मोदी को हराने के लिए विरोधी दलों को खोजना पड़ेगा एक अदद मोदी

कर्नाटक राज्य में 224 सीटों वाली विधानसभा की 222 के लिए वोट डाले जा रहे हैं. मुख्य दलों कांग्रेस और भाजपा के साथ जेडीएस भी चुनाव मैदान में है. चुनाव प्रचार के दौरान जहां एक तरफ बीजेपी कर्नाटक की सत्तारूढ़ सिद्धारमैया सरकार को उखाड़ फैंकने के लिए उतरी है, तो वहीं कांग्रेस इस राज्य में अपनी सरकार की फिर से वापसी के लिए जोर लागाये हुए है. जेडीएस भी कोई उलटफेर करने की जुगत से मैदान में है. आज से ठीक तीसरे दिन परिणाम सामने आ जायेंगे कि जनादेश की दल को मिला है. पिछले राज्यों के चुनावों के नतीजों पर नज़र डाली जाए तो यहाँ भी बीजेपी पीएम मोदी की छवि से ही कर्नाटक फतह करने की उम्मीद के साथ बैठी है. कर्णाटक की जनता इस बार अगर बीजेपी को सत्ता सौंपती है तो कांग्रेस को अपने पिछले 47 साल तक यहाँ की सत्ता पर काबिज रह कर किये गए अच्छे बुरे कार्यों पर मंथन करना पड़ेगा. वैसे भी ये बात चुनाव प्रचार के दौरान ही साफ़ हो गयी थी कि कांग्रेस के पास किये गए गुड वर्क न के बराबर हैं. अगर होते तो कांग्रेस इन्हें मुद्दा बना कर जनता के पास जाती, लेकिन ऐसा कुछ दिखाई नहीं दिया. हाँ ये ज़रूर रहा कि कांग्रेस के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राहुल गाँधी कभी मंदिरों तो कभी दरगाह तो कभी चर्च के पादरियों के बीच ही नज़र आये. इससे स्पष्ट हो रहा है कि कांग्रेस आज भी जाति और धर्म के नाम पर वोट मांग कर चुनाव जीतने में भरोसा रखती है.  इसी के चलते चुनाव से कुछ महीने पहले कर्नाटक की सिद्धारमैया सरकार ने लिंगायत समाज को एक नए धर्म के रूप में मान्यता दे डाली थी, इसमें वो कितना सफल हो पाती है, ये चुनाव नतीजों के बाद ही स्पष्ट होगा. अगर कर्णाटक के विधानसभा चुनाव में जीत हार पर मंथन किया जाए तो यह चुनाव सिद्धारमैया सरकार के मुकाबले कांग्रेस के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राहुल गाँधी के लिए बहुत अधिक महत्व रखते हैं. कर्नाटक चुनाव की जीत ही तय करेगी कि राहुल गाँधी में देश की सबसे पुराने राजनीतिक दल कांग्रेस का अध्यक्ष बनने की क्षमता है. अब तक हुए राज्यों के चुनावों में राहुल गाँधी उपाध्यक्ष और फिर अध्यक्ष बनने तक लगभग 2 दर्ज़न चुनाव हार चुके हैं. जिस राज्य पंजाब कांग्रेस ने फतह किया. वहाँ राहुल गाँधी प्रचार करने नहीं गए. इस जीत का सेहरा वर्तमान सीएम कैप्टेन अमरिंदर सिंह के सर पर सज गया. विरोधियों का और पार्टी के लोगों को भी समझ में आने लगा है कि राहुल गाँधी कांग्रेस के लिए कुछ अच्छा प्रदर्शन करने में नाकाम ही होते रहे हैं. राजनीतिक पंडितों की मानी जाए तो यह कांग्रेस से अधिक राहुल गांधी के लिए दुर्भाग्य की बात है कि वो ऐसे समय में सक्रिय राजनीति में आये हैं, जब उनका सामना देश के साथ-साथ दुनिया में लोकप्रियता हासिल कर चुके पीएम नरेंद्र मोदी से हो जाता है. आज जहाँ राहुल गाँधी राज्य का चुनाव जीतने के लाले पड़े हुए हैं, वहीं पीएम मोदी चुनाव जिताऊ नेता के रूप में स्थापित हो चुके हैं. राजनीतिक नज़रिए