्री शीला दीक्षित पर आरोप लगा रहे थे और इनके किये काले कारनामों की बात कर रहे थे को कांग्रेस ने लपक कर समर्थन दे बहुमत सिद्ध करवा दिया था. बिहार में अपनी खुश्की दूर कर ने के लिए नितीश और लालू के गठबंधन में नैतिकता के आधार पर शामिल हो गयी थी. सोचने वाली बात ये है कि जेल की सज़ा काट रहे लालू यादव को किस नैतिकता के आधार पर समर्थन दिया था. समर्थन से चल  रही दिल्ली की केजरीवाल सरकार को 49 दिन में जाना पड़ा तो वहीँ बिहार में आरजेडी के न रुकने वाले कारनामें के चलते नीतिश कुमार ने सवा साल में किनारा कर  बीजेपी का फिर से दामन थाम लिया था. अब कुछ इसी तरह का रायता कांग्रेस ने कर्नाटक में फैलाया है, लेकिन इस बार बीजेपी ने रणनीति के तहत बहुमत से 8 सीटें कम लाने पर भी अपने मुख्यमंत्री प्रत्याशी येदियुरप्पा को आगे बढ़ाकर ये साबित कर दिया कि हताशा में डूबी कांग्रेस सत्ता के लिए किसी भी हद तक जा सकती है. सारे देश में सभी न्यूज़ चैनलों ने इस बात को ख़ूब जोर-शोर से इसका सजीव प्रसारण किया. आज से 6-8 महीने बाद कर्नाटक चुनाव में हार की खार मिटाने के लिए जिस तरह से 38 सीटों वाली जेडीएस को समर्थन दिया उसका नतीजा आ जाएगा. अक्सर लोगों के साथ होता है कि लक्ष्य पाने के लिए दायें बाएं इसलिए नहीं देखते हैं क्योंकि इस तरह से ध्यान भटक जाता है कुछ ऐसा ही आज कांग्रेस के साथ हुआ है. राहुल गाँधी को राष्ट्रीय अध्यक्ष स्थापित करने के चक्कर में फंस गयी और रही सही साख भी ख़त्म कर ली. कर्नाटक की स्थिति पर देश के लोगों की नज़र थी. जिसे बीजेपी ने इनके द्वारा ही जनता तक इनकी नैतिकता वाली छवि को पहुंचा दिया. येदियुरप्पा ने अपने भाषण से कर्नाटक की जनता को जतला दिया कि वो प्रदेश के साथ रहेंगे. कांग्रेस सोच रही थी कि बहुमत सिद्ध न कर पाने पर बीजेपी की छीछालेदर होगी. लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ. बीजेपी ने अपनी रणनीति के तहत जो चाहा वैसा ही कांग्रेस और जेडीएस से करवा लिया. यह बात इन दोनों दलों को समझ में नहीं आयी या समझना नहीं चाही कि अगर बीजेपी चाहती तो 2013 में दिल्ली विधानसभा चुनाव में 31 सीटें लाने पर जोड़-तोड़ करके सत्ता पर काबिज हो सकती थी. यहाँ तो बहुमत साबित करने के लिए मात्र मात्र 5 सीटों की जरूरत थी. अब जो होना था, हो चुका है. बीता समय वापस नहीं आयेगा, लेकिन सत्ता सुख की आदत वाले नेता, कर्नाटक सरकार को कितने दिन या महीने या साल चलने देते है, यह अभी भविष्य के गर्भ में है. दूसरों की खिचड़ी में अधिक घी देखने वाले, सभी 116  कांग्रेसी, जेडीएस दो अन्य को मंत्री नहीं बनाया जा सकता है. 40 से 50 मंत्री ही बनाए जा सकेंगे. जो नहीं बन पाए तो उन्हें संभाले रखना बहुत ही मुश्किल काम होगा यही गठबंधन सरकार कप्तान का कारण बन सकता है.

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