मोदी फैक्टर के चलते,दोनों दलों के नवनिर्वाचित विधायकों को अवसरवादी कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन रास नहीं आ रहा
अब तेज़ी से कर्नाटक में राजनीति का तापमान बढ़ गया है. देवेगौड़ा पुत्र एचडी कुमारास्वामी 38 सीटों के साथ मुख्यमंत्री बनने के लिए ताल ठोंक कर मैदान में आ डटे हैं. उनका कहना है कि कांग्रेस से मिले समर्थन से वो सरकार बनाने में सक्षम है. बहुमत का 112 अधिक विधायकों जादुई आंकड़ा उनके पास है. वहीँ जेडीएस और कांग्रेस ये आरोप लगा रही है कि बीजेपी उनके विधायकों को तोड़ रही है. उन्हें मंत्री पद आदि का लालच दिया जा रहा है. कुमारास्वामी ने चेतावनी भी दे डाली होई कि अगर बीजेपी ने उनके विधायक तोड़ने की कोशिश की तो वो उसके दोगुने विधायक तोड़ लेंगे. भैय्ये कुमारस्वामी ई...बात समझ में नहीं आई कि अगर दोगुने विधायक तोड़ सकते हो तो बता काहे दिया. अगर बीजेपी 10 एमएलए तोड़ती है तो भैय्ये तुम 20 तोड़कर चुपचाप बैठ जाओ. जब बहुमत सिद्ध करने के लिए विधायकों की राज भवन में परेड होगी तो बीजेपी के बहुमत का आंकड़ा दस कम रह जाएगा, कत्ती बदनामी हो जायेगी. कुछ समझ में आया कि नहीं. कुमारस्वामी अभी से डर रहे हैं तो मुख्यमंत्री बनने के बाद तो कांग्रेस समर्थन वापसी के नाम पर डरा-डरा कर हलकान कर देगी. जेडीएस मुखिया कुमारास्वामी की बातों से यही लग रहा है कि वो कांग्रेस से कम, देश में चल रही, मोदी लहर से ज़्यादा डर गए हैं. अगर जेडीएस की पिछली विधानसभा सीटों पर नज़र डाली जाए तो इस बार 2018 में उन्हें पिछली सीटों के मुकाबले 2 सीटें कम मिली हैं. इसी बात से जेडीएस के पिता-पुत्र को लग रहा है कि पीएम मोदी की लहर के कारण बीजेपी इस बार के चुनाव में बीजेपी कांग्रेस को पछाड़कर मुख्य मुकाबले में थी. इसी डर के चलते जेडीएस और कांग्रेस को लग रहा है कि बीजेपी कर्नाटक राज्य में तीसरी पार्टी के रूप में उभर आई है. जेडीएस को लगता है कि कांग्रेस से तो मुकाबला किया जा सकता है. लेकिन पीएम मोदी द्वारा बढ़त दिलाई बीजेपी को पछाड़ने में परेशानियाँ आएँगी. इसी सोच के चलते कांग्रेस और जेडीएस को बीजेपी ज़्यादा ताक़तवर दुश्मन दिख रहा है. कांग्रेस की जिस सिद्धारमैया सरकार को पीएम मोदी ने उखाड़ फैंका है उसके 122 विधायकों में से 34 विधायक को हराकर उनसे सीटें बीजेपी ने छीन लीं. यही हाल जनता दल सेकुलर का रहा जिसके 2 विधायकों को हार का मुंह देखना पड़ा. इसी डर के चलते कर्नाटक में कांग्रेस और जेडीएस आनन-फानन में सरकार बनाने के लिए एक साथ आ गए हैं. दक्षिण भारत के राज्यों में मोदी फेक्टर के कारण बीजेपी धीमे-धीमे आगे बढ़ती जा रही है. इसी के चलते कांग्रेस ने बीजेपी को कर्नाटक में हिंदी भाषी राज्यों की पार्टी के रूप में प्रचारित किया था. इसके बावजूद मोदी लहर को रोक पाने में कांग्रेस बुरी तरह असफल रही. बीजेपी बहुमत का आंकड़ा न भी हासिल कर सकी हो लेकिन 104 सीटें जीत कर उसने जनता के दिमाग में अपने क्षेत्रीय दल की धारणा को निकाल फैंका है. आज बीजेपी जिस तरह से त्रिपुरा और कर्नाटक में घुसी है उससे ये बात साफ़ होती जा रही है कि आने वाले समय में बीजेपी सभी राज्यों के स्थापित हो चले क्षेत्रीय दलों से दो-दो हाथ करने में पूरी तरह से सक्षम को चुकी है. इसी डर के चलते कर्नाटक में एक दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ने वाले कांग्रेस और जेडीएस एक मंच पर आ गए हैं. दोनों का लक्ष्य एक है कि किसी भी तरह से बीजेपी को कर्नाटक की सत्ता दूर रखा जाये. तभी इन दोनों का अस्तित्व बचा रह सकेगा. जेडीएस मुखिया कुमारस्वामी ने मुख्यमंत्री पद के लालच में एक बहुत बड़ी गलती ये कर दी है कि उन्होंने जनादेश पाने वाली बीजेपी से हाथ न मिलाकर नकार दी जाने वाली कांग्रेस का हाथ थाम लिया है. जिसका खामियाजा जेडीएस को भुगतना ही पड़ेगा. जिस तरह से कांग्रेस और जेडीएस के विधायक अभी से इधर-उधर भाग रहे हैं उसी से समझ में आ रहा है कि वो जनता की इच्छा को समझ रहे हैं. इसी के चलते कर्नाटक में बीजेपी की सरकार बनती नज़र आ रही है.




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