से देखा जाए तो कर्नाटक चुनाव में कांग्रेस के लिए जीत दर्ज़ करना बेहद ज़रूरी है. इस चुनाव से ही राहुल को आगे बढ़ना है या पीछे लौटना है यह बातें कांग्रेस पार्टी को तय करनी पड़ेंगी. इसके पीछे सबसे बड़ा कारण 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव हैं. इस चुनाव में सभी छोटे बड़े राजनीतिक दल किसी भी तरह से एक साथ मिलकर उखाड़ फैंकने के चक्कर में हैं. ममता बनर्जी, चन्द्र बाबू नायडू, मायावती, अखिलेश यादव, चन्द्र शेखर राव, उद्धव ठाकरे, अरविन्द केजरीवाल, लालू के पुत्र आदि सभी नेता किसी भी तरह से महा गठबंधन करने का मन बनाए हुए हैं. इसके लिए सभी को यह तय करना है कि इनका नेतृत्व कौन करेगा. इधर कांग्रेस इस बात का राग अलाप रही है कि राहुल गाँधी के नेतृत्व में सब एकजुट
 हों. यहीं पर इन सबके एक साथ आने में आड़े आने की पूरी-पूरी संभावना है. इन दलों के राजनीति में घाघ मुखिया कभी भी राहुल के नेतृत्व नहीं स्वीकार करेंगे. एकजुट होने वाले दलों को लोकसभा चुनाव में यही डर सताता रहेगा कि जो नेता अपनी पार्टी को अपने बूते, आज तक कोई भी राज्य का चुनाव नहीं जिता सका है. वो लोकसभा चुनाव में उनके लिए कितना क्या कर पायेंगे. इसीलिए लगता है कांग्रेस के मुकाबले राहुल गाँधी के लिए कर्नाटक चुनाव जीतना बहुत ज़रूरी है. कर्नाटक चुनाव की जीत ही राहुल को बड़े नेता के रूप में मान्यता देने के साथ ही कांग्रेस के अंदर चल रही उथल-पुथल को भी थामेगी. अगर बीजेपी कर्नाटक फतह कर लेती है तो गाँधी परिवार और कांग्रेस दोनों ही विखंडित होने की पूरी संभावना है. इस विखंडन को रोकने के लिए गाँधी परिवार के लिए अध्यक्ष पद छोड़ना उसकी मज़बूरी होगा. कुल मिलाकर 2019 लोकसभा चुनाव राजनीति में बनते बिगड़ते समीकरणों के लिए याद किये जायेंगे. इसी वज़ह से देश की जनता के पास सत्ता संभालने में सक्षम मज़बूत विकल्प मोदी के रूप में होगा. यह बात कर्णाटक के विधानसभा चुनाव के बाद साबित हो जायेगी. आज हालत ये हो गयी है कि जिस जनता ने मोदी को देश का चौकीदार बनाया था, उसी ने अपने गुड वर्क्स से दिल चुरा लिया है. विरोधी दलों को उप चुनाव में जीतने के बाद लगता है कि जनता के सर से मोदी मैजिक भूत उतर रहा है. यहीं पर इन सभी की सोच गच्चा खा जाती है. पीएम मोदी हमेशा ही अपने भाषणों की शुरुआत मितरों या भाइयों और बहनों से करते हैं. अब खुद ही सभी दलों को इस पर चिंतन करना चाहिए कि भला कोई अच्छे भाई और मित्र से नाराज़ होता है. मोदी की मित्र जनता क्षणिक नाराज़ होती है तो उप चुनाव में गच्चा देकर अपना सन्देश दे देती है की कुछ गलत हो रहा है उसे सुधारने की जरूरत है. जिस दिन विरोधी दल मोदी और जनता के बीच के मनोविज्ञान को समझ लेंगे और मोदी को फालो कर लेंगे उसी दिन मोदी की हार तय है. ऐसा ही कुछ स्वयं पीएम मोदी भी चाहते होंगे. इसलिए सभी दलों की भलाई इसी में है कि खुद को मोदी बना लो या कोई एक अदद मोदी को लाकर मोदी के मुकाबले खड़ा कर दो. मोदी खुद ही उससे हार जायेंगे. वरना मोदी को इस जैम में हराना मुश्किल ही नहीं, नमुमकिन भी है.

Comments