बुजुर्गों की अनदेखी पर हो सकती है 6 महीने की जेल :माता-पिता से बढ़कर दुनिया में कोई नहीं है
केंद्र सरकार ने बुजुर्ग माता-पिता को असहाय छोड़ देने वाले बेटों पर कड़ा रुख अपनाया है. अगर बच्चे अपने बुजुर्ग माता-पिता को असहाय छोड़ देते है तो उन्हें 2007 में बने क़ानून के तहत 3 माह जेल की सज़ा को बढ़ाकर 6 महीने करने पर विचार कर रही है. माता-पिता, वरिष्ठ नागरिकों की देखभाल कल्याण क़ानून 2007 की समीक्षा कर रहे सामजिक न्याय और सशक्तिकरण मंत्रालय ने बच्चों की परिभाषा को विस्तार देने की भी सिफारिश की है. बहुत ऐसे लोग होंगे जिन्हें इस क़ानून की जानकारी नहीं होगी. यह बात लिखने का एक बड़ा कारण यह है कि जो बच्चे अपने बुजुर्ग माता-पिता को ईश्वर से पहले मानते हैं और उनकी देखभाल करते चले आये हैं. उन्हें इस क़ानून की जानकारी शायद ही होगी. इस खबर को पढ़ने के बाद महसूस हुआ कि आज़ादी के बाद से क्या सामजिक प्राणी इतना निकृष्ठ हो चुका है कि वो अपने माँ-बाप की बुढ़ापे में देखभाल करने से हिचकता है. जिन माँ-बाप ने उन्हें पाल-पोस कर काबिल बनाया, वो बच्चे उनके बुढ़ापे की लाठी बनने की जगह उन्हें बेसहारा छोड़ देते हैं. यह बात सोच कर कि क्या ऐसे निकृष्ठ लोग भी पाए जाते हैं जो अपने माता-पिता के साथ ऐसे बर्ताव करके सुखी कैसे रहते होंगे. ऐसे निकृष्ठ लोग अगर किसी दिन कुछ घंटे बैठ कर इस बात पर चिंतन करें कि अगर उनके माँ-बाप उन्हें धन अभाव में अनाथ आश्रम में डाल दिया होता तो क्या वो इस काबिल बन पाते कि अपने माता-पिता को छोड़ सकते. शायद नहीं में ही जवाब मिलेगा. बुजुर्ग माता-पिता को छोड़े जाने की बढ़ती घटनाओं के बाद ही केंद्र की सरकार को इस क़ानून बनाने की ज़रुरत पड़ी. केंद्र की यूपीए सरकार के समय में बने इस क़ानून को और अधिक कड़ा करना इस बात को जतलाता है कि सामाजिक प्राणी बद से बदतर मानसिकता में पहुँच चुका है. जो माँ-बाप जन्म लेने से काबिल बनाने तक तक कितना कष्ट झेलते है, इस बात का भी ऐसे लोगों एहसास नहीं होता है. आज इन बुजुर्ग माँ-बाप के हितों की रक्षा के लिए सरकार को क़ानून बनाने पड़ रहे हैं. सभ्य समाज के लिए कितने शर्म की बात है. समाज के भले लोगों को चाहिए कि ऐसे लोगों को सबक सिखाने के लिए बनाए गए क़ानून के दायरे में लाकर सरकार इन बुजुर्गों की मदद करे. वरना एक दिन ऐसा आएगा कि कुछ लोगों के कारण पूरा समाज बदनाम हो जाएगा.



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