कैराना और नूरपुर उपचुनाव : बार-बार ठगे जाने से निराश मतदाता,नोटा का बटन दबाने के लिए भी नहीं निकलेगा
कैराना की लोकसभा और नूरपुर विधानसभा के लिए इवीएम और वीवीपैट के द्वारा वोट डाले जा चुके हैं. मतदान दिन से विवाद भी शुरू हो चुका है, जोकि 31 मई को मतगणना के साथ एक बार फिर से आरोपों के साथ शुरू होने की प्रबल संभावनाओं के साथ कुछ दिनों चलेगा. यह बात इसलिए लिखी है, क्योंकि अगर गैर भाजपाई दलों के लोकसभा और विधानसभा के प्रत्याशी हारते हैं तो एक बार फिर से विरोधी दल चिल्लाना शुरू करेंगे की इवीएम और वीवीपैट को मुस्लिम बाहुल्य इलाके में जानबूझकर खराब किया गया था. इसमें चुनाव आयोग की भी मिली भगत थी. जिस तरह से मतदान के कुछ ही देर बाद यूपी के गैरभाजपाई नेताओं ने ये कहना शुरू किया था. इससे साफ़ ज़ाहिर है कि दोनों जगहों पर बीजेपी जीत रही है. यह बात इसलिए लिखी है क्योंकि उपचुनाव की जो तारीखे मतदान के लिए चुनाव आयोग ने ज़ारी की थीं. इनसे कुछ दिन पहले से मुस्लिमों के सबसे बड़े त्यौहार रमजान शुरू हो गए थे. बीजेपी के विरोधी दलों को यह बात मतदान के दिन ही समझ में आई वरना ये सब मिलकर उपचुनाव की तारीख रमजान के पहले या बाद में तय करने के लिए चुनाव आयोग पर दबाव बनाते. ऐसा गैरभाजपाई क्यों चाहते इसे इस तरह से समझें. आरएलडी+ समाजवादी पार्टी+ बसपा+ कांग्रेस सभी इस उपचुनाव में एकजुट होकर बीजेपी प्रत्याशी को हारने के लिए कमर कसे हुए थे. इन्हें अच्छे से मालूम है कि अगर इनके दोनों प्रत्याशी हार जाते हैं तो यह सन्देश जाएगा कि ये सब दल मिलकर भी भाजपा को नहीं हरा पाए. जिसका असर 2019 होने वाले आम चुनावों पर पड़ने की अत्याधिक संभावना है. इस के कारण आगामी लोकसभा चुनाव में होने वाले गठबंधन पर भी पड़ेगा. विपक्षी दलों के पास बीजेपी से दो-दो हाथ करने के लिए कोई मुद्दा दिख नहीं रहा है. सिवाए इसके कि बीजेपी सांप्रदायिक पार्टी है कि बात कहने के. ये सब मुद्दे गौण तब हो जाते हैं जब पीएम मोदी मंच से भाषण शुरू करते हैं. अगर लोकसभा को सामने रखकर देखें तो यूपी में जिस खस्ता हालत में बसपा-0, आरएलडी-0, कांग्रेस-2 और समाजवादी पार्टी-5+2 है. 80 में से 71 सीटें बीजेपी+ को तो कांग्रेस और सपा के खाते में मात्र 11 सीटे हैं. इन चारों(बाहर से भी जुड़े)दलों को इस उपचुनाव में हार का डर इसलिए सता रहा है क्योंकि रमजान के कारण अपने मज़हब पर अटूट आस्था रखने वाला मुस्लिम वोटर रोज़े होने के कारण मतदान की लाइन में उतना नहीं लगा जितने की इन दलों को उम्मीद थी. बीजेपी का मुसलमान कितना ही धुर-विरोधी क्यों न हो लेकिन वो इस विरोध के लिए अपने इतने बड़े त्यौहार रमजान को तिलांजलि नहीं दे सकता है. विरोधी दल हमेशा इस बात को मीडिया के माध्यम से दिखाते और जतलाते रहते हैं कि धुर-विरोधी मुसलमान, बीजेपी को वोट कभी नहीं देगा. इसे मानने से इंकार नहीं किया जा सकता है. लेकिन जब आस्था की बात इन मुस्लिम मतदाताओं के सामने आ जाती है तो इनके लिए अल्लाह सर्वोपरि हो जाता है. ऐसे में मुस्लिम मतदाता रोज़ा छोड़कर बीजेपी को हारने के प्रयास में शामिल नहीं होगा. उसे अब यह बात समझ में आ चुकी है कि उनके वोट से जीतने वाले फिर आते हैं तो पांच साल बाद आते हैं. कैराना और नूरपुर में उपचुनाव भीषण गर्मी के बीच रमजान के पवित्र हुए हैं. 2014 पिछले लोकसभा चुनाव के समय की घटना है. लखनऊ में लोकसभा के लिए वोट डाले जा रहे थे. मई की गर्मी में वोटर निकला कुछ प्रतिशत आराम तलब वोटर तेज़ गर्मी के कारण बूथ तक न जाकर पंखे की हवा खाता रहा था. यह बात तब समझ में आई जब मैं अपने जानने वाले मुस्लिम हज्जाम की दुकान पर गया तो उसने आधी दूकान खोल रखी थी. आधे शटर से दूकान में घुस कर बाल कटाने बैठ गया. बातों ही बातों में जब उससे पूछा कि वोट डाल आये तो वो थोड़ा तीखी आवाज़ में बोला कि इतनी गर्मी में वोट डालने के लिए कौन लाइन में लगता, इसीलिए चुपचाप घर पर आराम करता रहा था. दिल उबने लगा तो सोचा चलो दूकान चलते है कुछ कमाई भी हो जाएगी. कौन सा कोई नेता हमें खाना देने आएगा कोई भी जीते मिलनी रोटी मेहनत करके ही है. उसकी इन बातों ने सोचने पर मजबूर कर दिया कि देश के इन झंडाबरदारों ने लूट खसोट पराकाष्ठ पार करते हुए लोकतंत्र को भाल कराने वालों की कितनी बुरी हालत कर दी. है कि उसे पाने डाले वोट से अपनी हालत सुधरने की कोई उम्मीद नहीं है. नेताओं को इस बात पर चिंतन करना चाहिए कि मतदाता को बूथ से दूर करने वाले वो खुद हैं. अब आम मतदाता को समझ में आने लगा है कि चुनाव का मतलब है कि सत्ता परिवर्तन न कि उसके हालातों में परिवर्तन. एक जाएगा जो दूसरा आएगा, वो अपने हालत सुधारेगा. इस पर सभी दलों को सोचना चाहिए कि मतदाता थोड़ी भी परेशानी क्यों नहीं उठाना चाहता है. अगर इस पर आत्म मंथन नहीं किया तो वो दिन दूर नहीं है जब नोटा का बटन दबाने के लिए भी वोटर बूथ तक नहीं पहुंचेगा.




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